Editorial: *हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने देशभर में लोकतंत्र के लिए पेश की नजीर*
अगर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से इन्हें राहत नहीं मिलती है तो भारतीय भारतीय लोकतंत्र में यह निर्णय एक मील का पत्थर साबित होगी, लोकतंत्र में नैतिकता की राजनीति को बढ़ावा देना बेहद जरूरी
*हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने देशभर में लोकतंत्र के लिए पेश की नजीर*
हिमाचल प्रदेश एक शांत और सहनशील राज्य के रूप में जाना जाता है यहां पर देश के सबसे अधिक गैलंट्री अवॉर्ड्स मिले हैं जिससे इस वीर भूमि भी कहा जाता है वीर होने के साथ-साथ शांत स्वरूप और सहनशीलता इस प्रदेश की संस्कृति रही है। लेकिन पिछले दिनों हिमाचल में सियासी भूचाल के बीच विधानसभा अध्यक्ष का ऐसा फैसला जिसने हिमाचल की राजनीति में नया इतिहास लिखा।
दल-बदल विरोधी कानून एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने पर संसद सदस्यों (सांसदों)/विधानसभा सदस्यों (विधायकों) को दंडित करता है। विधायकों को दल बदलने से हतोत्साहित करके सरकारों में स्थिरता लाने के लिये संसद ने वर्ष 1985 में इसे संविधान की दसवीं अनुसूची के रूप में जोड़ा। और देश में दल बदल कानून को पारित करके यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि लोग अपने निजी हितों के लिए देश या प्रदेश के हितों को दाव पर नहीं लगाएंगे अपने फायदे के लिए देश या जनता का नुकसान नहीं करेंगे और ना ही चुनावों का बोझ जनता पर डालेंगे ।
इसका ताजा तरीन उदाहरण बिहार के नीतीश कुमार का है जिन्होंने कितनी बार दल बदल किया और सत्ता में रहने के लिए साम दंड भेद की नीति अपनाईराजनीति में इन दिनों अधिकतर नेता दल-बदल विरोधी कानून की खामियों का फायदा उठा रहे हैं। ये नेता पार्टी समर्थक राजनीति को एक नौकरी की तरह मानते हैं। वे किसी भी एक दल में तब तक ही रहते हैं जब तक वहां रहना उनके अनुकूल होता हो। ऐसा नहीं होने पर वे तुरंत पाला बदल लेते
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने अपने एक फैसले में कांग्रेस के सभी 6 बागी सदस्यों की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी।
कांग्रेस के जिन 6 बागी विधायकों को विधानसभा सदस्यता के लिए अयोग्य करार दिया गया है, उनमें सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्रदत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, देविंद्र भुट्टो और चैतन्य शर्मा शामिल हैं। हिमाचल विधानसभा के इतिहास में अपने किसी विधायक को अयोग्य करार देने का यह पहला फैसला है। उन्होंने विधायकों के इस आरोप पर जवाब दिया कि उन्हें व्हिप का उल्लंघन करने के बारे में अध्यक्ष द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई थी जबकि विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें व्हाट्सएप और ई मिल के द्वारा व्हिप का उल्लंघन करने की सूचना दे दी गई थी जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त है जिसे बागी विधायक मानने को तैयार नहीं है उन्होंने कहा कि वैसे भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा देेश की पहली ई-विधानसभा है। ऐसे में सदस्यों को व्यक्तिगत तौर पर किसी भी प्रकार का आदेश पहुंचाना जरूरी नहीं है। इस विषय में एक कानून की अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर का बयान भी आया है जिसका सारी है कि
“दलबदलुओं पर रोक लगाने का सही तरीका: इन्हें विधायिका से हटाओ और चुनाव लड़ने पर रोक लगाओ – अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर
हिमाचल हाई कोर्ट के अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर का कहना है कि दलबदलुओं पर रोक लगाने का सही तरीका यह है कि दलबदलुओं को विधायिका से हटा दिया जाए और उनकी सीट खाली घोषित कर दी जाए तथा उनकी भविष्य में चुनाव लड़ने व उन्हें मिलने वाली पेन्शन पर रोक लगा दी जाए। किसी विशेष पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने के बाद दलबदल करना मतदाताओं की तरफ से उस उम्मीदवार पर व्यक्त किए गए भरोसे के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर ने विधानसभा अध्यक्ष के दल-बदल विरोधी कानून के तहत 6 विधायकों की सदस्यता को खत्म करने के फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताया है”
राजनीति में इन दिनों अधिकतर नेता दल-बदल विरोधी कानून की खामियों का फायदा उठा रहे हैं। ये नेता पार्टी समर्थक राजनीति को एक बिजनेस की तरह मानते हैं जब तक जिस बिजनेस में फायदा हो उसमें रहो और जब बिजनेस घाटे का सौदा हो जाए तो उसे तुरंत छोड़ दो। या कहीं किसी अन्य कम्पनी में आपको प्रमोशन मिले अधिक पैकेज मिले तो पहली कंपनी को अलविदा कहकर नई कंपनी ज्वाइन कर लो। वे किसी भी एक दल में तब तक ही रहते हैं जब तक वहां रहना उनके अनुकूल होता हो। ऐसा नहीं होने पर वे तुरंत पाला बदल लेते हैं। वीरेंद्र ठाकुर के कथन को अगर सही माना जाए तो यह लोकतंत्र के लिए एक नजीर स्थापित होगी और उच्चतम न्यायालय को भी यही चाहिए कि वह एक ऐसा फैसला सुनाए जिस पर दल बदल कानून में हो रही खामियों के कारण लोग उसका फायदा ना उठाएं और लोकतंत्र पर बार-बार चुनाव का बोझ ना पड़े। जब तथाकथित जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ते हैं तो एक सेवक के रूप में खुद को प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए सिर्फ जन सेवा चाहिए। हमारे पास जो भी धन दौलत या संपत्ति है वह हमारे वोटर इस्तेमाल कर सकते हैं हम उनके लिए सब कुछ निछावर करने को तैयार है ,परंतु अंत में होता यह है कि अपने हितों के लिए जनता के हितों को बिना सोचे समझे ही निछावर कर दिया जाता है सड़क शिक्षा स्वास्थ्य बिजली पानी बेरोजगारी सुरक्षा इन सब बातों का कोई महत्व नहीं रहता और अगर इस तरह के राजनैतिक ड्रामे हो जाए तो उसकी तरफ शासन और प्रशासन का कभी ध्यान ही नहीं दे पाता सरकार का ध्यान अपनी कुर्सी को बचाने में लगा रहता है क्योंकि वह अपने को सत्ता में बनाए रखने के लिए जी जान से लगे होते हैं जनता के मुद्दे उन्हें गौण प्रतीत होते हैं और ना ही उनकी और वह ध्यान दे पाते हैं।
हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने अपने फैसले में हिमाचल विधानसभा में घटित सारे घटनाक्रम का जिक्र किया है और सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह इस बारे में अपने दिशानिर्देशों पर फिर से दृष्टि डाले ताकि लोकतंत्र में नैतिकता की राजनीति को बढ़ावा दिया जा सके।