Mandi/ Palampur/ Dharamshala

*जहां सरकार ने बैठने के लिए पहले बेंच लगाए ,उसके साथ ही डस्टबिन लिटिरबिन जड़ दिए हैरानी होती है ऐसी सोच पर*

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*जहां सरकार ने बैठने के लिए पहले बेंच लगाए ,उसके साथ ही डस्टबिन लिट्टरबिन जड़ दिए हैरानी होती है ऐसी सोच पर*

Tct chief editor

मोदी जी ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला था उसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने सरकारी तंत्र पर बहुत बड़ा प्रश्न लगाया था कि सरकार के जिम्मेवार लोग केवल ए सी कमरों में बैठकर ही निर्णय लेते हैं फील्ड में क्या स्थिति है कोई प्रोजेक्ट वहां पर वायबल भी है या नहीं किसी प्रोजेक्ट की अहमियत या संभावना कितनी है  यह जो प्रोजेक्ट बन रहा है यह जिसमें सरकारी पैसा लग रहा है उससे लोगों को फायदा होगा या नुकसान यह सोचने का किसी के पास वक्त नहीं प्रोजेक्ट से फायदा ना हो तो फिर भी समझ आ सकता लेकिन उल्टा नुकसान हो जाए यह बात समझ से परे है और यह कोई नहीं सोचने का कष्ट करता। केवल फाइलों को आगे सरका कर  कार्य करते हैं ताकि वह जिम्मेवारी से बचे रहें। क्योंकि इसमें उनकी सैलरी में कोई फर्क नहीं पड़ता। सरकार का कोई प्रोजेक्ट कितना ही फ्लॉप हो जाए कितना ही लोगों के लिए फायदे के बजाय नुकसानदायक हो उसका उनसे कोई मतलब नहीं। केवल वे यही सोचते हैं कि इसमें मेरा क्या ?और इससे मेरा क्या? मतलब सीधा सा है की उसमें से अगर किसी पदाधिकारी को कुछ मिलता है फिर तो वह उसमें इंटरेस्ट लेगा अगर कुछ नहीं मिलना है तो फिर वह इंटरेस्ट क्यों लेगा ।

मतलब इसमें मेरा क्या ?और इससे मुझे क्या?

पालमपुर नगर निगम जब से बना है तब से यह विवादों के घेरे में ही रहा है चाहे वह स्ट्रीट लाइट का मामला हो या शौचालय बनाने का हो या कूड़ा इकट्ठा करने का मामला हो या फिर डस्टबिन लगाने का अगर मंदिर में शौचालय बन सकता है तो फिर  जहां पर सरकार ने टूरिस्ट के बैठने के लिए बेंच लगाए हैं उससे एकदम सटाकर डस्टबिन लिट्टरबिन लगा दिया जाए तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि यह नगर निगम पालमपुर है ।

हद है यार मिस्टर निगम पता नहीं हम अनपढ़ हैं या आप ज्यादा पढ़े लिखे हो… कम से कम इतनी लिहाज तो कर लेते कि सामने पूर्व स्पीकर विधानसभा का बोर्ड लगा हुआ है …साथ में लोगों के बैठने की जगह है.. बेंच लगे हैं.. और सड़क के उस पार एक पालमपुर का बहुत बड़ा नामी होटल है जिससे पालमपुर का नाम रोशन हो रहा है । इस होटल की वजह से पालमपुर की खूबसूरती को चार चांद लगे हैं चांद पर थूकना तो हमारी आदत है।

अफसोस जहां पर भी पालमपुर के लिए कोई अच्छी बात हो वहां पर मिस्टर निगम अपनी लात जरूर मारता है ।शायद हम लोगों को (पालमपुरियों) समझ नहीं आता है … मिस्टर निगम के शासक और प्रशासन इन दोनों की सोच वहां से शुरू होती है जहां से हम जैसे आम जनता की सोच खत्म होती है।
यह डस्टबिन लिट्टरबिन यहां पर क्या कर रहा है???
बुजुर्ग ,महिलाएं और टूरिस्ट यहां पर बैठकर पालमपुर के चाय बागानों का नजारा लेते थे और तुमने यहां पर बदबू फैला दी 😢😓कुछ तो शर्म कर लो हमें तो अक्ल नही अनपढ़ हैं परंतु तुम तो इतने पढ़े लिखे हो कम से कम पूर्व स्पीकर का ही ध्यान रख लेते लिहाज कर लेते। जहां पर फूल होने चाहिए थे वहां पर डस्टबिन😓 पर्यटकों का ही ध्यान रख लेते ,जो बुजुर्ग वहां पर बैठकर अच्छा समय पास करते थे उनका ही ध्यान रख लेते। शायद पालमपुर वालों को मिस्टर निगम की उच्च कोटि की बातें समझ नहीं आती 🤔अगर आप कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो जहां कुछ थोड़ा सा अच्छा है वहां पर गन्दगी या बुराई तो मत फैलाइए। अगर आप किसी को सुख नहीं दे सकते किसी का दुख बांट नहीं सकते तो कम से कम किसी को दुखी तो मत कीजिए। किसी पर फूल नहीं भरता सकते तो पत्थर तो मत फेंकिए।
हर रोज फजीहत होती है फिर भी कुंभकरण की नींद सोए रहते हैं ना जाने कब समझेंगे यह दोनों ही चाहे वह पार्षद हो या फिर निगम शासक हों।
सरकार पहले बेंच लगाएगी बाद में साथ ही डस्टबिन लगाएगी ताकि वहां पर कोई बैठ ही ना सके मुझे तो खुद पर शर्म आ रही है अपनी छोटी और घटिया सोच पर शर्मिंदा हो रहा हूं।

 

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