अडानी कंपनी और ट्रांसपोर्टर्स के बीच पिछले दो महीने से भाड़े को लेकर विवाद जारी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 6 दौर की बातचीत जिसमे सरकार मध्यस्थ की भूमिका अदा कर रही थी समाधान निकालने मे पूरी तरह फेल रही। अडानी कंपनी के प्रतिनिधि और ट्रक ऑपरेटर अपनी बात पर अड़े है। प्लांट बंद होने के कारण ट्रांसपोर्टर्स और उनसे जुड़े हुए अन्य कारोबारियों को भारी नुकसान हो रहा है। ट्रकों को फाइनेंस करने वाले बैंकों को भी ट्रक मालिकों को दिए गए कर्ज की किस्ते वापस नहीं आ रही है। सरकार को भी करोड़ों का नुकसान हो रहा है। मेरे विचार मे सरकार मध्यस्थता की रस्म अदा करने से आगे नहीं बढ़ पा रही है।मेरी समझ मे सरकार को नई रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा।
मेरे इस विषय मे आगे बढने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार है:-
(1) मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुख्खू को इस मामले मे प्रधानमंत्री जी से बात कर उन्हे इस मामले मे हस्तक्षेप करने के लिए कहना चाहिए।
(2) सरकार को सीमैंट उत्पादन की समझ रखने वाले विशेषज्ञों के पैनल से अडानी के दोनो प्लांटो मे सीमैंट उत्पादन पर होने वाले खर्च का आंकलन करवाना चाहिए।
(3) यदि 2 मार्च तक बातचीत से हल नहीं निकलता तो उस दिन हाईकोर्ट मे सीमैंट विवाद को लेकर लम्बित याचिका पर सुनवाई होगी तो सरकार को उस याचिका मे अपना पक्ष रखना चाहिए। मेरी समझ के अनुसार सरकार उस याचिका मे पार्टी होगी! यदि नहीं है तो सरकार को पार्टी बनने के लिए कोर्ट मे आवेदन करना चाहिए।
सरकार को हाईकोर्ट के तय फार्मूले के अनुसार भाड़ा कितना बनता है और सीमैंट की उत्पादन लागत कितनी है यह हाईकोर्ट के संज्ञान मे लाना चाहिए। सरकार को एक्शन मोड मे आकर आगे बढ़ना चाहिए। यदि बातचीत से समाधान नहीं निकल पा रहा तो न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना ही एक विकल्प है। इस मामले मे भाजपा के सांसदो को भी राजनिति से ऊपर उठकर सक्रिय भूमिका अदा करनी चाहिए। इस विवाद के चलते जिला सोलन और जिला बिलासपुर की आर्थिकी के साथ प्रदेश को भी नुकसान हो रहा है। इसलिए सभी चुने हुए प्रतिनिधियों का कर्तव्य है कि एकजुट हो समाधान के लिए काम करें।