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*Editorialलड़के_का_लड़के_से_और_लड़की_का_लड़की_से_विवाह_को_कानूनी_मान्यता_देने_के_लिए_सुप्रीम_कोर्ट_मे_हो_रही_बहस महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*

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26 अप्रैल 2023- (#लड़के_का_लड़के_से_और_लड़की_का_लड़की_से_विवाह_को_कानूनी_मान्यता_देने_के_लिए_सुप्रीम_कोर्ट_मे_हो_रही_बहस)-

भारत का अपना इतिहास, अपनी संस्कृति और सारे विश्व से अलग अपना सनातन धर्म है। बहुसमाज के सनातन धर्म की जड़े बहुत गहरी है। हालांकि सनातन धर्म की भले औपचारिक तौर पर शिक्षा नहीं दी जाती लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी सनातन धर्म की शिक्षा और परम्पराएं अगली पीढ़ी को सौंप दी जाती है। खैर आजकल सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष संविधान पीठ जिसका नेतृत्व मुख्यन्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड कर रहे है वह समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुनवाई और विचार कर रही है। मेरी समझ मे कानून बनाना संसद का काम है और कानून को परिभाषित करना कोर्ट का अधिकार है, लेकिन सरकार की ओर से सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता के इस तर्क को कि कानून बनाना संसद का अधिकार क्षेत्र है को नकारते हुए कोर्ट सुनवाई जारी रखे हुए है।

मेरे विचार मे कोर्ट को समझना चाहिए कि इस प्रकार के विवाह को कानूनी मान्यता देने का निर्णय भारत की संस्कृति के ही नहीं अपितु भारतीय समाज की आत्मा के भी खिलाफ होगा। जिस देश के बच्चे खेल मे गुड्डे गुड्डी का विवाह रचाते हुए बड़े होते हो निश्चित तौर पर ऐसा निर्णय कभी भी उनके गले नहीं उतरने वाला है। अंग्रेज़ी दैनिक की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 99.9 प्रतिशत लोग समान लिंग विवाह के विरोध मे है। कोर्ट मे सुनवाई के समय की गई टिप्पणियों के चलते लोग आने वाले निर्णय को लेकर चिंतित है। देश के वकीलों की सर्वोच्च संस्था बार कौंसिल ने एक सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कर कोर्ट से अपील की है कि कोर्ट इसमे दखल न दे और इस पर सरकार को निर्णय करने दिया जाए। रविवार की बैठक के बाद कौंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा का कहना था कि भारत विभिन्न धर्मों, विभिन्न जातियों और विभिन्न परम्पराओं का देश है। इसलिए इसके मौलिक सामाजिक ढांचे को ध्यान मे रख कर ही कोई भी कानून बनना चाहिए। निश्चित तौर पर इस प्रकार का कानून संसदीय प्रक्रिया से ही आना चाहिए ।

मै बार कौंसिल के मत से सहमत हूँ क्योंकि संसद ही ऐसा मंच है जहां पर लगभग सभी विभिन्न धर्मों, जातियों और विभिन्न परम्पराओं का पालन करने वाले लोगो के प्रतिनिधि उपस्थित रहते है। वह किसी कानून का समाज पर क्या प्रभाव होगा इसको किसी भी अदालत से बेहतर समझते है।मेरे विचार मे विधियका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को संविधान द्वारा परिभाषित अपने अपने क्षेत्र मे काम करना चाहिए। किसी को भी दुसरे क्षेत्र मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और अतिक्रमण तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। मेरी समझ मे इस विषय पर यदि कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देता है तो वह विधियका के क्षेत्र मे अतिक्रमण ही माना जाएगा।

Mohinder Nath Sofat Ex.Minister HP Govt.

#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।

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