*पाठकों के लेख :लेखक हेमांशु मिश्रा:- हर गांव कुछ कहता है*

#हर #गांव #कुछ #कहता #है_28
#हेमांशु #मिश्रा

धौलाधार के आंचल में बसे पालमपुर के बंदला गांव में बैठ कर मानसून का इंतज़ार कर रहा हूँ ।बून्द से अपभ्रंश हो कर अब बंद पुकारा जा रहा है और ला यानी दर्रा इन दो शब्दों से ही बंदला शब्द बना है । यानि बारिश की बूंदों को आकर्षित करने वाला दर्रा ही बंदला है ,जिसकी खूबसूरती को न्यूगल खड्ड और प्रखरता प्रदान कर रही है । बंदला में स्व कैप्टन विक्रम बत्रा परम् वीर चक्र विजयेता के माता पिता रहते है , कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद सौरभ कालिया के नाम पर बना खूब सूरत वन विहार भी यही है । पुरानी विंध्यवासिनी मंदिर , व बंदला गांव में स्थित विंध्यवासिनी मंदिर जिसे बंदला मंदिर के नाम से जानते है । इसी गांव के शानदार कंडी पुल में कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुई है । शेरशाह , भूत पुलिस के साथ साथ तेलुगु फ़िल्म के महानायक एन टी आर भी यहाँ अपनी फिल्म का फिल्मांकन कर गए है ।
बंदला , नछीर, बोहल ,झंझारडा ,सांहा आदि छोटे छोटे गांव जो अपनी अदम्य प्राकृतिक छटा के लिये विख्यात है लोगों को बारबार बुलाने पर मजबूर करते हैं । बोहल में प्रकृतिक चश्मा पूरे पालमपुर की प्यास को बुझाता है । वहीँ पानी के टैंक से अद्भुत नजारा दिखता है । किंगल फाल एक बहुत खूबसूरत जलप्रपात यहीं है । ओम हइडल प्रोजेक्ट भी इसी के आंचल में है ।
आज मैं केवल और केवल मानसून तक विषय को सीमित करना चाहता हूँ । कभी चेरापूंजी में सबसे अधिक बारिश पूरे देश मे होती थी ,तो माना जाता था कि हमारी धर्मशाला सबसे अधिक बारिश वाला दूसरा स्थान है । अब मेघालय का मौसिनराम स्थान सबसे अधिक वर्षा के लिये जाना है , वहीँ स्थानीय लोगों के अनुभव के आधार पर बंदला (पालमपुर) दूसरे स्थान पर माना जा रहा है । ऐसा भी माना जाता है कि दक्षिण पूर्व मानसून और उत्तर पूर्व मानसून अपनी यात्रा बंदला के दर्रे तक पहुंच कर ही वापसी करती है । यहां तक की धौलाधार की स्थिति और बंदला के दर्रे के आकार के कारण सर्दियों में उत्पन्न होने वाले पश्चमी विक्षोभ भी यही पहुंच कर मंद पड़ते है । कहते है नाम अपने आप मे बहुत कुछ कहता है ,लेकिन पारंपरिक तकनीकी ज्ञान पर आधारित नामांकन मानसून पर शोध के लिये अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकते है । मौसम वेधशाला अगर यहां खुलती है तो यह स्थानीय ही नही पूरे भारत वर्ष के लिये उपयोगी रहेगी।
वैसे पारंपरिक तकनीक ज्ञान को जानने वालों ने मानसून के भटकाव के बारे में तभी आगाह कर दिया था , जब जेष्ठ महीने के आखिरी 8 दिनों और आषाढ़ के पहले आठ दिनों में यहां मौसम ठंडा हो गया था । यहां इन दिनों को तीर कहते है और जब तीर तपे नही तो मानसून में देरी का अंदाजा लग ही गया था । बंदला अपने आप मे प्राकृतिक छटा ,ज्ञान विज्ञान और जीवन का संगम है ।