Renu sharma
लगभग 18 साल से पंजाब के कच्चे शिक्षक teachers ₹6000 प्रतिमाह पर काम कर रहे हैं इनमें से कुछ डबल MA, B.Ed Phd किए हुए हैं। इनमें से बहुत से टीचर कोई मजदूरी करने को मजबूर कोई ऑटो चलाने को मजबूर और कोई फल सब्जी बेच कर अपना गुजारा कर रहे है ।
क्या पंजाब सरकार इन्हें बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल नहीं कर रही??
,₹6000 में ,यानी ₹200 प्रतिदिन के हिसाब से आज कौन इंसान काम करता है?
एक मजदूर या सफाई कर्मचारी की दैनिक मजदूरी भी 400 और 500 के बीच है तो इन लोगों को मजदूरों से भी नीचे रखा गया है। क्या यह इतने पढ़े लिखे लोगों का अधिशोषण नहीं है।
2 साल, 3 साल तो कॉन्ट्रैक्ट जॉब हो सकती है ….परंतु 18 साल से कॉन्ट्रैक्ट जॉब …और वह भी 6000 में …यह लोग कैसे अपना घर चलाएंगे कैसे घर का किराया देंगे कैसे बिजली पानी है बच्चों की फीस दवाइयां और अपने माता-पिता का ख्याल कैसे रखेंगे क्योंकि इनके माता-पिता ने इन्हें बड़े चाव और शौक से इतनी उच्च शिक्षा दी होगी कि यह पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी करेंगे और हमारी सेवा करेंगे हमारे बुढ़ापे का ख्याल करेंगे। हमें क्या मालूम था कि पढ़ने लिखने के बाद भी मजदूरों से भी कम पैसे कमा पाएंगे और मजदूरों से भी कम इज्जत होगी उनकी।
काश इन्हें भी कोई टिकैत टकर जाता जो इनकी समस्याओं को सुलझा पाता है।
यह लोग तो पानी की टंकी पर बैठकर आंदोलन कर रहे हैं और आंदोलन महीनों से नहीं बल्कि बरसों से कर रहे हैं परंतु सभी सरकारें आती हैं वादा करती हैं और इन्हें भूल जाती हैं। ट्रैक्टर ने पिछले चुनाव में इन्हें रेगुलर करने का वादा किया था वह अपने 5 साल निकाल कर चले गए अरविंद केजरीवाल वादा कर रहे हैं मैं भी आएंगे और शायद ही कुछ कर पाए क्या इन पढ़े लिखे नौजवानों की जो आंदोलन करते करते और पक्का होने की राह जोहते जोहते अब बूढ़े हो चले हैं सुनने वाला कोई नहीं?