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*पालमपुर नगर निगम करोड़ों के बजट के बावजूद अधूरा विकास*

प्रशासन स्तर पर तो स्टाफ की कमी हो सकती है लेकिन शासन स्तर पर सभी पोस्टिंग भरी हुई है😊

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*पालमपुर नगर निगम करोड़ों के बजट के बावजूद अधूरा विकास।

Tct ,bksood, chief editor

*पालमपुर नगर निगम, जो पहले नगर परिषद हुआ करती थी, आज अपने बढ़े हुए बजट (अब करोड़ों में) और संसाधनों के बावजूद शहर के वास्तविक विकास के लिए कोई ठोस कार्य नहीं कर पा रही है। कितने ही पर्यटन सीजन बीत गए, सभी यही सोचते रहे कि पूर्व नगर परिषद प्रधान राधा सूद का सपना – म्यूजिकल फाउंटेन – चलेगा और पर्यटकों को आकर्षित करेगा, पर यह सपना अधूरा रह गया। अगर यह म्यूजिकल फाउंटेन बन जाए जो आधा अधूरा बन पड़ा है उस पर बहुत कम खर्च होगा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा परंतु यहां पर्यटकों को आकर्षित करने की कोई नहीं सोच रहा। हैरानी की बात यह है कि जब कोई भी पर्यटक पालमपुर में दर्शनीय स्थलों को पूछता है तो सबकी जुबान सिल जाती है कि क्या जवाब दें। कौन सा पर्यटक स्थल बताएं?

पर्यटन नगरी पालमपुर के लिए यह स्थिति चिंताजनक है। नगर निगम न तो राधा सूद के समय शुरू किए गए प्रोजेक्ट्स को पूरा कर पा रही है, न ही पर्यटकों या बुजुर्ग नागरिकों के लिए कोई नई सुविधाएं विकसित कर रही है। बजाय इसके, सिर्फ पुराने कार्यों को उखाड़कर नवीनीकरण का छोटा-मोटा काम ही चल रहा है – जैसे विक्रम बत्रा मैदान की बेंचें हटाकर नई टाइल्स लगा देना। सीताराम पार्क जैसी प्राइम लोकेशन भी उपेक्षित पड़ी है।

यह दृष्टिकोण न तो शहर को विकसित करता है, न ही जनता की जरूरतों को पूरा करता है। राधा सूद के नेतृत्व वाली पूर्व नगर परिषद के समय संसाधन कम थे पर सोच बेहतर थी। आज बजट करोड़ों में है, पर सोच संकुचित हो गई लगती है – शौचालय बनाने तक सीमित, वह भी ऐसी जगहों पर जहां उनकी आवश्यकता ही नहीं। और सुबह 10:00 बजे खुलते हैं और शाम को 5:00 बजे बंद हो जाते हैं छुट्टी वाले दिन छुट्टी पर रहते हो या गौशाला में शौचालय बनाए जाते हैं शौचालय ऐसी जगह बने हैं जिन्हें बने हुए तीन-चार साल के बावजूद भी ताले लगे हुए हैं

अगर यही हाल रहा, तो आने वाले चुनावों में इसका सीधा असर दिखेगा। जनता अब दिखावटी विकास से संतुष्ट नहीं होगी। उसे ठोस योजनाएं, सुविधाएं और दीर्घकालिक विकास चाहिए। नगर निगम को राधा सूद जैसे नेताओं के सपनों को पूरा करने के साथ-साथ 50 साल के विजन के साथ काम करना चाहिए, न कि सिर्फ 5 साल के लिए। अगर कार्यशैली नहीं बदली, तो जनता का विश्वास उठना तय है।

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