*चाय_बगान_के_दिन*


#चाय_बगान_के_दिन


#हेमांशु_मिश्रा की कलम से
धौलाधार में
श्वेत, ध्वल, चांदी सी
बर्फ फिर छाई है
वही तलहटी में
हरियाली से सराबोर
बारिश से नहाये
चाय के बगीचे
ताज़गी लाएं हैं
चाय बागान में
मेले सा माहौल है
आंगन भी चाय की
भीनी भीनी खुशबू से
महका है
गीत गुनगुनाती
कमला, पुष्पा, राजो, साजो
एक कतार में
थोड़ी थोड़ी दूरी में
बिनते, चुनते
तोड़ रही हैं
एक कली दो पत्तियां
कोमल सी चाय पत्तियां
बैसाख महीने में
रौनक है
अप्रैल तोड़ भी
त्योहार ही है
बगीचे में बह रही है
मद्धम सी हवा
हल्के झोंके में
राग है , बहार है,
प्यार है , मल्हार है
और इनके साथ थिरक रहे हैं
कैल, ओइ, खिडक और पज्जे
के दरख्त
सूरज तपने से पहले
वजन मापी स्प्रिंग लिए
बरामदे के कोने में
खड़ा तरलोक
बारी बारी
तोल रहा है
चाय पत्ती से भरे कीरटे
लिख रहा है
कॉपी में हिसाब
चाय पत्तियों को
समेटने सहेजने
बनाने संवारने में
सूरज भी चढ़ आया है
और
दूसरे बरामदे में
बिछ गई है पंगत
बंट गए है पत्तल
सभी पंक्ति में बैठ
धाम से भोजन का
ले रहे है आनन्द
दूर एक कोने में
तेज धूप के नीचे
चटाइयों में
सुखाई जा रही
तोड़ी हुई पत्तियां
एक चटाई में
अभी हरी ही हैं पत्तियां
तो चन्द चटाइयों में
चाय पत्तियां
काला रंग ओढ़े
कड़क हो गयी हैं
स्वप्न टूट गया है
स्मृति जग गयी है
कभी
बहार टी एस्टेट
बन्ड बिहार में
यह रोजमर्रा
की कवायद थी
ऐसे थे सुनहरे दिन
मेलजोल सहयोग के दिन
रिश्तो को सम्मान के दिन
चाय की चुस्की के दिन
चाय की महक के दिन
समाजिक समरसता के दिन
धौलाधार के आंचल के दिन
चाय बगान के दिन