BK Sood chief editor

कहते हैं कि पहले राजा महाराजा गरीब लोगों का शोषण करते थे खुद के लिए बड़े-बड़े महल, चौबारे ,किले बनाया करते थे वहां पर लोगों से दिन रात काम लेते ऊपर कोड़े भी बरसाते थे और उन्हें केवल इतना देते कि वह केवल अपना पेट भर सके इससे ज्यादा कुछ सोच ना सके ।
सामंत शाही और रजवाड़ा शाही खत्म हुई और स्वतंत्रता का दौर आया लेकिन यह स्वतंत्रता किसे मिली? क्या उनको जिन को इसकी जरूरत थी ? जो दलित शोषित थे या रजवाड़ों के जुर्म से पीड़ित थे ?
आजकल के तथाकथित राजा महाराजा और सामंतों के कथन अनुसार तो हिंदुस्तान हम सब आजाद हैं। हमें अपनी रोजी-रोटी कमाने का तथा अपना घर अपनी इच्छा अनुसार चलाने का पूरा हक है।
परंतु यह सब किताबों मे संविधान में लिखी बातें हैं ।वास्तव में आमजन की क्या हालत है यह आज के राजा महाराजा को न जानने की जरूरत है ना सोचने की फुर्सत । ये लोग जनता की नब्ज को बहुत अच्छी तरह से पहचान चुके हैं कि इन्हें केवल धर्म जाति और व्यापार तथा रोजगार के नाम पर बांट कर रखो ।इन्हीं मुद्दों में उलझा कर रखो ,तभी यह लोग दबे रहेंगे और चुपचाप अपनी रोजी-रोटी के जुगाड़ में दिन रात एक करते रहेंगे। अगर यह लोग अमीर हो गए साधन संपन्न हो गए तो यह हम लोगों को उखाड़ फेंकेंगे। इसलिए दल कोई भी हो वह हमेशा यही चाहता है कि हमारे मतदाता किसी ना किसी रूप से अपनी ही समस्या में उलझे रहें और हम उनकी भावनाओं तथा उनकी मजबूरियों से खिलवाड़ करते रहे और सत्ता में बने रहें।
अगर इन लोगों को अपनी रोजी-रोटी से फुर्सत मिल गई तो यह है देश के बारे में सोचना शुरू कर देंगे और हम लोगों से प्रश्न करना शुरू कर देंगे।
लोकतंत्र असली मायने क्या है इसके असली उदाहरण पश्चिमी देशों में मिलते हैं ।
हमारे यहां तो केवल स्वतंत्रता है हमें वोट करने की और वह वोट की स्वतंत्रता हमारी मजबूरियां और लालच तथा हमारी इनसे उम्मीदें खा जाती हैं। हम यह सोचते हैं कि यह वाला दल कोई खास कार्य नहीं कर रहा वह वाला दल सत्ता में आएगा तो हमारे लिए बहुत ही अच्छी चीजें बनाएगा, परंतु हम आमजन जिनको मैंगो पीपल भी कहते हैं सत्ता में कोई भी आए वह इस मैंगो को चूस का फेंक देते हैं ,और गुटलियां ऐसी जगह पहनते हैं कि और इसी तरह के मैंगो उगते रहे और हम इन्हें चूस चूस कर फेंकते रहें।
आज चंडीगढ़ के वीआर पंजाब मॉल में जाने का मौका मिला वहां पर कुछ लोगों से बात की जो वहां पर सेल्स काउंटर पर बैठे होते है इन लोगों की व्यथा भी बहुत पीड़ादायक है लड़कियों की ड्यूटी सुबह 9:30 से लेकर शाम को 7:30 बजे तक लगती है और लड़कों की दोपहर को 12:30 से लेकर रात को 9:30 बजे तक हैरानी की बात है कि इन लोगों को इन 9 घंटों में बैठने की इजाजत नहीं है यह 9 घंटे खड़े होकर अपनी ड्यूटी करते हैं चाहे वह लड़की हो या लड़का सिर्फ आधे घंटे के लिए लंच का समय दिया जाता है तथा आधे घंटे के लिए टी ब्रेक होती है। और तनख्वाह के नाम पर इन्हें महीने भर के 8000 से ₹9000 दिए जाते हैं यानी ₹300 प्रतिदिन और वह भी 9 घंटे की ड्यूटी करने के बाद ।
इनमें से कुछ युवक और युवतियां पोस्ट ग्रेजुएट तक है परंतु घर की मजबूरियां इन्हीं यहां पर 9 घंटा खड़े रहने के लिए मजबूर कर देती हैं। ऊपर से इन कंपनियों की मालिक हमेशा इन्हें सर्विलांस पर रखते हैं कि कहीं कोई लड़का या लड़की 10 मिनट के लिए कहीं जाकर बैठ तो नहीं गया अगर यह 10 मिनट के लिए भी कहीं आगे पीछे चले जाएं तो इन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है।
कितनी बुरी दशा है इन लोगों की और कितना शोषण हो रहा है इनका…., यह सोचने की किसी को फुर्सत नहीं है.।
आप सोचिए 9 घंटे काम करने के बाद अगर ₹300 मेहनताना मिले तो उस इंसान की माली हालत और जानी हालत कैसी रहेगी ?
आजकल एक मशहूर की आम मजदूरी भी ₹400 से अधिक की है और वह भी 6 से 7 घंटे तक काम करता है। इलेक्ट्रिशियन प्लंबर कारपेंटर पेंटर या कोई भी टेक्निकल वर्कर्स 1 घंटे के ₹300 ले लेता है और यह पोस्ट ग्रेजुएट किए हुए लोग 9 घंटे के ₹300 कमा रहे हैं ,तो भारत में अब मजदूरी की ज्यादा वैल्यू है और पढ़े लिखे लोगों की कम .।
यही हाल पंजाब के टेंपरेरी टीचर्स का भी है जिन्हें ₹6000 के लगभग सैलरी मिल रही है और उनमें से कुछ डॉक्टरेट किए हुए भी हैं ।यह टीचर लोग स्कूल जाने के बाद ऑटो रिक्शा चलाने या सिलाई कढ़ाई का काम करने के लिए मजबूर है ।कुछ लोग छुट्टी वाले दिन मजदूरी भी कर लेते हैं। क्या कभी किसी नेता ने इनके बारे में सोचा शायद किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं यही हमारे लोकतंत्र की त्रासदी है।