*पाठकों के लिए एवं विचार*हिमाचल प्रदेश की कश्ती किसी ओर किनारे की ओर खिसकती नज़र आ रही है* संजीव थापर*
हिमाचल प्रदेश की कश्ती किसी ओर किनारे की ओर खिसकती नज़र आ रही है । अरे भाई कश्ती में जगह कम है और बैठने वालों की भीड़ ज़्यादा है । कुछ ने तो पानी में भी छलांग लगा दी है और उचक कर कश्ती में सवार होने की कोशिश कर रहे हैं । अब इनके लगातार बढ़ते धक्कों से कश्ती हिचकोले खाने लगी है और डर है कि कहीं पलट ही ना जाये । किनारे पे खड़े निशानेबाज़ शिकार करने के लिये तैयार बैठे हैं । कईयों ने तो कश्ती में कहां बैठना है सब निर्धारित कर लिया है । तमाशबीनों की सांसें ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे अटकी पड़ी हैं । मंदिरों के घण्टे लगातार बज रहे हैं , अरे भाई भगवान को मनाने की कोशिशें भी लगातार हो रही हैं । भगवान के चेहरे पर एक महीन सी मुस्कुराहट उभर आईं है । वह सोचने पर मजबूर हो गये हैं कि यह मैनें सृष्टी में किस का निर्माण कर दिया है किसे भेज दिया है । ये मानव मुझे तभी याद करता है जब लालचवश किसी चीज़ को पाना चाहता है और वह उसे नहीं मिलती । मैं तो हूँ ही । और नीचे कुर्सी की कशमकश लगातार जारी है । नये नये पैंतरे फैंके जा रहे हैं , अपनी अपनी गोटियां बिठाई जा रही हैं । अब ना जाने किसके भाग्य में छींका फूटता है दोस्तो । मैं चूंकि उच्च रक्तचाप का दौड़ाक हूँ इस लिये कश्ती की तरफ से अभी तक आंखे मूँदे था किंतु यह मोई उत्सुकता इतनी बड़ गई है कि बार बार मेरा मुंह पकड़ कर कश्ती की ओर घूमा रही है लेकिन मैंने भी उसको एक घुड़की लगा कर अपने से अलग कर लिया है , अरे भई मैं अभी इतनी जल्दी ऊपर नहीं जाना चाहता । मुझे आपकी टकटकी लगाती नज़रों पे भरोसा है और आशा है कि कश्ती किस ओर का रूख लेती है आप मुझे जल्द बताएंगे ।