पाठकों के लेख एवं विचार
*”वादा”:- विनोद वत्स*
( वादा )
हालात ने सब छीन लिया
दर्द दिया बेचैनी दी
कैसा दौर आया
वक़्त पड़ने पर मैं काम ना आया
कुछ स्तिथियाँ, कुछ डर का दर्द, इतना हावी हो गया
कि मैं टूट गया बिखर गया
बस अब एक लाश हूँ जिंदा
जो रोज उठती है खाती है काम करती है फिर रात को सो जाती है
सच
वक़्त कमाल का होता है
जिसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी
उसी को छोड़ना पड़ा गया
मैं जिंदा रहकर भी मर गया
आँख नही मिला पाऊंगा उससे कभी।
जो कभी मेरा आसमा थी मेरी ज़मी थी
सच किसी से वादा ना करना
पता नही कब
वक़्त बीच मे आकर
तुम्हारी अकड़ निकाल दे।
सच ये 12 खाने अपना खेल दिखाते है
ये नो ग्रह
आदमी को लट्टू की तरह घुमाते है
इसलिये
किसी से वादा ना करना
पर कोशिश जरूर करना।
क्योंकि वादे टूट जाते है
और कोशिश कामयाब हो जाती है
विनोद वत्स की कलम से