*हम कहाँ हैं? क्या कर रहे हैं?* *लेखिका तृप्ता भाटिया*
*हम कहाँ हैं? क्या कर रहे हैं?* *लेखिका तृप्ता भाटिया*
हम कहाँ हैं? क्या कर रहे हैं? इसकी जानकारी परिवार फिक्र से रखना चाहता है वो जानना चाहेंगे हम खुश हैं, दुखी हैं , तन्दरुस्त हैं या बीमार और बाकी यह जानने के लिए कि कहीं हम उनसे बेहतर तो नहीं कुछ कर रहे या जो कर रहे हैं उसकी कोई ऐसी जानकारी हाथ लगे कि डिफेम कर सकें। यकीन मानिये कहीं अच्छा कर रहे होंगे तो भी चुभेगा और टांग खिंचने की कोशिश रहेगी। सच लिखने-बोलने पर धमकाया जाएगा या षड्यंत्र रचे जाएंगे। फिर अचानक अगर हार मानकर मौत को गले लगा ले तो कायर कहलायेंगे। कुछतो दुश्मन भी तारीफ करेंगे जिनको क्षण भर के लिए एक आंख न सुहाते हों।
मरना तो सबको है किसी को इस बहाने से किसी को उस बहाने से और इस रेस में भी किसी को जीने नहीं देना है आसानी से।
कोई मौत से लड़ रहा कोइ ज़िन्दगी से, क़सूर किसी का नहीं अगर हार हो जाये तो।
वेंटिलेटर पे पड़ा शरीर एक सांस मांगता है जीने के लिए सब चाहते है कोई चमत्कार हो जाये और वह बच जाए। प्रार्थनाओं में रोते हुए आँखे बेबसी से मदद की गुहार लगाते है ईश्वर से। पर वह जिसकी बॉडी वेंटिलेटर पर पड़ी है वह अनजान है इन सबसे एक अलग दुनिया में अपनी ही दुनिया मे उसे पता ही नही होता कि बाहर क्या सब चल रहा है, कौन सा मेला लगा है। वह तो बस अपनी ही धुन में मलंग पड़ा है जैसे कोई जोगी श्मशान की राख लपटे धूनी रमाये इस दुनिया से परे हो।
जो चला गया वो छूट गया, जो रह गए वो हाय तौबा कर सकते हैं क्योंकि हम सब किसी न किसी की परेशानी का सबब बने हुये हैं बिना किसी ठोस कारण के और फिर बोलते हैं एक बार तो बताया होता परेशानी आखिर क्या थी?
दूसरों की खुशियों का ग्रहण बनना छोड़ दें अपनी भी चंद सांसे सकून से आयेंगी वरना एक हाथ दे और दूसरे ले कलयुग में ज्यादा देर लग नही रही अब।