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*”शरारती हुस्न:” विनोद वत्स की कलम से**

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शरारती हुस्न

शरारती हुस्न महफ़िल को लूट लेता है।
नज़र के तीर से दिलो को बींध देता है।

उसके तरकश में अदाओं के तीर होते है।
वो जिसको देख ले उसको लील देता है।

बड़ी अदा से वो चौसर पे चाल चलते है।
की जैसे उड़ती पतंग को कोई ढील देता है।

क्या मज़ाल किसी की नज़र बहके नही।
हरेक शय में वो इश्क ए जाम घोल देता है।

वो हार जाए किसी से उन्हें बर्दाश्त नही।
वो जीत जाए इसलिये सबका मोल देता है।

विनोद वत्स की कलम से

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