*व्यंग:-लेखिका तृप्ता भाटिया :-मेरे साथ संयोग या प्रयोग*
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मेरे साथ संयोग या प्रयोग
मुझे लगभग एक हफ्ते बाद , बॉथरूम में स्नान रैली करनी थी इतने दिन न नहाने के कारण शरीर ” राम तेरी गंगा मैली” जैसा हो गया था मजबूरी का नाम तो आपको पता ही है मेरे पास नहाना ही एक मात्र विकल्प था!
नहाने की रैली से दस मिनट पूर्व , गीजर चलाने के आदेश जारी हो गये थे और मौखिक आदेश में ही , तौलिया और वस्त्र टांगने का फरमान भी दे दिया गया था। मैंने दस मिनट बाद मैंने आलस छोड़ा और मेरा होंसला गलवान घाटी में झंडा फहराने के मोड पर पहुंचा
मेरे निकलने के पूर्व निर्धारित रूट पर झाड़ू लग रही थी इसलिये मुझे रूट बदलकर दूसरे कमरे वाले दरवाजे से जाना पड़ा। मैंने ऊनी वस्त्रों को रूम में ही खोल दिया था , अंततः मुझे तेजी से बॉथरूम में घुसना था
पर ……पर ये क्या
ऐसा घोर षडयंत्र
मेरे मार्ग में हॉल में पोंछा लगा हुआ था और पंखा तीव्र वेग से हवायमान हो रहा था
मैं किसी तरह जान बचाकर , बॉथरूम में और साहस तथा समर्पण के साथ , कंपकंपाते हुए नहाने के लिये तैयार
गर्म पानी वाला नल खोला .बहुत देर तक वो “ठंडा ,मतलब कोका कोला ” टाइप आता रहा अब सहसा नजर गीजर पर पड़ी तो गीज़र दिल हूँ हूँ करे , घबराये हो गया गीजर ऑन ही नहीं था
मैंने तुरंत , स्वयं को पुन: “जमाने को दिखाना है” की स्थिति में बदला , और स्नान रद्द करके , अपने कमरे में लौटने का निश्चय किया , इस बार बचाव के लिये हमने दूसरा मार्ग पकड़ा सीधे अपने कमरे वाला
पर पता नहीं घर का पोंछामार संगठन को कैसे पता चल गया इस बार पोंछा , कमरे में लग रहा था पंखा “कोई रोको ना , दीवाने को” की स्थिति में था माहौल लाहौल स्पीति हो गया था हमने किसी तरह पंखे के पैनिक बटन को ऑफ किया अपनी खोली हुई स्वेटर को तलाशना शुरू किया जो मम्मी ने मशीन में धुलने टाइप क्रिया के डाल दी थी मतलब मां नेपूरा षडयंत्र रच रखा था
पर मैंने भी , यहाँ वहाँ से कुछ कपड़े ढूंढकर धारण किये और जोरदार आवाज में वक्तव्य जारी किया ” दीदी से कहा माँ को कहना , मैं ठंडा वापिस आ….. ”