*भीड़ तंत्र: लेखक उमेश बाली*
भीड़ तंत्र
आप सभी मेरे पाठक क्या यह महसूस नहीं करते कि यह देश भीड तंत्र में प्रवर्तित हो रहा है । मैं बहुत अधिक पीछे नही जाऊंगा 1980 से शुरु करता हूं । खालिस्तान नामक भीड का आरम्भ हुआ तब की राजनीति ने भीड़ को एक नेता दिया भिंडरावाला पंजाब में , हथियार मुहैया करवाए गए और उस भीड़ ने पहली बार रक्तरंजित किया निरंकारी लोगो को लेकिन कार्यवाही यह हुई कि उस भीड़ ने दरबार साहब पर कब्जा किया, डी आई जी अटवाल मारा गया , लाला जगत नारायण , उनके स्पूत्र रमेश जी , पहले शिकार बने फिर तांडव बढ़ा हिंदू बसों से उतार उतार कर मारे गए उस भीड़ तंत्र में फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार अपने ही देश में अपने ही धार्मिक स्थल पर आक्रमण करना पड़ा , फिर भीड़ ने प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को लील लिया। इसके बाद जगदीश टाइटलर , एचकेएल भगत जैसे लोग भीड़ का नेतृत्व संभालते है और उन हजारों सिखों को जिनमे महिलाऐं बच्चें भी शामिल होते हैं गले में टायर लगा कर जला डालते हैं, जिनका कोई गुनाह ही नही था ।पूरे भारत में सिखों की दुकानों को लूटा जाता है । वक्त गुजरता है नए प्रधनमंत्री राजीव गांधी एक भीड़ को खुश करने के लिए संविधान बदलते है और दूसरी भीड़ को खुश करने के लिए राममंदिर की नींव रखने की इजाजत देते है । लेकिन तीसरी भीड़ से नाराजगी होती है जिसे LTTE कहा जाता था और वो भीड़ उनको भी निगल जाती है । तब वीपसिंह एक भीड़ को खुश करने के लिएं मंडल कमीशन लाते है तो दूसरी तरफ एक भीड़ कमंडल के नीचे तैयार होती है । दूसरी तरफ तो भीड़ आमने सामने आ जाती हैं , एक आरक्षण समर्थक और दूसरी आरक्षण विरोधी । कई आत्म दाह कर लेते है लेकिन राजनीति चलती रहती है, दृश्य बदलता है नरसिंहा राव प्रधान मंत्री एक भीड़ बाबरी ढांचा तोड़ देती है दूसरी भीड़ बम धमाके करती है । बम धमाकों का नेता दाऊद पाकिस्तान भाग जाता है आज तक कोई उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता । इसी बीच कश्मीर में भीड़ तैयार होती है , बम धमाके और ख़ून की होली शुरू होती है रोज बंद के आवाह्न होते है एक बडी आबादी कश्मीरी पंडितो की अपने ही देश में शरणार्थी हो जाती है । भीड़ से कुछ आदमी निकलते है हवाई जहाज अपहरण करते हैं उग्रवादी छोड़े जाते है। सिलसिला जारी रहता है । हर शहर हर बस अड्डा हर रेलवे स्टेशन यहां तक की संसद पर भी भीड़ से निकले लोग हमला करते हैं। सुबह आरपार की बात होती है शाम को झाग की तरह बक्शे नही जायेंगे के जुमले शुरू हो जाते हैं । इसके आगे एक दूसरी भीड़ सत्ता पर काबिज होती है उसको देश से कम और कमाई पर ज्यादा जोर होता है , एक प्रधनमंत्री जो ईमानदार था वो पिस जाता है क्योंकी उसकी कोई सुनता नही और वो ईमानदार तो थे लेकिन इतने ईमानदार नही थे कि बुराई के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते , भीड़ के कदरदानो ने मुंबई में हमले करवा दिए लेकिन प्रधान मंत्री खामोश । इसी बीच एक तरफ की भीड़ ने गोधरा में बेगुनाह लोगो को रेल में जिन्दा जला दिया कि आसमान भी रो दिया लेकिन तभी एक भीड़ और तैयार होती है और बेगुनाह लोगो पर कहर बन कर टूट पड़ती है नतीजा यह भीड़ एक ऐसी महिला से भी ब्लातकार कर देती है जो गर्भवती थीं जिसका कोई दोष ही नही था। दृश्य बदलता है भीड़ बनती बिगड़ती रहती है 2014 आ जाता है नई उम्मीद के साथ । लेकिन भीड़ का लालच यहां भी शुरू होता है और हत्याओं का दौर शुरू होता है जैसें कानून का कोई मतलब नही । दोनो तरफ की भीड़ कई लोगो को लील जाती है । यह भीड़ संतो को भी नही छोड़ती और पालघर में दो संतो का खून पी लेती है ।भीड़ के ठेकेदार लोग गो रक्षा के नाम पर संस्कृति के नाम पर सेल्फ पोलिसिंग करने लगते है । वी और आज वर्तमान में देखिए इस भीड़ ने मणिपुर में वो किया जो शायद पूरे संसार में नही हुआ । यहीं बस नही अधिकांश राज्यों में जैसे महीलाओं को नग्न और प्रताड़ित करने का चलन शुरू हो गया। भीड़ नही देख रही नाबालिग बच्ची है या बालिग , न मनीपुर के मुख्यमंत्री को शर्म न गहलोत को न ममता बैनर्जी को न नितीश कुमार को ,हर कोई भीड़ का गुलाम है । अगर केंद्र और राज्य सरकारें महीलाओं को सुरक्षा नही दे सकती और कानून का शासन स्थापित नही कर सकती तो कानून और न्याय व्यवस्था और इसका बजट सर्वोच्च न्यायलय को दे दे । किसी मुख्यमंत्री को शर्म नही , गहलोत ने तो महिला सुरक्षा पर सवाल उठाने वाले मंत्री को ही बेशर्मी से बर्खास्त कर दिया ।किसी के पास राजनीती के सिवा कुछ नही न मोहब्बत की दुकान वालों के पास न लड़की हूं लड़ सकती हूं प्रियंका वाड्रा के पास हिम्मत की गहलोत को बर्खास्त करे और दूसरी तरफ केंद्र में हिम्मत नहीं की मणिपुर के मुख्यमंत्री से इस्तीफा ले। अगर ऐसे ही चलता रहा तो यह भीड़ हमे और आपको भी लील जाएगी । सावधान रहिए और चिंतन कीजीए ।
उबाली ।