पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लिए विचार ;राजतंत्र और लोकतंत्र* *लेखक उमेश बाली*

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राजतंत्र और लोकतंत्र

राज तंत्र में भारतीय या सनातन परंपरा में तीन चीजे महत्व भी रखती थीं और इनके बिना शासन की परिकल्पना ही नही की जा सकती थीं ।1 मुद्रा
मुद्रा के बिना राजा का शासन नही चलाया जा सकता था । हर राजा की अपनी मुद्रा होती थीं यानि मोहर होती थीं , इसके बिना कोई राजा का फरमान या फैसला जारी नही होता था न कोई योजना । यहां तक जंग की स्थिति में भी दुश्मन राजा इस मुद्रा पर आधिपत्य करता था । सन्यास या वानप्रस्थ की स्थिति में राजा अपनी मुद्रा उसे दे कर जाता था जिसका राज्यभिषेक होना होता था ।
2 राज धर्म ।
राज धर्म किसी भी राजा के लिए नीति निर्देशक का कार्य करता था । राज धर्म के बिना भी भारतीय परंपरा में राजा कि परिकल्पना नही की जा सकती थीं । राज धर्म का अर्थ राज्य धर्म से नही अपितु राजा के कर्तव्य से होता था । कोटिल्य के अनुसार राजा की स्थिति राज्य में वास्त्व में एक वेतन भोगी शासक की होती है और उसे केबल वो ही कार्य करने चाहिए जिनसे प्रजा और राज्य का भला हो । राज धर्म का पालन न करने वाले राजा अक्सर अपना राज्य बहुत जल्दी खो देते थे । राज धर्म का अर्थ राजा का प्रजा या राज्य के प्रति कर्तव्य था । राज्य का धर्म कुछ भी हो सकता था । इस नियम को मुगलों ने बदला जिन्होने राज धर्म की जगह इस्लाम को राज धर्म बना दिए और राज्य में भी इसे लागू करने की कवायद शुरू की , मुगलों से सारा संघर्ष इसी से शुरू हुआ और यही आज तक जारी है । जब कि राजधर्म में मुस्लिम बहुल इलाकों में हिन्दू राजा भी हुए और सिख राजा भी हुए । महाराजा हरि सिंह और महाराजा रणजीत सिंह इस बात के सबसे बडे़ सबूत हैं जिन्होंने राज धर्म निभाने में कभी कोई कोताही नहीं की । ऐसे ही राजाओं में पौराणिक काल के हरीशचंद्र , भागीरथ जैसों से लेकर महाराजा रणजीत सिंह तक के उदाहरण हैं । राज धर्म में राजा को पचास वर्ष का होने पर अपने उत्तराधिकारी को राज पाठ सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम में जानें का प्रावधान था और प्रजा भी इसका अनुसरण करते हुऐ वाणप्रस्थ आश्रम को गमन करती थीं ।
3 राज दंड
राजा शासन चलाने के लिए राजदंड धारण करते थे । इसे भी मंत्रोचार के साथ राजा को धारण करवाया जाता था और प्रतीक के रुप में दंड प्रदान किया जाता था । वास्तव में राजधर्म और दंड नीति ही आधार थे शासन व्यवस्था के । धर्म के अनुसार दंड जा उपयोग करना यह शपथ राजा को दिलाई जाती थीं और निष्पक्षता की उम्मीद और हर नागरिक को न्याय मिले इसका प्रावधान यही दो तत्व करते थे । राजा को राज धर्म और दंड नीति से विचलित न होने देने के लिए एक निर्भीक , ज्ञानवान , धैर्यशील मंत्री पद का प्रावधान था जिसे कोई इन गुणों वाला पंडित ग्रहण करता था ।
आज के कुछ इतिहास कार कुछ भी कहें लेकिन भ्रष्ट राजा लोगो के मुकाबले मे राजधर्म और राजदंड धारण करने वाले और इस रास्ते पर चलने वाले बहुत महान राजा भी भारत में हुए हैं जिन्होंने बहुत ही सद्भावना और स्नेह से भारत में राज किया । मै पहले उदाहरण दे चुका हूं । बहुत महान और कार्यव्यशील राजा हुए हैं । मैं उम्मीद कर रहा हूं की वर्तमान प्रधान मंत्री ने राज दंड तो ग्रहण कर स्थापित कर दिया क्या यह दंड उन अपराधी नेताओं पर चलेगा जिन पर अपहरण , हत्या और बलात्कार जैसे आरोप है या यह भी वाहवाही में गुम हो जाने वाला साबित होगा । यह देखना दिलचस्प होगा ।

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