Thursday, September 28, 2023
पाठकों के लेख एवं विचार*ऐसे थे पापा जी, पिता जी*

*ऐसे थे पापा जी, पिता जी*

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ऐसे थे पापा जी पिता जी

वो पिता ही थे
जो चुप रहकर सब कह देते थे
अपनी डॉट से
सारी सजाये सुना देते थे।
याद है एक किस्सा
हुआ यूं की
एक बार हमने स्कूल से लंबी छुटी मारी
रोज़ दोपहर को कर देते
स्कूल जाने की तैयारी
पूरा दिन बाहर मस्ती करते
उतना ही पैदल चलते
की पांच पैसे बच जाये
उसकी टिक्की पीस खाते
और पाँच पैसे की टिकट लेकर
शाम को सही वक्त पर
अपने घर पहुँच जाते.
एक दिन
मम्मी पापा कमला नगर आये
सोचा
चलो
विनोद के लिये भी भल्ले बनवा ले
स्कूल पास है
देते हुये चले जायेंगे
स्कूल में आकर क्लास टीचर से पूछा
विनोद शर्मा 10th d
कलास टीचर बोला
पिछले दस दिनों से उड़न छू है
दोनो की आवाज़ एक साथ निकली
क्या ?
दस दिनों से ?
मम्मी बोली टाईम पे जाता है
और टाईम पे घर आता है
दोनो का गुस्सा सातवें आसमान पे था
दोनो बाहर आये
और वो भल्ले किसी बच्चे को देकर
सीधा घर चले आये
हम रोज़ की तरह
अपने टाइम पे घर आ गये
लेकिन जब माँ को हाथ में
नया रैकेट लिये दुर्गा बने देखा।
कुछ सोचे
माँ ने पूछा
आ गया स्कूल से
मैने कहा हाँ
बस फिर क्या था
वो नया रैकेट
मुझ पर बरसने लगा
जैसे किसी दुश्मन देश पर
बमबारी हो
और वो रैकेट की बमबारी
तब तक होती रही
जब तक वो टूट ना गया
हम भी ढीठ थे
पिटते रहे रोते रहे।
मम्मी मारते मारते थक गई
तो हम भी चुप हो गये
तब पापा बोले
बहुत मार लिया
अब जान लोगी
चलो
अब इसे हल्दी वाला दूध पिलाओ
बच्चा है गलती हो ही जाती है
ऐसे थे पापा
सच
पापा ने शायद ही कभी मारा हो
लेकिन
मम्मी का कोई दिन ऐसा जाता होगा
जो उन्होंने हमें ना मारा हो।
लेकिन फिर भी
love you mami papa.

Vinod sharma vats

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