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*आवारा भुरू* *लेखक : विनोद शर्मा वत्स*

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    ( एक भावनात्मक कहानी ) 
                          कहानी
                    विनोद शर्मा वत्स  

                        आवारा भुरू

आवारा भुरू, आप सोच रहे होंगे, ये भी कोई नाम है इसमे ना आदमी नज़र आता हैं ना जानवर?
जानवर पर याद आया, जानवर होता कमाल का है इंसान से भी ज्यादा समझदार वफादार होता है ये। ऐसे ही एक वफादार जानवर की कहानी है जिसका नाम हैं (आवारा भुरू) अब आपको इसके नामकरण का किस्सा सुनाते हैं। भुरू साहब हट्टे कट्टे हमारे घर के पास घूमते रहते थे इनका बदन जनाब सफेद और भूरा था  एक दिन हमने इन्हें भुरू कह के बुलाया और ये साहब अपनी दुम हिलाते हमारी और चले आये बिलकुल वैसे ही जैसे रिश्वत के सामने रिश्वत खोर दुम हिलाता चला आता है।हमने प्यार से इनके माथे को सहला दिया बस फिर क्या था ये  आवारा भुरू हो गये हमारे बिना खरीदे गुलाम।
रोज़ साहब सुबह सुबह बिलकुल वैसे ही हमे ढूंढते चले आते जैसे प्यासा कुँए की और जाता है हमारे मन मे भी इनका हष्टपुष्ट शरीर और मासूम चेहरा देखकर तरस आ गया और हम भी इसको साहब पारले जी बिस्कुट जो दस रुपये का आता है रोज खिलाने लगे।
इनको देखकर इनके दो दोस्त और आवारा  भुरू के ब्रेकफास्ट के समय आने लगे एक भद्र छमिया दूसरा मोती। छमिया का नामकरण ऐसे पड़ा जब वो पहली बार हमसे रूबरू हुईं तो बहुत ही खुशी में गोल गोल नाच कर अपने प्यार का इज़हार करती रही हमारे दिमाग मे तुरंत (छमिया) नाम उभर आया  नाच मेरी बुलबुल
और अब वो भी उस दस रुपये के बिस्कुट के पैकेट में हिस्सेदार हो गई। इतनी सुशील कुतिया मतलब छमिया मैने नही देखी दे दिया तो खा लिया उसकी आंखें परमात्मा ने बिलकुल सुरमे से भरी मोटी मोटी आंखे जिसे देखकर हर कुत्ता उसका दीवाना हो जाये।
अब रही बात तीसरे साथी मोती की जंगली मगर फुल एलिसियेशन नस्ल फुर्ती चीते की तरह, उम्र कोई 2 साल, गज़ब के खड़े दोनो कान ,खूबसूरत तराशा हुआ चेहरा, क्या मजाल जो कोई उसे उसकी मर्जी के बिना छू दे,ये
तीसरे जनाब मोती भी उसी दस रुपये के पैकेट में दो बिस्कुट के हिस्सेदार बन गये।
आवारा भुरू ने इन दोनों को अपने साम्राज्य में शरण तो दे दी। लेकिन ये आवारा भुरू को बिलकुल बर्दाश्त नही की कोई उसकी थाली में मुहँ मारे, उसे पूरा पैकेट ही चाहिये। अंततः मैने एक छोटा पैकेट और लेकर दोनो को अलग से डालना शुरू कर दिया। अब तीनो अपने अपने तरीके से रहने लगे लेकिन कहते हैं ना हर कुत्ता अपनी गली में शेर होता है मेरे बगल में पुराना गावँ देवी मंदिर है बहुत पुराना लेकिन सारा दिन वहा शोर ही होता रहता हैं कभी कभी तो भगवान भी परेशान हो जाते होंगे कि इतना शोर।
वहा के पंडित जी के परिवार ने एक पबेरियन नस्ल का कुत्ता पाल रखा था अब उस ऊंची नस्ल के कुते को ये कैसे बर्दाश्त होता कि गली के आवारा कुत्ते मंदिर या मंदिर के आस पास दिखाई दे या उसके सामने ऊँची आवाज़ में भोंके उसने तुरंत अपनी आवाज़ में भोंक भोंक कर उन आवारा कुतो को समझा दिया कि ये मंदिर और उसके आसपास का इलाका मेरा है तुम यहाँ नही रह सकते ।
वो ठहरे आवारा कुत्ते एक दिन सो कॉल्ड पबेरियान डॉग उनको नीचे मिल गया फिर क्या था उस नवाब पबेरियन को लगा मेरा राज़ है ओर वो दोनो पर भोंकने लगा अब आवारा तो आवारा ठहरे उन्होंने दो मिनट में भाई की नवाबी निकाल दी और पबेरियन दुम दुबा के सीधा छत पर चढ़ गया।
ये तौहीन उस पबेरियन को बर्दाश्त नही हुई उसने जाकर अपने मालिक से शिकायत लगाई की उन दोनों आवारा कुत्तों ने मुझे मारा आप इन दोनों को इस इलाके से भगा दो।
मालिक मालिक ठहरा उसके अंदर का छिपा अहंकार बाहर आ गया उसे लगा मेरा मंदिर है लेकिन शायद पंडित जी ये भूल रहे थे कि मंदिर तो इंसान का हो ही नही सकता ये तो भगवान का घर है जब तक वो चाहेंगे रहेंगे और जब उनका मन ऊब जायेगा तो प्रस्थान का जायेंगे। लेकिन कहते है इंसान अहम के आगे सब भूल जाता है  उस पंडित जी ने  पता लगाया तो उन्हें पता चला कि अंकल जी उन दोनों को बिस्कुट देते है अब पंडित जी का लड़का हमारे पास  आया और कहने लगा कि आपने कुत्ते पाल रखे है उन्होंने हमारे कुत्ते को काट लिया आप उन्हें भगाओ यहाँ से। मैने कहा मेरे पालतू कुत्ते थोड़ा ना है। सड़क पर दिखते है तो मैं बिस्कुट डाल देता हैं और शाम को वो लड़की भी खाना खिलाती है उसे रोको  ।और उस दिन की  बात से संबधो में हल्का तनाव आ गया ।हमारी
प्रॉब्लम ये थी कि हम किराये पर मुम्बई में रह रहे थे इसलिये चुप हो गये वरना हमारा खुद का घर होता तो कुत्ता क्या हम शेर पालते। हमने बात को खत्म करते हुये कहाँ हमारा इनसे कोई लगाव नही हैं आप इन्हें बी एम सी से उठवा दो  इन्हें मार के भगा दो।
बात आई गई हो गई इस बीच कहावत है ना कि अगर ईश्वर देने वाला हैं तो बीच के कीड़े मकोड़े कुछ नही कर सकते और एक दिन पनीर लेकर आ रहा था रास्ते मे वुड साइड होटल के बाहर मिल गये तीनो महानुभाव पूछ हिलाकर ठिठोली करते हुये । मेरे आस पास भंवरे की तरह मंडराने लगे मैने भी वो पनीर उन तीनों को डाल दिया लेकिन तभी कव्वे महाराज कावँ कावँ करते आ गये या यूं कहिये उनका भी आगमन हो गया। अब उन्होंने भी अपना हक़ जता दिया कि हम भी है, थोड़ा सा पनीर हमने उन्हें भी दिया
अब ये सिलसिला धीरे धीरे बढ़ता गया कव्वे महाराज ने अपने दोस्तों में न्यूज़ फेल दी जैसे चैनल वाले खबर को चला चला कर पुरानी कर देते है इसी तरह इन्होने भी अपने सारे यार दोस्तो को इकट्ठा कर लिया बस सिलसिला अच्छा चल रहा था इस बीच पानीवाले का दिल भी उदार हो गया उसने सोचा इतना पनीर दूध बेचता हूँ चलो इस बहाने वो भी 20 रुपये के पनीर को अच्छा खासा देने लगा और पुण्य में अपना योगदान देने लगा।
भुरू आवारा की एक आदत बहुत गंदी है उसे अपनी चीज़ बॉटने में बड़ी तकलीफ होती है लेकिन कर कुछ नही पाता लेकिन मन ही मन में खुंदक खाता रहता है फिर उस पर कोई बच्चा या औरत उसे छेड़ दे तो उसे काट लेता है
होता क्या है मंदिर के बगल में रामजी का ढाबा है जिसे भाभी जी चलाती है वहा मोती और छमिया को तो ऊपर आने दिया जाता है और आवारा भूरे को ऊपर नही आने दिया जाता। एक बात बहुत पते की बता रहा हूँ जानवर अपनी खुंदक कभी नही भूलता है घोड़ा 20 साल, ऊंट अगले जन्म, कुत्ता इसी जन्म में बदला ले लेता है तो आवारा भूरे का रामजी पर तो बस चलता नही क्योंकि वो डंडे से भगा देते थे ऐसा नही वो भगाते ही थे कभी कभी प्यार से बुलाते भी थे भाभी जी और बिटिया हमेशा इन तीनो को बिस्कुट और दूध पिलाती रहती थी  लेकिन जब उसे डॉट  पड़ती या कोई उसे पत्थर मारता तो वो अपनी खुंदक मोती छमिया के साथ साथ आने जाने वाले शरारती लोगो पर भी निकालता है जो उसे उकसा कर जाते है या  सोते हुये को पत्थर मारते जानवर है प्यार दोगे तो शेर भी बकरी बन जायेगा लेकिन अगर सताओगे तो फिर वो बदला जरूर लेगा क्योंकि जानवर जो ठहरा।
अभी एक हफ्ते पहले पता चला कि भुरू आवारा ने किसी लड़की को काट लिया ये सुनकर बहुत दुख हुआ मन में पीड़ा हुई उस लड़की को लोग डॉ के पास ले गये एक दो लोग बोले मेरा कुत्ता है इस पर मेरे जवाब देने से पहले कुछ लोगो ने उन बोलने वालों का मुहँ बन्द कर दिया की खिलाते तो सब हैं इससे उनका कुत्ता थोड़ा ना होता है लेकिन मुझे दिल से दुख हुआ चाहे गलती लड़की की थी या नही लेकिन ये तीनो इस हरकत के बाद मेरे दिल से उतर गये और मैने उन्हें वहा से भगा दिया और उस दिन से उनको पनीर भी देना बंद कर दिया।अब वो तीनो परेशान है कि आखिर हमारे साथ ऐसा वर्ताव क्यों ? हमने किया क्या है ? यही सोच कर ये दोनों आवारा भुरू और मोती  मेरे इर्दगिर्द ही चक्कर मारते रहते है
मैने दोनो को अपने से दूर कर दिया है इनके चक्कर मे कव्वो का खाना भी बंद है भुरू की आँखे उस पश्चाताप को साफ दिखा रही है कि उससे गलती हुई है  उस का मेरे मारने पर भी डरना और विरोध ना करना। उसकी आँखों में डर साफ दिखता है उसकी आंखें आंसुओ से भरी हुई है उसके चेहरे पर निराशा हुई  वो बार बार मेरे को अपनी मासूमियत से ये ही कह रहा है कि मुझे गलती हो गई मुझे माफ़ कर दो मुझसे प्यार करो मुझे खाना दो। मेरे सिर पर प्यार का हाथ फेरो मुझे भुरू कह कर पुकारो।
दोस्तो मेरी समझ में नही आता कि मैं क्या करूँ मैं भी उन तीनों को लेकर परेशान हूँ लोग जानवरो के दुश्मन क्यों है वो सीधे हैं सरल है प्यार तो सबको चाहिये अपने अहंकार को छोड़ कर खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो। वरना ईश्वर की नज़र गलत हुई तो फिर कोई नही बचा पायेगा  पहले कोरोना से मरे हो अब कोई और संकट आयेगा।

विनोद शर्मा वत्स

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