क्या हिमाचल में आप कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बन पायेगी
शिमला/शैल। पंजाब में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद जैसे ही आप ने हिमाचल में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तभी से प्रदेश में प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में यह सवाल चर्चा का केंद्र बना हुआ है कि क्या आप यहां पर कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बन पायेगी। हिमाचल में आज तक कांग्रेस और भाजपा का ही राज रहा है। हर 5 वर्ष बाद सत्ता बदल जाती रही है। इस बदलाव की लहर में शांता कुमार और धूमल तक चुनाव हार चुके हैं। स्व.वीरभद्र सिंह भी रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई दो स्थानों से एक साथ चुनाव लड़ते हुये जुब्बल कोटखाई से हार भी चुके हैं। हिमाचल में कांग्रेस भाजपा का विकल्प खड़ा करने के लिये लोक राज पार्टी से लेकर हिविंका, हिलोपा, हिमाचल क्रांति मोर्चा के गठन के रूप में कई असफल प्रयास हो चुके हैं। मेजर मनकोटिया तो बसपा की सरदारी लेकर भी प्रयास कर चुके हैं। इसी कारण से यह धारणा बन चुकी है कि हिमाचल में सत्ता कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहेगी।
लेकिन 2014 में अन्ना के आंदोलन ने देश की राजनीति में बदलाव का जो वातावरण खड़ा किया है अभी तक देश उसी के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाया है। जबकि ईवीएम को लेकर बहुत ही गंभीर सवाल भी सामने आ चुके हैं। परंतु इसी बदलाव में देश की राजधानी दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस दोनों से आप ने दो बार सत्ता छीन कर जो इतिहास रचा है वह अपने आप में एक अलग ही राजनीतिक प्रयोग है। अब दिल्ली के बाद पंजाब में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों से सत्ता छीन कर यह संकेत और संदेश दे दिया है कि भाजपा को आप ही सत्ता से बाहर कर सकती है। जबकि आप का नेतृत्व भी अन्ना आंदोलन से ही निकला है। लेकिन इसमें यह गौरतलब रहा है कि अन्ना का आंदोलन जहां संघ द्वारा प्रायोजित रहा है। वहीं पर संघ की राजनीतिक इकाई भाजपा की इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी प्रत्यक्ष में नहीं रही है। इसलिए जब अन्ना आंदोलन को राजनीतिक आकार देने के लिए राजनीतिक दल बनाने की बात उठी तो अन्ना ने संघ के इशारे पर इसका विरोध कर के आंदोलन को वहीं पर खत्म करने की बात कर दी। क्योंकि मनमोहन सिंह सरकार लोकपाल विधेयक पारित कर चुकी थी। तभी केजरीवाल और उनके साथीयों ने आप का राजनीतिक दल के रूप में गठन कर दिया। यहां यह सबसे महत्वपूर्ण है कि जिस अन्ना आंदोलन के कारण कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई उसी आंदोलन की कर्मभूमि रही दिल्ली में भाजपा लगातार तीन बार आप से हार गई। अब पंजाब की जीत के बाद भाजपा ने आप से डरना शुरू कर दिया है।
जैसे ही हिमाचल में चुनाव लड़ने की घोषणा आप ने कि तभी से कांग्रेस और भाजपा से नेताओं और कार्यकर्ताओं के आप में जाने की अटकलें तेज हो गई। दोनों से आप में लोग गये हैं। इसी बीच सत्येद्र जैन को हिमाचल का प्रभार सौंप दिया गया है। जैन ने मंडी में कैंप करके सिराज में केजरीवाल की रैली करवाने की घोषणा कर दी। लेकिन सिराज की जगह मंडी में केजरीवाल और मान का रोड शो करवा दिया। इस रोड शो के बाद भिंडरावाले के फोटो और खालिस्तानी झंडे का मुद्दा मणिकरण और ज्वालामुखी से उठ गया। हिमाचल की बसे पंजाब के रोपड़, किरतपुर में रोके जाने का मुद्दा खड़ा हो गया। इसी बीच मनीष सिसोदिया ने दिल्ली में एक पत्रकार वार्ता करके जय राम की जगह अनुराग को हिमाचल का मुख्यमंत्री बनाये जाने का नया प्रकरण छेड़ दिया। इस प्रकरण का जवाब अनुराग ने आप के प्रदेश संयोजक अनूप केसरी और दो अन्य को तोड़कर भाजपा में शामिल करवा दिया। लेकिन इसके बाद भी कांगड़ा के शाहपुर में केजरीवाल की सफल रैली हो गई।
इस रैली के बाद सिसोदिया ने शिमला आकर शिक्षा को एक ऐसा मुद्दा बनाकर उछाल दिया कि जयराम सरकार को न चाहते हुये इसका जवाब देना पड़ा। जयराम को बिजली पानी मुफ्त देने की घोषणा करनी पड़ी। जैन ने पावंटा साहब में केजरीवाल की रैली करवाने की घोषणा कर दी। आप के इन कदमों से भाजपा के लिये कांग्रेस से भी पहले निपटने की रणनीति बनानी पड़ी। विश्लेषकों के अनुसार सतेन्द्र जैन की उस मामले में गिरफ्तारी जिसमें आयकर और सीबीआई पहले ही हाथ खड़े कर चुके हैं यह राजनीतिक कारण ही है जिसकी वजह से FIR में नाम न होने के बावजूद जैन को गिरफ्तार किया गया है। भाजपा का यह कदम पूरी तरह राजनीतिक बौखलाहट का परिणाम बन गया है। जैन की गिरफ्तारी से प्रदेश के आप कार्यकर्ताओं को एक मुद्दा मिल गया है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यदि आप जयराम सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की रणनीति पर आ जाती है तो भाजपा के लिए शर्मनाक हार की स्थिति बनने से कोई नहीं रोक पायेगा। ऐसे में इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है कि क्या आप को संयोजक के रूप में कोई ऐसा व्यक्ति मिल पायेगा जो भाजपा और कांग्रेस दोनों को एक साथ चुनौती देने की क्षमता रखता हो। क्योंकि यह तय है कि प्रदेश का फैसला इस बार भी भ्रष्टाचार पर ही होगा।