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*लोगो के दोहरेपन को देख मुस्कुरा देने की कला आ गयी है,,:Tripta Bhatia*

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*लोगो के दोहरेपन को देख मुस्कुरा देने की कला आ गयी है,,:Tripta Bhatia*

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पहले किसी के दूर जाने पर मुझे परेशानी होती थी रिश्ता कोई भी हो कोशिश रहती थी सब सामान्य कर लूं। पीछे भागना,तमाम तरह की कोशिशें करना। फिर धीरे धीरे मैने भागना छोड़ दिया, ढूंढना छोड़ दिया..यहां तक कि फॉरमैलिटी भी करना छोड़ दी। कोई एक कदम दूर जाता है तो मैं खुद को बहुत दूर … अब तो मलाल भी न होता। लोगो के दोहरेपन को देख मुस्कुरा देने की कला आ गयी है,,पहले सिर्फ हाँ की आदत थी अब एक झटके में ना कह देना आदत बन गयी है। जीवन के अनुभवों ने सिखलाया है ना बोलना, दूर जाना काफी नपा तुला सा भी हो जाना सही है और यह जरूरी भी था। मन की तकलीफ जब देह को पीड़ा पहुचाने लगे तो खुद को बदल लेना ही सच है। किसी के हिस्से का न दर्द लेना न दर्द की बजह बनना।
वैसे भी रोज़ रोज़ सुनना ही तो है तुम बदल गए हो “हाँ” बड़े बन गए हो आजकल। भले ही आप इस बड़प्पन में खुद को छोटा महसूस कर रहे हों या उसकी आपको बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही हो क्योंकि बड़ा होना तो अपनेआप में बड़ी जिमेबारी लेकर आता है।
बदल लो खुद को किसी को बदलना कहाँ मुनासिब है न किसी को परखने की चाह रहेगी न बेहतर बनाने या दिखने का क्लेश बस शर्त यह कि गिरगिट न हो जाना।

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One Comment

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