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*मेरी मौन सी सुबहें और उदास सी शामें हैं :-तृप्ता भाटिया*

 

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*मेरी मौन सी सुबहें और उदास सी शामें हैं :-तृप्ता भाटिया*

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मेरी मौन सी सुबहें और उदास सी शामें हैं जिनमें ख्यालों की महफ़िल अक्सर सजी रहती है। मैंने कई बार शोर की तरफ पीठ करके मौन का आनंद भी लिया है।

कुछ शामें बेहद उदास शामें होती हैं ये कई बार कई अरसों का दुःख एक साथ समेटे होती हैं और हम जैसे किसी ईश्वर की तरह अपनी ज़िंदगी का निरीक्षण कर रहे होते हैं ऊंचाई से मुझे उदास शामें पसंद हैं एक मौन के साथ घुटनों में सर दिए मैं आसमां तांक लूं मेरे सिर पर ढेरों परिंदों के काफ़िले गुजर रहें हैं । कुछ पहचाने हुए से कुछ ना जाने हुए से सब अपने घर की तरफ लौट रहें हैं और मैं एक प्रश्नचिन्ह लगा देख रही हूं ढलता सूरज उदासियां इतनी नीरव क्यों होती हैं क्यों ये लबों पर खामोशी समेटे रहती हैं क्यों नहीं चीखतीं ये क्यों सिमट जाती हैं जेहन में और बनने लगती हैं कोई नासूर जख्म ज़िन्दगी कभी कभी इतनी उदास क्यों हो जाती है। लोग एक भीड़ की तरह आते हैं ज़िन्दगी में कुछ हाथ मिलाते हैं कुछ गले मिलते हैं हर किसी के निशां रह जाते हैं। पर सबको जाना है एक दिन क्यों मेरे निशां नहीं उभरते किसीके ज़ेहन पर क्यों मैं किन्ही ज़िन्दगियों का आखिरी लफ्ज़ नहीं हूं।
एकदम से कैसे ज़िन्दगी एक व्यस्तता बुन लेती है हमारे चारों तरफ ,हमें खाली नहीं होने देती हम लाख एकांत तलाशें पर ये वक़्त नहीं देती। लोग एक मजमें की तरह साथ चलते हैं एक हुजूम जैसे बाहें फैला हमारी ही ओर तंकता है और हम इस भीड़ के आगोश में सबसे अग्रिम पंक्ति चुनते हैं। ये भीड़ जो मजमें में चल रही थी वो यकायक गायब हो जाती है हमारी हथेलियों से छूट जाते हैं वो हाथ जिन्होंने मुट्ठियों को भींच हमें समझाईं थीं हमारी ताकतें और अंत मे इन सब का आखिरी सिरा होता है एकांत बस एकांत से परे कुछ भी नहीं है ये शाश्वत सत्य है। आपके अंतिम क्षणों में बस एक आप और एकांत ही बचता है । आप उम्रभर लोग जोड़िये और ये एकांत दूर से आपको देखकर मुस्करायेगा आपकी नादानी पर क्योंकि इसे खबर है ये रिश्ता जन्म जन्मांतर का है साथ क्षणिक और एकांत शाश्वत सत्य मुझे प्रेम है इससे।

Tripta Bhatia

नोट: छापने के लिए कॉपी कर सकते हैं शर्त ये है कि फोटो हमारा सुंदर सा लगाईगा। ☺✍️

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