Editorial: *हिमाचल_के_संसदीय_सचिवों_की_कुर्सी_पर_और_गहराया_खतरा* Mohindra Nath sofat ex minister
5 जनवरी 2024- (#हिमाचल_के_संसदीय_सचिवों_की_कुर्सी_पर_और_गहराया_खतरा)–
हिमाचल प्रदेश मे 6 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को हाईकोर्ट मे भाजपा के 11 विधायकों द्वारा चुनौती दी गई है। इन नियुक्तियों को संविधान सम्मत होने को लेकर पहले दिन से चर्चा हो रही है। मेरी समझ मे इन नियुक्तियों की विवेचना दो दृष्टिकोण से होनी चाहिए पहली क्या यह कानून की दृष्टि मे सही है या नही। दुसरा क्या वर्तमान मे राजनैतिक दृष्टि से सही या नही। कानून की दृष्टि से पूरे अवलोकन के बाद हाईकोर्ट इस पर निर्णय लेगा। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि संसदीय सचिवों की नियुक्तियां संविधान की इस भावना के खिलाफ है कि मंत्रीमंडल की संख्या विधान सभा की संख्या का 15% से अधिक नही होनी चाहिए और हिमाचल के लिए अधिकतम संख्या 12 तय की गई है। उनका कहना है कि भले इन्हे मंत्री नही कहा जाता है लेकिन वेतन, भत्ते और सुविधाएं सब मंत्रीयों के समकक्ष दे कर आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार पर अनावश्यक भार डाल दिया गया है। याचिकाकर्ता असम और मणिपुर के हाईकोर्ट मे इन नियुक्तियों को खारिज करने की दलील अदालत के सामने पेश कर रहे है। उधर सरकार इन नियुक्तियों को हिमाचल पार्लियामेंट्री सैक्रेटरी अप्वाइंटमैट एक्ट 2006 अंतर्गत की गई बता कर कानून सम्मत ठहरा रही है। खैर मै कानून का जानकार नही हूँ। याचिका पर हाईकोर्ट का अन्तिम निर्णय क्या होगा इस पर राय देने के लिए मै सक्षम नही हूँ, लेकिन हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देकर सी.पी.एस को मंत्रियों वाली सुविधाएं लेने और मंत्रियों वाले कार्य करने पर रोक लगा दी है। विश्लेषक इसे सरकार और 6 संसदीय सचिवों के लिए बड़ा झटका मान रहे है।
सरकार ने कोर्ट मे माना है कि संसदीय सचिव विधायको के वेतन से अधिक वेतन पा रहे है। अब कोर्ट को निर्णय यह करना है कि क्या संसदीय सचिव का पद लाभप्रद पद से संवैधानिक तरीक़े से बाहर किया गया है या नही। मेरी समझ मे संसदीय सचिवों के पदो के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। दुसरी विवेचना इन नियुक्तियों की राजनैतिक दृष्टि से भी होनी चाहिए। सरकार ने कोर्ट को सूचित किया है कि एक्ट के अनुसार संसदीय सचिवों को मंत्री की तरह कार्य करने को लेकर मनाही है। फिर यदि यह काम ही नही कर सकते तो इन पर प्रति वर्ष करोड़ो रूपए खर्च करने का क्या औचित्य है। जबकि प्रदेश हज़ारों करोड़ के कर्ज के नीचे दबा हुआ है। एक वर्ष बीत जाने के बाद मुख्यमंत्री जी पुरे मंत्रीमंडल का गठन नही कर सके और दो मंत्रियों को विभाग नही दे सके। संसदीय सचिवों की नियुक्ति मे उनकी जल्दबाजी उनकी राजनैतिक मजबूरी को ही दर्शाती है। यदि कोर्ट के निर्णय से पहले इस पर सरकार अपने स्तर पर कोई निर्णय करती है तो यह सरकार की दानिशमंदी होगी।
#आज_इतना_ही।