*पाठकों के लेख :*हेमंत सीनियर जर्नलिस्ट*
-पहले प्लेन हाइजैकिंग की ग़ज़ब कहानी
-51 साल पहले आज हुआ था अपहरण
-केस अभी भी अदालत में

लेखक हेमंत सीनियर जर्नलिस्ट
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साल भर पहले यह पेज शुरू करते ही मैनें इस हाइजैकिंग पर दो पोस्ट डाली थी। एक मित्र के कहने पर दोनों को एकसाथ डाल रहा हूं। थोड़ी लंबी है—
भारत में विमान अपहरण की करीब 15 घटनाऐं हुई हैं। कुछेक बेहद डरावनी थी। लेकिन पहली हाइजैकिंग बेहद रोचक और रहस्यमयी है। इसे आज 51 साल हो चले हैं। कई सवालों के जवाब आज भी नहीं है। केस आज भी दालत में है। यह अपहरण दो मुल्कों की खुफिया एजेंसियों की शह और मात जैसी कहानी भी है। कहीं मिस्ट्री है तो कहीं चीजें साफ भी दिखती हैं। संक्षेप में कहें तो अपहरण का सारा प्लान रचा गया पाकिस्तान की आईएसआई की देखरेख में। अपहरण हुआ, लेकिन उसे करवाया भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने अपने हिसाब से। इसका असर हुआ ईस्ट पाकिस्तान (अब बंगलादेश)में। अपहरणकर्ता हाशिम कुरैशी पाकिस्तान में तो 10 साल की सजा काट आया है, लेकिन भारत में अभी गवाहियां हो रही हैं। आतंकी संगठन जेकेएलएफ का संस्थापक सदस्य रह चुका हाशिम कश्मीर में रहता है और बाकायदा एक सियासी पार्टी चलाता है। हालांकि हाशिम कुरैशी कतई नहीं मानता कि उसने रॉ के लिए काम किया था।
देश के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कश्मीर में यदि कुछ सीधा है तो वो पॉप्लर के दरख्त हैं। सही बात है। तमाम ऐसे मामले और लोग हैं जिन्हें समझते-समझते चक्कर आ जाए। हाइजैकिंग और हाशिम कुरैशी में भी सीधा कुछ नहीं है। ये कहानी है इंडियन एयरलाइंस के विमान गंगा के अपहरण की। 30 जनवरी 1971 को हाशिम कुरैशी और उसके चचेरे भाई अशरफ कुरैशी ने श्रीनगर से जम्मू जा रहे गंगा का अपहरण किया था। इसे वे 26 यात्रियों सहित लाहौर ले गए।अपहरण खिलौना पिस्तौल और लकड़ी के ग्रेनेड के जरिये किया गया था। अशरफ की करीब 9 साल पहले पाकिस्तान में मौत हो गई है।
बात शुरू होती है 16 साल के कश्मीरी लड़के हाशिम कुरैशी से। तब कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का खेल जोरों पर था। कश्मीर में एक प्लेबिसाइट फ्रंट बना हुआ था। उसी से जुड़े जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जेकेएनएलएफ) का हेड था मकबूल बट। यह ज्यादातर पाकिस्तान से ऑपरेट करता था। कश्मीरी आतंकवादी/अलगाववादी इसे पहला कथित शहीद मानते हैं। कुरैशी सहित कई युवा उस जमाने में उसे खूब पसंद करते थे। पहली बार कुरैशी 1969 में अपने परिवार के साथ पाकिस्तान गया और मकबूल बट से मिला। जेकेएनएलएफ में शामिल हुआ और कुछ महीने बाद घाटी वापस आ गया। यहां से कहानी कुछ और हो गई।
हाशिम कुरैशी ने कई जगह कहा है कि वापस आने के बाद उसे श्रीनगर में बीएसएफ का एक इंस्पेक्टर मिला था। उससे दोस्ती हो गई और बॉर्डर पार करवाने की डील कुछ यूं हुई कि हाशिम वहां से ऑपरेट होने वाली एक आतंकी तंजीम की सूचनाएं लाएगा। हाशिम को बॉर्डर पार करवा दिया गया। लेकिन वहां जाकर मकबूल बटआदि आतंकियों से मिलने पर दूसरा ही प्लान बन गया। रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत ने अपनी किताब कश्मीर द वाजपेयी ईयर्स में हाशिम के हवाले से लिखा है- मकबूल बट का आइडिया था कि कश्मीर मसले को दुनिया तक पहुंचाने के लिए उन्हें प्लेन हाईजैकिंग जैसा काम करना पड़ेगा। हाशिम को जिम्मेदारी दी गई। बताते हैं कि जिस विमान को राजीव गांधी (तब पायलट थे) उड़ा रहे हों, उसे हाईजैक करने की योजना थी। आईएसआई की देखरेख में 16-17 साल के हाशिम कुरैशी को विमान की बारीकियों की ट्रेनिंग दी गई। कुछ महीने बाद एक ग्रेनेड और पिस्तौल के साथ हाशिम वापस आ गया लेकिन जम्मू बॉर्डर पर पकड़ा गया। हाशिम के मुताबिक पकड़े जाने पर लंबी पूछताछ के दौरान उसने कहानी रची कि उसके साथ दो और लोग भी हैं।
यहां एक और नया मोड़ आया। उसे एक नकली पत्र देकर श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही तैनात कर दिया जाता है कि अपने दो साथियों पर नजर रखे। इसके बाद हाशिम की कहानी कहती है कि वह नकली पिस्तौल और नकली ग्रेनेड तैयार करता है। अपने चचेरे भाई के साथ 30 जनवरी 1971 को श्रीनगर से जम्मू जा रहे विमान गंगा में सवार हो जाता है। इस विमान को कुछ समय पहले डी-कमिशन कर दिया गया था, लेकिन यकायक ही दोबारा उतार दिया गया। दोनों भाई नकली हथियार दिखाकर विमान को लाहौर ले जाते हैं।
लाहौर में वे यात्रियों के बदले कुछ आतंकियों को छोडऩे की मांग करते हैं। बाद में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो उनसे बात करते हैं। सभी यात्रियों को सड़क मार्ग से वापस भारत भेज दिया जाता है। पाकिस्तान में हाशिम का हीरो की तरह स्वागत होता है। गंगा को एयरपोर्ट पर ही आग के हवाले कर दिया जाता है। जाहिर है इस घटना की पूरी दुनिया में चर्चा होती है।
ये वो समय था जब ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भयानक तनाव पसरा हुआ था। अवामी लीग के मुखिया शेख मुजीबुर्र रहमान की लीडरशिप में बगावत चरम पर थी। खैर प्लेन हाईजैकिंग के बाद भारत इसे पाकिस्तान की साजिश बताकर उसके लिए अपना एयरस्पेस बंद कर देता है। नतीजा यह कि पाकिस्तान को ढाका आदि के लिए सैनिक/ रसद भेजने के लिए वाया श्रीलंका जाना पड़ता था। समय भी कई गुणा ज्यादा लगता था और खर्च भी।
पाकिस्तान ने कुरैशी बंधुओं को पलकों पर बैठाया। लेकिन आवभगत ज्यादा नहीं चली। करीब तीन महीने बाद ही हाशिम और मकबूल बट सहित कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान का मानना था कि यह हाईजैकिंग भारत की साजिश थी। ईस्ट पाकिस्तान में दिक्कत पैदा करने की। बाकायदा एक कमीशन का गठन किया था। करीब दो साल बाद हाशिम के अलावा सभी को छोड़ दिया गया। उसे 19 साल की कैद की सजा सुना दी गई। हाशिम करीब 10 साल पाकिस्तान की जेल में रहा और बाद में उसे छोड़ दिया गया। उसके बाद हाशिम लंदन गया और आखिर में नीदरलैंड में सैटल हो गया।
सालों बाद हाशिम ने भारत आने की गुहार लगाई। 29 दिसंबर 2000 को वह दिल्ली पहुंचा और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में केस श्रीनगर शिफ्ट कर दिया गया। श्रीनगर में भी हाशिम करीब डेढ़ साल हिरासत में रहा। नवंबर 2001 से वह जमानत पर है। हाशिम की दलील है कि यह डबल जेपर्डी का मामला है। मतलब एक केस में किसी को दो बार सजा नहीं हो सकती। वह कहता है कि इस मामले में 10 साल की सजा काट चुका है, उसी केस में वैसी ही धाराओं को लेकर दूसरा मामला नहीं चल सकता। बहरहाल मामला अभी चला हुआ है। हाशिम कुरैशी अभी भी एक्टिव है और किसी न किसी बहाने चर्चा में रहता है। आतंकी मकबूल बट के आइडिया को जिस तरह से घुमाया गया, उसे भारत का मास्टर स्ट्रोक कहा जाता है। बांग्लादेश बनाने में इसका भी लाभ मिला। हाशिम एक पहेली भी है और नहीं भी है।
जम्मू -कश्मीर में पांच साल के कार्यकाल के दौरान मेरा मेन स्ट्रीम सियातदानों व अलगाववादियों, सभी से मिलना रहा। लेकिन हाशिम कुरैशी से कभी नहीं मिला। कुरैशी कई अंग्रेजी व उर्दू अखबारों में लिखता भी हैं। खास तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ। एकबारगी माथा ठनका कि एक अपहरणकर्ता और जेकेएलएफ का संस्थापक सदस्य ऐसा कैसे लिख सकता है। मिलने का प्लान बनाया। थोड़ा होमवर्क किया तो साफ हो गया कि अनुतरित सवाल का जवाब कुरैशी की ओर से आएगा नहीं। मुलाकात की मंशा छोड़ दी। रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत की किताब में एक पूरा चैप्टर कुरैशी पर है। कुरैशी क्या बला है, इसका पता टाइटल से चलता है- टिंकर, टेलर, हाईजैकर, स्पाई। मतलब रॉ के पूर्व चीफ को भी क्लैरिटी नहीं कि कुरैशी के लिए कोई एक नाम क्या दिया जाए।