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*मैं तुम्हारा शरीर था ,,,प्रेम दिवस पर विशेष**विनोद वत्स की कलम से*

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प्रेम दिवस पर मेरी नई रचना
            ( मैं तुम्हारा शरीर था)

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तुम्हारे प्रेम का उपहार
तुम्हारे अधरों का प्यार
मन को सुकून दिल को चैन देता है
सोचता हूँ जब तुम्हारी मनमोहक छवि के बारे में
दिल के सूने आसमान में एक तूफान उठने लगता है
रेशम से तुम्हारे केश
लगते है काले घुमड़ते बादल
और जब उन बादलों से रिसती है मोती की लाडिया
सच उन लड़ियों को अपनी अंजुरी में भर निहारता रहता हूँ
तुम्हारे खूबसूरत अक्स को
जो उन मोतियों में झलक रहा है
सच उस वक़्त
वक़्त ठहर जाता है
चांद सितारों का समूह
मेरी अंजुरी के इर्दगिर्द
तुम्हारी तुम्हारी इक झलक पाने को
आपस मे उलझ जाता है।
जो मुझे बर्दाश्त नही
इसलिये मैं अपनी अंजुरी को बंद कर
उसे प्रेम के गिलास में डाल गटा गट पी जाता हूँ
और तुम्हारी सुंदर छवि को अपने अंदर समा लेता हूँ
क्योंकि हम और तुम
अलग ही कब थे
तुम मेरी आत्मा
और में तुम्हारा शरीर था।
मैं तुम्हारा शरीर था

विनोद वत्स की कलम से

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