#Solan *जिला_सोलन_के_जन्म_से_अब_तक _का_सफर)* महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार
2 सितंबर 2024- (#जिला_सोलन_के_जन्म_से_अब_तक _का_सफर)–
1 सितंबर 1972 को जिला सोलन का गठन हुआ था। आज जिला सोलन को बने हुए 52 वर्ष हो गए है। गठन से पहले सोलन एक छोटा हिल स्टेशन हुआ करता था। मैने 1970 मे कॉलेज मे एडमिशन लिया तो सोलन से कालेज का रास्ता सुनसान हुआ करता था और सारे रास्ते सन्नाटा छाया रहता था। यह ही जिला का सबसे बड़ा कस्बा माना जाता था। इसके बहुत बाद बद्दी और नालागढ भी इंडस्ट्रीयल शहर के रूप मे विकसित हुए। खैर सोलन ने जिला बनने के बाद विकास की जो गति पकड़ी वह अनुकरणीय है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व मे इंडस्ट्रीयल पैकेज का सबसे अधिक लाभ सोलन जिला को ही प्राप्त हुआ है। जब सोलन छोटा था तो इस शहर की समस्याएं भी छोटी थी। शहर विकसित हुआ और बड़ा हुआ तो समस्याएं भी बड़ी और विकराल हो गई। काबिले गौर है कि सोलन ने किसी सरकार की मदद से विकास नही किया अपितु जो विकास दिखाई देता इसमे बड़ा योगदान सोलन वासियों का है। सोलन को लोकेशन का लाभ जबरदस्त मिलता है। यह शिमला और चडींगढ के बीच मे स्थित है और यहां का मौसम लगभग हमेशा सुहावना बना रहता है। सोलन बड़ा हो गया और यहां की नगर परिषद को पदोन्नत कर निगम मे परिवर्तित कर दिया गया। हालांकि ताजे सरकारी आंकडे उपलब्ध नहीं है लेकिन एक अनुमान के अनुसार शहर और शहर पर आश्रित लोगो की संख्या अस्सी हजार से एक लाख हो सकती है। जो भी यहां आता है यहीं बस जाना चाहता है। बाहर के लोगो को यहां का कोसमोपोलटिन कैरेक्टर खूब भाता है।
सोलन शहर जिला का मुख्यालय है इसलिए मेरा ब्लॉग सोलन पर अधिक केन्द्रित है। सोलन लगातार बड़ा हो रहा है और समस्याओं का कोई समाधान नही निकल पा रहा है। आज भी लोग पानी की समस्या से जूझ रहे है। शहर मे पानी की सप्लाई 6-7 दिन बाद होती है। पार्किंग के लिए भी लोग परेशान है। अगर आपको पार्किंग मिल जाए तो समझो दिन अच्छा है। स्वास्थ्य सेवाओं मे भी सोलन पिछड़ा हुआ है। यहां का अस्पताल जिला सोलन के अतिरिक्त सिरमौर जिला और शिमला जिला के कुछ भागों को अपनी सेवाएँ उपलब्ध करवा रहा है, लेकिन यह नाम का ही रीजनल हॉस्पिटल है। उसके लिए बड़ी बिल्डिंग अति आवश्यक है लेकिन निर्माणाधीन बिल्डिंग का काम बहुत ही सुस्त चाल से चल रहा है। इसी प्रकार सीवरेज काम भी अटका पड़ा है। जैसे शहर बढ़ रहा है वह हिल स्टेशन का चरित्र खो रहा है। फ्लैट कल्चर, बढ़ते होटल, रेस्टोरेंट और बहुमंजिला बिल्डिंगो ने सारे जिला को प्रकृतिक पहाड़ों से कंक्रीट के पहाड़ों मे परिवर्तित कर दिया है। मुझे तो अपने छात्रकाल का सोलन बहुत याद आता है। वह छोटा हिल स्टेशन, छोटी समस्याएं, सब परिचित और अपनापन। समय परिवर्तनशील है सब कुछ बदल गया। इस बड़े शहर के बारे मे यही कह सकता हूँ “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर”।
#आज_इतना_ही।