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Tree felling: *इंसान का जीवन सस्ता, पेड़ की कीमत ज्यादा, जटिल नियमों के चलते मुश्किल है पेड़ काटना*

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Tree felling: *इंसान का जीवन सस्ता, पेड़ की कीमत ज्यादा, जटिल नियमों के चलते मुश्किल है पेड़ काटना*

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यह जो चित्रों में आप देवदार के पेड़ देख रहे हो यह शायद पिछले डेढ़ 2 साल से कटे पड़े हैं सड़ने की कगार पर है हैरानी की बात कि इसमें से कुछ पेड़ फॉरेस्ट का ऑफिस के एकदम पिछवाड़े में है इन पेड़ों को इस्तेमाल क्यों नही किया जा रहा।
सरकार को पैसों की जरूरत है तो अगर सरकार गिरे हुए कटे हुए पेड़ों को ही बेचे हैं तो पालमपुर में ही सरकार को लाखों रुपए की आय हो सकती है। और पूरे हिमाचल में तो यह आय करोड़ों में जा सकती है। परंतु फॉरेस्ट कॉरपोरेशन और वन विभाग भी क्या करें इनके भी हाथ बंधे हुए यह कुछ नहीं कर सकते चाह कर भी उन्हें समय से इस्तेमाल में नहीं ला सकते ।इस बेच नहीं सकते ।
हां सड़ जाएंगे वह बात अलग है ।
सरकारी नियमों में विशेष रूप से पर्यावरण से संबंधित या फॉरेस्ट से संबंधित कुछ ऐसे नियम है जिनकी वजह से कई प्रोजेक्ट सड़के विद्युत परियोजनाएं फैक्ट्री तथा इंडस्ट्रियल एजुकेशन संस्थान कई वर्ष तक रुके रहते हैं।
इसी तरह से आवारा पशुओं के बारे में भी नियम है कायदे हैं पेड़ों को काटने के लिए भी नियम है कायदे हैं वह इतने जटिल है कि किसी भी अधिकारी के हाथ खड़े हो जाएं। ऐसा नहीं है कि अधिकारी इस विषय पर संज्ञान नहीं लेना चाहते लेकिन कानून की जटिलताओं को के चलते हुए वह कुछ भी नहीं कर सकते उनके हाथ बुरी तरह से बंधे हुए होते हैं आप डलहौजी के जंगलों में जाइए पर आपको एक नहीं सैकड़ो पेड़ इसी तरह से गिरे हुए कीमती देवदार के पेड़ सालों से गिरे हुए मिले जाएंगे जिनसे लाखों की नहीं करोड़ों की इनकम हो सकती है यदि उन्हें बेच दिया जाए तो ।
अरे भाई आप हरे पेड़ नहीं काट सकते हो तो सुखे गिरे हुए पेड़ों को तो इस्तेमाल करने की बेचने की इजाजत अधिकारियों को होनी चाहिए या नही?कोई अधिकारी अपनी पूरी निष्ठा और ईमानदारी और मेहनत से कार्य करके केस बनाते भी है तो उसकी सालों साल परमिशन नहीं मिलती ।ऐसा भी क्या हुआ। पेड़ों की जान इतनी कीमती क्यों हो गई । 20 आदमी मर जाए लेकिन एक पेड़ न कटे। सड़क के किनारे कोई भी खतरनाक पेड़ किसी बस पर गिर जाए तो उसमें 10-15 आदमी की जान जा सकती है परंतु आप पेड़ नहीं काट सकते यह कैसा नियम और कैसा कानून ।
नियम तो यह होना चाहिए कि आप एक पेट काटो तो दो लगाओ जो पेड़ गिर चुके हैं जो पेड़ खतरनाक है उन्हें काटकर बाजार में बेचकर सरकार को रेवेन्यू जटाओं ।
परंतु क्या करें अंग्रेजों के जमाने के कानून है जिसे बदलने नामुमकिन है लोग कहते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है शायद ऐसा नहीं हो पाएगा लेकिन इस मामले में यह ना मुमकिन ही लग रहा है।

इन चित्र में आप देख ही रहे हैं कुछ पेड़ इतनी खतरनाक ढंग से आवासों पर झुके हुए हैं कि यह गिरकर कभी भी कई इंसानों की जान ले सकते हैं इनमें से कुछ सूखे पेड़ है होटल टी बड के पास ऐसे 5-7 पेड़ हैं जो काफी सालों से सूखे हुए हैं लेकिन उन्हें काटने की मंजूरी नहीं मिल रही है अब इसमें ना तो फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की गलती है ना यहां पर रहने वाले लोगों की …कमी है तो केवल नियमों की ..किसी अधिकारी ने बताया कि बहुत पहले ही इनको काटने और बेचने के लिए अनुमति पत्र भेजा जा चुका है परंतु अनुमति अभी अपेक्षित है .

यह जो पेड़ नीचे कटे हुए पड़े हैं यह डेढ़ 2 साल पहले तूफान में गिरे थे और उन्हें काटकर साइड में किया गया था अब यह देवदार के पेड़ सड़ने की कगार पर है परंतु इन्हें यहां से उठाकर बेचने की अनुमति नहीं मिल रही होगी शायद।

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