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*पांच अस्पतालों के चक्कर  लगाने के बाद आखिर सिविल हॉस्पिटल पालमपुर में ही हुआ मरीज का इलाज!*

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पांच अस्पतालों के चक्कर  लगाने के बाद आखिर सिविल हॉस्पिटल पालमपुर में ही हुआ मरीज का इलाज!

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यह घटना आज से लगभग 6-7 दिन पहले की है जब एक महिला मरीज सन्तोष कौर  जोकि सीनियर सिटीजन है को हृदय रोग की वजह से जगह-जगह के हॉस्पिटल के चक्कर लगाने पड़े। उनके पुत्र ने बताया कि  पहले वह नामी गिरामी प्राइवेट हॉस्पिटल गए उसके बाद वह टांडा मेडिकल आये  फिर दो तीन अन्य प्राइवेट हॉस्पिटल्स के में इलाज करवाने के लिए गए परंतु उन्हें कहीं से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। अंततः बहुत ही सीरियस हालत में उन्हें उनके अभिभावकों द्वारा सिविल हॉस्पिटल पालमपुर ले कर आये जहां पर डॉक्टर उमेश कश्यप को उन्होंने अपनी बुजुर्ग महिला मरीज को दिखाया।

मरीज के तीमारदार ने बताया कि डॉ कश्यप ने जब मरीज की हालत देखी तो वह बहुत ही नाजुक थी वह व्हीलचेयर पर भी बैठ नहीं पा रही थी उनका शुगर लेवल 300 से ऊपर था तथा सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी। पल्स रेट 100 के करीब था बी पी बहुत अधिक 100/160 था ,तो डॉ कश्यप ने शीघ्र ही उनका इलाज करना शुरू किया उनके कुछ जरूरी टेस्ट करवाएं तथा उन्हें एडमिट करके उनका इलाज शुरू कर दिया ।
इलाज शुरू करने के 5-6 घंटे बाद ही उनका शुगर लेवल 270 के पास आ गया तथा उनके दिल की धड़कन भी थोड़ी नॉर्मल होने लगी। डॉ कश्यप ने उन्हें पूरी रात अपने ऑब्जरवेशन में रखा तथा रात को 2:30 बजे भी उनसे उनकी तबीयत के बारे में जानकारी ली और हॉस्पिटल स्टाफ को जरूरी निर्देश दिए।

तत्पश्चात सुबह वह बुजुर्ग महिला रोगी लगभग अपनी नॉर्मल कंडीशन में आ चुकी थी उनके अभिभावकों ने बहुत राहत की सांस ली और कहा कि हम इतने बड़े बड़े हॉस्पिटल में जाकर आए इतना अधिक खर्चा किया ,बड़े-बड़े टेस्ट करवाए ,लेकिन किसी ने भी इस तरह से ट्रीटमेंट नहीं किया। किसी भी डॉक्टर ने डॉक्टर उमेश की तरह निजी तवज्जो नहीं दी ।
डॉक्टर कश्यप की निजी तवज्जो के कारण आज उनकी माता जी बिल्कुल स्वस्थ है जिसके लिए उन्होंने डॉ उमेश कश्यप का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया और कहा कि मरीज को इलाज से अधिक डॉक्टर की तवज्जो की जरूरत होती है। डॉक्टर यदि मरीज से तहजीब और प्यार से पेश आए तो मरीज का आधा रोग तो वैसे ही दूर हो जाता है ।डॉक्टर यदि मरीज का पूरी तरह से ख्याल रखें उसकी भावनाओं को समझे तथा उसे ठीक होने का हौसला प्रदान करें तो इलाज और दवाईयों से ज्यादा डॉक्टर के हौसले और उसके निजी तव्वजो मरीज को बहुत फर्क पड़ता है डॉक्टर की मरीज के प्रति तवज्जो और व्यवहार दवाइयों से ज्यादा काम करती है ,जैसा कि डॉ कश्यप ने किया।

मरीज की हालत ठीक हो गई इससे ना केवल मरीज के अभिभावक और तीमारदार ही खुश नही थे बल्कि  डॉक्टर कश्यप ने भी कहा कि आज मुझे अपने डबल सैलरी मिल गई और वह भी बोनस के साथ, क्योंकि एक डॉक्टर के लिए इससे बड़ी सैलरी  और बोनस कुछ नहीं होता कि उसका मरीज जो कि बहुत ही सीरियस हालत में हो ,ठीक हो जाए किसी भी डॉक्टर के लिए इससे बड़ा इनाम   कुछ नहीं होता।

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