शख्शियत

*Officer in demand Vikas surjewala project director ,/S.E. NHAI Palampur HP*

 

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कुछ अधिकारी सचमुच अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति बहुत ही संजीदा होते हैं तथा सरकारी कार्य को, जनता के हित को ,वह अपने घर के कार्य से और नेताओं के द्वारा बताये गए कार्य से भी अधिक महत्व देते हैं।

हालांकि ऐसे अधिकारियों की भारत में काफी कमी है फिर भी कुछ अधिकारी जनता की समस्या को अपनी समस्या समझते हैं। जनता को हो रही परेशानी को अपने घर की परेशानी समझते हैं, और किसी भी सरकारी संपत्ति का नुकसान हो रहा हो तो वह उसे अपना नुकसान समझते हैं कि यह हमारा ही नुकसान हो रहा है।
ऐसे अधिकारी यह समझते हैं कि आज मैं जहां पर हूं जिस पोजीशन पर हूं या मेरा घर परिवार या मेरी जो इज्जत है ,मेरी जो रोजी-रोटी है, मेरा जो मान सम्मान है ,मेरे घर की जो शान है ,वह इस नौकरी के कारण ही है ,और इस नौकरी का प्रथम कर्तव्य यही है कि मैं सरकार के प्रति वफादार रहूं जनता के प्रति वफादार में रहूं । जनता की समस्याओं का समाधान करना मेरा प्रथम कर्तव्य है जिसके लिए मुझे कुर्सी पर बैठाया गया है। जनता की हर छोटी से समस्या का संज्ञान लूं और उस पर त्वरित एक्शन ले कर अतिशीघ्र समाधान भी करूँ ऐसे अफसर विरले ही होते हैं।
इसी कड़ी में मैंने पहले भी कुछ अधिकारियों का जिक्र किया था जिनमें इंजीनियर विकास सूद जो अब चीफ इंजीनियर बन गए हैं, मनोज कुमार जो तहसीलदार थे और अब डिस्ट्रिक्ट रेवेन्यू ऑफिसर हो गए हैं बहुत ही कर्मठ और सजग तथा ईमानदार ऑफिसर रहे हैं यह तो दो उदहारण हैं और भी बहुत से ऐसे अधिकारी होते हैं जो इसी कैटेगरी में होते हैं ।
कुछ अधिकारी ऐसे है जो कि कर्तव्य परायणता क्या पर्याय होते हैं।
इसी कड़ी में एक नाम और जुड़ गया है और वह है विकास सुरजेवाला जोकि NHAI के प्रोजेक्ट डायरेक्टर व अधिक्षण अभियंता   हैं और अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति हमेशा सजग रहते हैं ।बहुत ही नेक दिल इंसान हैं तथा बहुत ही शालीनता से बात करते हैं हर समस्या को धैर्य से सुनते हैं ,तथा जितनी शालीनता से बात करते हैं उतनी ही तत्परता से समस्या का समाधान भी करते हैं।
अभी हाल ही में कुछ दिन पहले ही मैंने पालमपुर की TCP के पास सड़क में आर पार खोदी दी गई नाली के बारे में बताया कि वहां पर कभी भी के एक्सीडेंट हो सकता है, तो उन्होंने बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया कि यह कल सुबह तक ठीक हो जाएगी और सचमुच दूसरे दिन जब मैं वहां से दुबारा निकला तो उन्होंने संबंधित कंपनी के लोगों को बुलाकर उस नाली को तुरंत बंद करवा दिया।
इसी तरह से इसी स्थान से आगे यूनिवर्सिटी की तरफ बरम के कच्चे होने की वजह से सड़क के बरम बहुत धंस गए थे तथा वहां पर एक्सीडेंट होने के बहुत चांस थे। उनके संज्ञान में यह मामला लाया गया उन्होंने तुरंत कार्रवाई करके दूसरे दिन ही वहां पर जेसीबी भेज कर उस पूरे पैच को ठीक करवा दिया।
इसी तरह से आज का वाक्य है कि ऑस्ट्रेलिया से एक मित्र ने कुछ वीडियो डाले की सड़क की हालत खराब थी वही वीडियो और वही चित्र व वीडियो मैंने सुरजेवाला जी को फारवर्ड किए और आप हैरान होंगे कि कुछ ही मिनट बाद उनका फोन आ गया कि इसे तुरंत ठीक करवा दिया जाएगा ।
उन्होंने कहा कि अब इस सड़क पर यह समस्या नजर नहीं आएगी और परौर से लेकर बैजनाथ तक की सड़क का एस्टीमेट अप्रूव हो गया है और इस पर अति शीघ्र कार्य शुरू हो जाएगा और लोगों की जितनी भी शिकायतें थी इस रोड पर खड्डों की तथा टूटी हुई सड़कों की अब नहीं दिखेगी। उन्होंने फ़ेसबुक पुस्तक भी बहुत ही तत्परता से जवाब दिया,, जबकि जरूरी नहीं कि फेसबुक की किसी भी पोस्ट पर कोई अधिकारी रियेक्ट करें या अपना स्पष्टीकरण या अपनी प्रतिक्रिया दें। परंतु जो संजीदा अधिकारी होते हैं जिन्हें अपने कर्तव्य के प्रति सच्चा एहसास होता है वह जनता की हर छोटी छोटी समस्या का संज्ञान लेते हैं उसका समाधान करते हैं।
हालांकि आज गुड फ्राइडे की छुट्टी थी फिर भी उन्होंने कहा कि छुट्टी होने के बावजूद भी मैं अपने ऑफिस में बैठा हूं और पूरा दिन काम कर रहा हूं ताकि लोगों की ऐसी छोटी-छोटी समस्याएं जल्दी से जल्दी हल हो सके और मेरी तरफ से किसी भी तरह की कोई ढिलाई या देरी ना हो ।
इनकी संजीदगी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह केंद्रीय सरकार के अधिकारी हैं और इन्हें किसी एमएलए या प्रदेश सरकार के किसी मंत्री का कोई दबाव नहीं है। यह स्वच्छंद रूप से अपनी मनमर्जी व स्वेच्छा से काम कर सकते हैं ।अपने हिसाब से चल सकते हैं लोगों की समस्याओं को दरकिनार करके अपने अहम को ऊपर रख सकते हैं ,परंतु कोई दबाव ना होने के बावजूद भी अपने कर्तव्यों के प्रति संजीदगी दिखाना सचमुच में एक सच्चे अधिकारी की निशानी होती है ।

कुछ लोग कार्य के प्रति संजीदगी दिखाते हैं लेकिन वह तभी दिखाते हैं जब उनके ऊपर कोई राजनीतिक दबाव हो प्रेशर हो।

इसके विपरीत हम अगर हमारे छोटे से दायरे मिस्टर निगम की बात करें तो यहां पर शायद शासकों की या प्रशासन की अधिकारी कर्मचारी बिल्कुल नहीं सुनते। मेरे पास उदाहरण है कि जनप्रतिनिधि द्वारा अधिकारियों को किसी काम के लिए 4 -6 बार बोलने के बाद भी वह अपनी मनमर्जी से ही कार्य करते हैं। क्योंकि उनका अहम आगे आता है कि है जनप्रतिनिधि कैसे मुझे हुकुम कर सकते हैं।
उन्हें सुरजेवाला जैसे अधिकारियों से सीखना चाहिए कि एक आम जन की तरफ से अगर कोई छोटी सी शिकायत है तो उस पर कैसे तुरंत संज्ञान लेना चाहिए ।
और निगम की तो बात ही छोड़िए जनप्रतिनिधि 10 बार भी बोले तो भी कार्य नहीं होता है अब इसमें आप शासन की ढिलाई समझे या प्रशासन की शराफत यह वह लोग शासन प्रशासन में हुए नए परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पा रहे।

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