*सीखना है तो मिस्टर निगम से सीखो!*
सीखना है तो मिस्टर निगम से सीखो!
यह जो आपको नीचे तस्वीर दिखाई दे रही है यह राधा कृष्ण मंदिर के सामने राष्ट्रीय डेयरी की एंट्री पर सड़क किनारे की तस्वीर है जो जहां पर पिछले लगभग डेढ़ 2 साल से खड्डा बना हुआ था पानी निकल रहा था। हाईवे है, ट्रैफिक बहुत ज्यादा है बस स्टैंड है इसलिए रश भी काफी होता है ,परंतु यहां पर इतना गहरा खड्डा था कि कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती थी ।स्कूटर या बाइक सवार यहां पर अपनी टांग तुड़वा सकता था। आसपास के लोगों ने बताया कि कई बार यहां पर बाइक सवार गिरते गिरते बचे ।
ऐसा नहीं था कि यह कोई इतना बड़ा कार्य था जिसके लिए इतना समय लगा अभी राधा कृष्ण मंदिर का कुछ काम चल रहा था तो गोपाल सूद (सीटू भाई) की नजर में यह खड्डा आया उन्होंने यहां पर तुरंत कंक्रीट डलवा कर इस खड्डे को भरवा दिया जिसमें मुश्किल 2 घंटे भी नहीं लगे होंगे और सामान भी कुछ नहीं लगा सिर्फ थोड़ा सा सीमेंट रेट बजरी लगी, और रोड एकदम क्लियर हो गया।
तो हमारे जन प्रतिनिधि जो हैं वह कब समझेंगे कि उनका काम 12 लाख का या 18 लाख हजार का नहीं होना चाहिए उन्हें जनहित के काम ₹12 से लेकर ₹1800 रुपए वाले भी करवाने चाहिए ।ऐसा नहीं है कि जन प्रतिनिधि यहां से नहीं गुजरते होंगे उनकी आंखों में है खड्डा नहीं आया होगा लेकिन किसी को क्या पड़ी है? अगर लोगों को परेशानी हो रही है तो होती रहे ,किसी की टांग टूटे तो टूटती रहे, इस थोड़े से कम के लिए 2 साल लगे लगते रहे 😢 और अंततः यह काम भी किसी समाज सेवक ने घण्टे भर में करवा दिया।
तो इस बात पर तो उन जन प्रतिनिधियों को थोड़ी बहुत …..गर्व महसूस करना चाहिए कि हम इतने कार्य कुशल कैसे हैं ?जरूरी नहीं कि आप हवाई जहाज उड़ाओ तभी आपका नाम होगा आप सही ढंग से साइकिल या स्कूटी भी चलाओ तो भी आपका नाम हो सकता है। बशर्ते आप साइकिल स्कूटी को जनहित के लिए इस्तेमाल करें ।यह एक उदाहरण नहीं है ऐसे कई उदाहरण है जहां पर केवल चंद घंटे का काम होता है और वह सालों साल लटक जाते हैं ।
काम चाहे पुलिस स्टेशन के पास चौक की टारिंग का हो ,पुराने बस अड्डे पर लीकेज का हो ,पोस्ट ऑफिस के पास ग्रेटिंग लगाने का हो ,फायर ब्रिगेड के पास लीकेज का हो, चंदन होटल के सामने सड़क पर पानी आने का और गड्ढे का हो ,नेहरू चौक के साथ बनी पार्किंग में गंदे सीवरेज के पानी के रिसने का मसला हो, सेंट पॉल स्कूल रोड पर बड़े-बड़े गड्ढो का हो, या फिर बाजार में लीकेज का मामला हो जो महीनों तक ठीक नहीं होती और दुकानदार परेशान होते हैं।
यह कोई ऐसे कार्य नहीं जिनके लिए सेंट्रल गवर्नमेंट से मंजूरी लेनी पड़े, प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनानी पड़े टेंडर लगाने पड़े ,बजट न हो और इसलिए वह कम सालों साल लटक जाए ।यह काम मेंटेनेंस के हैं और इन्हें करने में चंद घंटे का समय लगता है और मेंटेनेंस के बहुत पैसे होते हैं यह पूरी जनता जानती है और मेंटेनेंस के पैसे दिल खोलकर खर्च भी किए जाते हैं वह भी जनता जानती है ।राधा कृष्ण मंदिर के सामने जिस खड्डे की बात हो रही है वहां पर दुकानदारों ने बताया कि कई बार एमसी के निगम के संज्ञान में यह बात लाई गई लेकिन सुनने वाला कोई नहीं 😪
इस बात के लिए गोपाल सूद की तारीफ करनी होगी कि जब भी उन्हें ऐसी कोई समस्या नजर आती है या उनके संज्ञान में लाई जाती है वह तुरंत एक्शन लेते हैं और उसका समाधान करवाते हैं हालांकि उनके पास ऐसा कोई पावर नहीं है फिर भी समाज सेवा से जुड़े होने के कारण वह ऐसे जनहित के कार्य स्वयं करवाते रहते हैं। अधिकारियों से मिलते हैं दौड़ भाग करते हैं और कार्य करवाते हैं आप बताइए कि ऊपर जितने भी उदाहरण दिए गए हैं क्या यह प्रेस या मीडिया में उछालने योग्य हैं ?शायद नहीं! लेकिन कुछ लोग चिड़िया या कोयल की मधुर आवाज से सुबह-सुबह नही उठते उनके आगे ढोल बजाना पड़ता है शायद तभी उनकी नींद खुलती है ।भाई लोगो प्रेस मीडिया को किसी और कार्य के लिए रहने दो यह बहुत छोटे-छोटे कार्य हैं इनको हाईलाइट करने मे प्रेस मीडिया भी शर्म महसूस करता है कि इतने छोटे-छोटे कार्य के लिए चीखना चिल्लाना पड़ता है ,मुद्दा उठाना पड़ता है, जो सही नहीं है। अपने-अपने वार्ड में सभी जनप्रतिनिधि जाते हैं उन्हें स्वयं कभी पैदल चलकर भी देख लेना चाहिए कभी स्कूटी पर चलकर भी देख लेना चाहिए कि कहां पर क्या समस्या है परंतु शायद भारतीय लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं अगर हमारे लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी के किस संस्थाओं की ऐसी हालत होगी तो फिर हम लोकसभा और राज्यसभा वालों से क्या उम्मीद कर सकते हैं? ऐसे स्थानीय निकायों के कार्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कार्य होता है उनकी मोरल ड्यूटी होती है इसमें एमएलए या एमपी का कोई रोल नहीं परंतु अंतत भुगतना MP या MLAको पड़ता है।