*आप_और_भाजपा_पार्षदों_मे_धक्का_मुक्की_के_बाद_टला_मेयर_का_चुनाव*
10 जनवरी 2023– (#आप_और_भाजपा_पार्षदों_मे_धक्का_मुक्की_के_बाद_टला_मेयर_का_चुनाव)-
दिल्ली नगर निगम के चुनावों के बाद शुक्रवार को नवनिर्वाचित पार्षदों के शपथ ग्रहण व महापौर चुनाव के लिए आयोजित निगम सदन की बैठक हंगामे की भेंट चढ़ गई। इतना ही नहीं निगम पूरी तरह से पार्षदों के झगड़े मारपीट के लिए अखाड़े मे तब्दील हो गया। जनता द्वारा चुनकर निगम मे भेजे गए आप व भाजपा पार्षदों ने सारी मर्यादा को ताक पर रख कर मारपीट करते हुए जमकर हंगामा किया। इस कारण से उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त पीठासीन अधिकारी सत्य शर्मा को अगली बैठक तक के लिए सदन स्थगित करना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह हंगामा आप पार्षदों द्वारा एल्डरमैन के मनोनयन को लेकर और उनके वोट के अधिकार का विरोध करते हुए शुरू किया गया।
स्मरण रहे उपराज्यपाल दस एल्डरमैन को नगर निगम का सदस्य मनोनीत करते है। यह दस मनोनीत सदस्य शुक्रवार की बैठक मे उपस्थित थे। जब उपराज्यपाल द्वारा मनोनीत पीठासीन अधिकारी भाजपा पार्षद सत्या शर्मा ने मनोनीत सदस्य मनोज कुमार को शपथ के लिए आमंत्रित किया तो आप पार्षदों ने नारेबाजी शुरू कर दी।वह मनोनीत सदस्यों की शपथ और उनके मत देने के अधिकार का विरोध कर रहे थे। भाजपा पार्षदों ने भी उनके विरोध मे नारेबाजी की और दोनो ओर से मारपीट करने और पार्षदों के घायल होने के आरोप लगाए गए। नगर निगम के चुने हुए सदस्यों का यह व्यवहार सड़क छाप गुन्डो की श्रेणी मे ही माना जाएगा। मेरे विचार मे राजनिति परिपक्व लोगो का क्षेत्र है। किसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना बड़ी बात है। जिनको यह अवसर मिलता है वह बहुत भाग्यशाली माने जाते है लेकिन उनका व्यवहार परिपक्व और शालीन होना चाहिए। किसी सदन मे अपनी बात रखने का एक तरीका और प्राक्रिया है। इनका पालन करते हुए आप अपनी बात कह सकते हो और विरोध भी दर्ज करवा सकते हो। हंगामा करना मारपीट पर उतर जाना अपने ही सदन के साथियों को घायल कर देना लोकतांत्रिक परम्परा नहीं है।
मुझे नही पता मनोनीत सदस्यों को लेकर किसका पक्ष सही है और किसका गलत है लेकिन हंगामा करने और मारपीट करने के लिए दोनो पक्ष गलत है। मेरी समझ मे राजनैतिक पार्टियों को परिपक्व लोगो को ही टिकट देना चाहिए और मतदाताओं को भी परिपक्व लोगो को चुन कर भेजना चाहिए। ऐसी घटनाओं और ऐसे चुने हुए प्रतिनिधियों के व्यवहार से चुने हुए प्रतिनिधियों की छवि जनता मे धूमिल हो चुकी है और जनता मे उनका मान- सम्मान भी कम होता जा रहा है। मेरे विचार मे यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। सभी राजनैतिक दलों को विचार-विमर्श कर सभी चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए सदन और सदन के बाहर सद- व्यवहार के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।