*राजनीति और हम:*राजनीति की अपनी अपरिहार्यताये हो सकती है लेकिन जनता को उनसे मतलब नही *
राजनीति और हम
राजनीति की अपनी अपरिहार्यताये हो सकती है लेकिन जनता को उनसे मतलब नही ।
जनता देख रही है लेकिन खामोश है कि अपराधी लोगो के लिए राजनीति सबसे बडी पनाहगाह है । अगर संसद में में गंभीर अपराधी के आरोपी बैठे है और हमारे लिए कानून बना रह हैं यह देश और हमारा दुर्भाग्य है । यह और भी दुर्भाग्य है कि राजनितिक व्यवस्था उन पर कार्यवाही ही नही होने देती ।सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि उनके सामने न्याय व्यवस्था भी पंगु है । ऐसा आजादी के बाद जीप स्कैंडल से शुरू हुआ और मर्ज बढ़ता गया लेकिन दवा की फिक्र किसी को नही । देश का बहुत कम प्रबुद्ध वर्ग इन चीजों के खिलाफ आवाज़ उठाता है लेकिन स्वार्थ में घिरे कार्यकर्ता बीच में दीवार बन कर खडे हो जाते हैं । आम लोग जो मेहनत मजदूरों करके पेट पाल रहे है उनकी मजबूरी है और भय है जो उन्हे मुखर नही होने देता लिहाजा यह सिलसिला जारी है। उत्तर प्रदेश इसका ज्वलंत उदाहरण है , जहां मजबूरी में सरकार को सेंगर को कानून के हवाले करना पड़ा लेकिन इज्जतदार सांसद वहां जेल में भी उससे मिलने जाते है । यह भीं सत्य है कुछ राजनीतक अपराधियों या बाहुबलियों के खिलाफ कार्यवाही जारी है , लेकिन जब बात गृहमंत्री के स्तर पर हो तो एक राज्य मंत्री के बचाव में सरकार खड़ी होती है दूसरी तरफ एक व्यक्ती के खिलाफ बलात्कार जैसे अशोभनीय आरोप है और उसके आगे भी सरकार और कार्यकर्ता नतमस्तक है और वो बडी शान से शेयर सुनाया करता दिखाई देता है हर कोई रक्षात्मक दिखाई देता है वो दिन भी थे और वो नेता भी थे जिन्होंने जरा सा दाग उछलने पर त्याग पत्र दिए और अपना सारा राजनेतिक जीवन ही पाक साफ़ साबित करने पर लगा दिया । इनमे मुख्य नाम आडवाणी , सोनिया गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के है । कभी सरदार पटेल जैसे कद के नेताओं ने देहली में अपने रिश्तेदारों को चक्कर लगाने से मना कर दिया था कि मैं नहि चाहता मेरी छवि पर दाग का कोई छीटा भी पड़े । वर्तमान प्रधानमन्त्री भी अपनी छवि के लिए सजग रहते हैं और बेहद अनुशासन प्रिय और प्रशासक है । पता नही क्या मजबूरियां है जो अपराधी सांसदो पर कोई संसद में कोई निर्णय नहीं हो पाया ।
दूसरी तरफ विपक्ष है जिसके अपने नेताओं के चेहरे भ्रष्टचार में दाग दार हैं और अपनी सफाई में ed CBI पर आरोप लगाते है और जांच के सिलसिले में अपने कार्यकर्ताओं की भीड़ को सड़क पर उतार देते हैं और कार्यकर्ता भी अंधे हो कर वो करते हैं जो वास्त्व में देश के लिऐ उचित नहीं है । बहुत से भ्रष्टचार के केस बहुत पुराने हैं जब केंद्र में भाजपा की नही अपितु उनकी अपनी सरकार थी । लालू यादव इसमें सबसे बडा उदाहरण है लेकिन विपक्ष को उनसे भी समर्थन लेने से परहेज नहीं । नेशनल हैरल्ड का मामला भी सरकार का नही है अपितु अदालत का हैं। ममता बैनर्जी कितनी भी सादगी पसंद क्यों न हो लेकिन उनकी नाक के नीचे भी भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखी गई । नोटो के पहाड़ जनता ने देखे हैं । क्या यह लोग इसलिए इतना पैसा इक्कठा करते हैं कि एक दिन विदेश भागना है देश को लूट कर ? मेरे पाठक एक बार गहरे से सोच कर देखे तो रूह भी कांप जाएगी । ऐसे एक नही हजारों उदाहरण पक्ष और विपक्ष में मिल जायेंगे । कांग्रेस के परिवार वाद को किनारे भी रख दे तो समाजवादी से लेकर एनसीपी और कश्मीर की एनसी तक सब एक पारिवारिक दल हैं , तामिल भी अपवाद नहीं ।क्या हम धीरे धीरे फिर रजवाड़ा शाही की तरफ बढ़ रहे और राज्यों की सरकारों का व्यवहार देश के लिए ऐसा ही है , यहां तक सादगी पसंद झारखंड के मुख्यमंत्री भी इसकी चपेट में हैं ।
ऐसे हालात में आशा की किरण बन कर जो उभर रहे हैं उनमें रेल मंत्रि , नितिन गड़करी , जयशंकर प्रसाद , ज्योतिरादित्य , राजनाथ सिंह , खुद प्रधानमंत्रो हैं जिनसे मैं अभी उम्मीद कर रहा हूं कि कुछ न कुछ देर सवेर कड़ा रुख अपनाएंगे और हर घर नल की तरह हर व्यक्ति को न्याय से जोड़ेंगे ।
धन्यवाद । उबाली ।