कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर:-
नई ऊर्जा नया जोश !
नया नेतृत्व नई सोच !!
कृषि विश्वविद्यालय में जब से नये नेतृत्व (कुलपति डॉ हरिंदर कुमार चौधरी) ने कमान संभाली है ,तब से कृषि विश्वविद्यालय नई सोच और नए जोश के साथ कुछ नया तथा इनोवेटिव और प्रोग्रेसिव करने की ओर अग्रसर है। अभी नये कुलपति प्रोफेसर एच.के. चौधरी को कमान संभाले हुए कुछ ही महीने हुए हैं लेकिन इन चंद महीनों में कृषि विश्वविद्यालय में बहुत ही तेजी से परिवर्तन देखने को मिल रहा है !और यह परिवर्तन नई दिशा और नई दृष्टि नई ऊर्जा और नए जोश के साथ धरातल पर उतरता नजर आ रहा है। लग रहा है कि इस नेतृत्व ने कृषि विश्वविद्यालय को बुलंदियों और नई ऊंचाइयों की ओर ले जाने की ठान ली है ! नए नए परिवतर्न देखकर बहुत सुकून का अहसास होता है ,और साथ ही अफसोस भी होता है कि आज तक ऐसा क्यों नहीं हुआ। अगर पिछले दशकों में इतनी तेजी से कृषि विश्वविद्यालय का चेहरा और कायाकल्प करने के लिए थोड़ा-थोड़ा भी कार्य किया गया होता तो आज कृषि विश्वविद्यालय का बाह्य स्वरूप आकर्षक और मनमोहक बनकर एमिटी और लवली यूनिवर्सिटीज स्पर्धा दे रहा होता।
आज से कुछ महीनो पहले जहां कृषि विश्वविद्यालय में झाड़ियों और बेतरतीब जंगल का राज था आज वह कृषि विश्वविद्यालय एक सुंदर सा कैंपस का रूप लेता जा रहा है !
विश्वविद्यालय का दर्पण प्रशासनिक भवन को इस तरह से सजाया संवारा गया है कि बाहर से आने वाला कोई भी व्यक्ति विश्वविद्यालय के स्टैंडर्ड को देख कर इसकी शैक्षणिक क्षमता का आकलन सहज ही कर लेता होगा! क्योंकि आपका चेहरा और आपका पहनावा आपके दिल और दिमाग का बाह्य दर्पण होता है !अगर आपका पहनावा और चेहरा सही है तो लोग आपका कभी भी अल्प आंकलन करने की कोशिश नहीं करेंगे।
कृषि विश्वविद्यालय शैक्षणिक और व्यवहारिक रूप से रैंकिंग में काफी ऊपर चल रहा है परंतु उसके चेहरे चाल और चरित्र को सुधारने के लिए जो कोशिश है पिछले दशकों में की जानी चाहिए थी वह नहीं हुई, जिससे एक विश्वविद्यालय एक एंटीक पीस के रूप में जाने जाने लगा था। हां इस बीच डॉक्टर तेज प्रताप ने आवश्य कोशिश की थी और इस विश्वविद्यालय को नया स्वरूप दिया जाये तथा इसे उत्तम विश्वविद्यालयों से प्रतिस्पर्धा की श्रेणी में खड़ा किया जाए। परंतु उसके बाद राजनीति के चलते सारी कोशिशें बेकार हो गई और विश्वविद्यालय के सौंदर्यीकरण हेतु कोई भी कार्य नहीं किया गया।
अब डॉ एसके चौधरी ने विश्वविद्यालय की कमान संभाली है तो विश्वविद्यालय में उन्होंने नई चेतना और ऊर्जा का संचार किया है ।नई सोच और नई ऊर्जा के साथ विश्वविद्यालय का कुछ ही महीनों में स्वरूप बदला-बदला सा नजर आने लगा है! और लोग कहने लगे हैं कि अगर इतने कम समय में ,चंद महीनों में, इतना अधिक कार्य हो सकता है तो इतने दशकों तक हालात क्यों नहीं बदले ? और स्थिति बद से बदतर होती गई किसी भी नेतृत्व ने विश्वविद्यालय के सौंदर्यीकरण और आधुनिकीकरण की ओर ध्यान नहीं दिया।
चलो देर आए दुरुस्त आए !कुछ लोग सुस्ती में चलते रहे
लेकिन अब लोगों को चुस्ती भाये !!