Dharampur: *मनोरोग_चिकित्सक_डॉ_वीरेन्द्र_मोहन_को_भावभीनी_श्रद्धांजली*
16 जुलाई 2024- (#धर्मपुर_के_मशहूर _मनोरोग_चिकित्सक_डॉ_वीरेन्द्र_मोहन_को_भावभीनी_श्रद्धांजली)–
हिमाचल प्रदेश के मशहूर मनोरोग चिकित्सक डॉ वीरेन्द्र मोहन जीवन की अगली यात्रा पर निकल गए है। उनके जाने के बाद मानो चिकित्सा जगत का एक सूरज डूब गया हो। वह अच्छे चिकित्सक और अच्छे इंसान थे। उनके पुरखे जो देश विभाजन के बाद धर्मपुर मे बस गए थे वह शुरू से ही सामाजिक कार्यो और सामाजिक सरोकार मे दिलचस्पी रखते थे। धर्मपुर स्कूल उनकी ही बिल्डिंग मे चलता था। धर्मपुर की मशहूर मोहन बाबडी उनके ही एक पुरखे की याद मे बनाई गई थी, जिसका निर्मल पानी पीने का आनंद सभी उठाते है। समाज और मानवता के प्रति समर्पण भाव की मशाल को डॉ वीरेन्द्र मोहन ने आगे बढ़ाया और हिमाचल मे अपनी पहचान बनाई। धर्मपुर को भी एक अलग पहचान दिलाई। खैर डॉ वीरेन्द्र मोहन की संघर्ष की कहानी बहुत दिलचस्प और प्रेरित करने वाली है।
एक जानकारी के अनुसार उन्होने मैट्रिक से पहले पढ़ाई छोड़कर मुर्गी पालन का काम शुरू किया लेकिन जल्दी ही उन्हे समझ आ गया कि यह मेरी मंजिल नहीं हो सकती। उन्होने अपने बड़े भाई से प्ररेणा लेते हुए फिर से पढ़ाई शुरू की और डॉक्टर बनने का सपना साकार किया। वह पीजीआई से मनोरोग चिकित्सा मे पोस्ट ग्रेजुएट थे। सत्तर के दशक मे उन्होने धर्मपुर जैसे छोटे कस्बे मे मनोरोग चिकित्सक की प्रैक्टिस शुरू की। एक बड़े डॉक्टर का छोटे कस्बे मे प्रैक्टिस करना लोगो के गले नहीं उतर रहा था और लोग उनके सफल होने पर संशय व्यक्त कर रहे थे लेकिन उन्होने अपनी योग्यता और मेहनत के चलते उन सब को गलत साबित कर दिया जो संशय व्यक्त कर रहे थे। स्मरण रहे उस समय साइकिएट्रिस्ट दूर-दूर तक उपलब्ध नहीं थे। मनोरोग के रोगियों को इलाज की सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। केवल संपन्न लोगो को ही प्रदेश के बाहर जा कर यह सुविधा मिल पाती थी। डॉक्टर मोहन ने अपने छोटे गांव को अपनी कर्म भूमि बनाया और वह गरीब मनोरोगियों के डाक्टर बने और लाखों रोगियों को इस बिमारी से निजात दिलाई।
एक समय ऐसा आया उनकी पहचान धर्मपुर की पहचान बन गई थी। मै भाजपा के काम के लिए सारे प्रदेश का दौरा करता और बताता कि मै धर्मपुर का रहने वाला हूं तो लोग पूछते वही डॉ वीरेन्द्र मोहन वाला धर्मपुर। खैर इस दुनिया से जाना ही सत्य है। वह एक बार फिर साबित हो गया है। लोग कहते है व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है, लेकिन मै इसमे इतना जोड़कर यह कहना चाहता हूँ कि इंसान जो अपने कृत के साथ अच्छाई बुराई कमाता है उसका लेखा-जोखा भी साथ जाता है। मेरी समझ मे डॉ वीरेन्द्र मोहन की सबसे बड़ी उपलब्धि गरीब को इलाज उपलब्ध करवाना था अच्छी बात है कि उनका क्लिनिक एक योग्य साइकिएट्रिस्ट की देखरेख मे यथावत चलता रहेगा। उनके जाने की क्षति उनके परिवार तक ही सीमित नहीं है अपितु यह क्षति पुरे समाज को हुई है। मै उन्हे नमन करता हुआ अपनी भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ।
#आज_इतना_ही।