EVM Controversy:- *ईवीएम_को_लेकर_सुप्रीम_कोर्ट_मे_दायर_याचिकाएं_खारिज*
28 अप्रैल 2024- (#ईवीएम_को_लेकर_सुप्रीम_कोर्ट_मे_दायर_याचिकाएं_खारिज)-
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावो के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन मे डाले गए वोट और वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) से निकली पर्चियों के 100 फीसदी मिलान की मांग खारिज कर दी है। मतपत्रों के जरिये चुनाव की मांग को गलत और अनुचित बताया है और पर्चियों को भौतिक रूप से जमा करने को भी गैर जरूरी करार दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि किसी भी व्यवस्था पर आंख मूंदकर अविश्वास करने से अनुचित संदेह पैदा होगा, लेकिन सिंबल लोडिंग यूनिट कंटेनर मे 45 दिन सुरक्षित रखने के आदेश जरूर दिए है। स्मरण रहे पिछले दस वर्षों से ईवीएम पर विवाद चल रहा है और गैर भाजपा पार्टियां इसमे हेराफेरी होने की गुंजाइश बता रही है। इस विवाद को लेकर बार-बार सुप्रीम कोर्ट मे दस्तक दी जा रही है। घुमा-फिराकर नई याचिका डाल दी जाती है।
हमारी गप्पगोष्टी का भी सबसे अधिक चर्चित विषय यही है। वहां भी इस पर सदस्यो के अलग-अलग विचार है। सबसे दिलचस्प बात है कि जब तो विपक्ष ईवीएम प्रणाली से मतदान के बाद जीत जाता है तब वह इस प्रणाली को सही मानता है, लेकिन जब हार जाता है तो अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ देता है। इस सन्दर्भ मे मुझे अपना बचपन याद आता है। मै भारतीय जनसंघ का बाल कार्यकर्ता था। वह जनसंघ का शुरूआती दौर था और संघर्ष का समय था। उन विपरीत परिस्थितयों मे जीत की तो कोई संभावना नहीं थी, फिर भी माहौल बनाने के लिए जीत के दावे किए जाते और जब परिणाम आते तो जमानत बमुश्किल बचती। हमारे वरिष्ठ कार्यकर्ता हमारा ढांढस बांधने के लिए कहते कि लोगो ने तो दीपक पर ही वोट दी थी, लेकिन इंद्रा गांधी ने रूस से ऐसी इंक मंगवाई है कि लोग मोहर तो दीपक पर लगाते है और वह दिखती दो बैलो की जोड़ी पर है। दोष ईवीएम पर लगाया जाए या इंक पर यह केवल हार की झेंप मिटाने का तरीका मात्र है। मेरे विचार मे सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद ईवीएम का विवाद हमेशा हमेशा के लिए समाप्त समझा जाना चाहिए। वैसे भी मतपत्र प्रणाली पर लौटना वास्तव मे तकनीकी प्रगति को अस्वीकार करना होगा। यह मानते हुए कि कोर्ट के निर्णय के बावजूद ईवीएम प्रणाली की समय-समय पर समीक्षा होती रहनी चाहिए और जब भी सुधार की गुंजाइश नजर आए वह सुधार होते रहने चाहिए।
#आज_इतना_ही।