*Editorial :सुन_चंपा_सुन_तारा_ #कौन_जीता_कौन_हारा) एडिटोरियल बाय महेंद्र नाथ सोफत एक्स मिनिस्टर हिमाचल*
10 दिसंबर 2022- (#सुन_चंपा_सुन_तारा_ #कौन_जीता_कौन_हारा)–
#कल_से_आगे – नहीं बदला रिवाज अब कांग्रेस का राज यह एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक की हैड लाइन है। अब जहां भाजपा अपनी पराजय के कारणों की समीक्षा करेगी वहीं कांग्रेस के सामने सरकार चलाने और जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती होगी। 1990 के बाद लगातार हिमाचल मे यह परम्परा चली आ रही है कि हर पांच साल बाद सरकार बदलती रही है और यह अदला बदली कांग्रेस और भाजपा मे ही होती आ रही है। अभी तक की अदला बदली 5-6 प्रतिशत के वोट शेयर के शिफ्ट होने से होती थी, लेकिन इस बार एक प्रतिशत से भी कम वोट के अन्तर के साथ सत्ता परिवर्तन हो गया और कांग्रेस एक प्रतिशत से कम की बढ़त के चलते भाजपा के मुकाबले 15 सीटें अधिक जीत कर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। स्मरण रहे इस चुनाव मे कांग्रेस का वोट शेयर 43.90 प्रतिशत है और भाजपा का वोट शेयर 43.00 प्रतिशत रहा है। खैर हार हार होती और जीत राजा बनाती है। कांग्रेस ताज पहनने जा रही है जो भी मुख्यमंत्री बन इस ताज का हकदार होगा वह समझ ले यह कांटो का ताज है। यह क्यों और कैसे कांटो का ताज है इसकी विस्तृत चर्चा भविष्य के ब्लॉग मे करेंगे।
इस चुनाव के परिणामों ने कई सन्देश दिए है। पहला सन्देश है कि आज भी हिमाचल की राजनीति मे भाजपा और कांग्रेस का ही दबदबा है। आम आदमी पार्टी पंजाब की जीत से उत्साहित हो कर यहां तीसरे विकल्प के तौर पर अपने को पेश कर रही थी, लेकिन हिमाचल की जनता ने उन्हे पूरी तरह नकार दिया। आम आदमी पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी और उसकी ओर से लड़ रहे सभी 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। लगभग सारी सीटें लड़ने के बावजूद उनका वोट शेयर केवल 1.10 प्रतिशत रह सका है। वामपंथ पार्टियाँ भी अपना खाता नहीं खोल सकी। सीपीआई एम के एक मात्र जुझारू विधायक राकेश सिंघा ठियोग से पराजित हो गए है। वामपंथ पार्टी का केवल 0.66 प्रतिशत वोट शेयर रहा है। दूसरा यह भी सन्देश है कि इस चुनाव मे पैसा बहुत खर्च हुआ है। बतौर पार्टी भाजपा ने खूब पैसा खर्च किया और कुछ उम्मीदवारों ने व्यक्तिगत तौर पर करोड़ों रूपए चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों की नाक के नीचे खर्च कर दिए और वह मूकदर्शक बने रहे।
इस चुनाव मे भाजपा की हार के बावजूद ठाकुर जय राम अपने को लोकप्रिय जननेता के तौर पर स्थापित करने मे सफल हो गए है। उन्होने सबसे अधिक मतों से जीतने का वीरभद्र सिंह जी का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और स्वयं अपने गृह क्षेत्र सिराज से 38,183 मतों से जीत हासिल कर सबसे अधिक मतों का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। उनके ही नाम पर भाजपा ने मंडी संसदीय सीट मे प्रदर्शन भी शानदार किया है। इस चुनाव मे कई सीटें ऐसी रही जहां हार जीत का अन्तर बहुत ही कम रहा है। सारे चुनाव अभियान और आकड़ों के अवलोकन के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि जहां भाजपा की चुनावी लड़ाई भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लड़ी वहीं कांग्रेस की लड़ाई कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से अधिक ओ.पी.एस की मांग कर रहे कर्मचारियों ने लड़ी है।
#आज_इतना_ही कल फिर अगली कड़ी के साथ मिलते है।