*Editorial:- जनहित में MRP की जगह MSP होना वक्त की मांग व जरूरत*
#bksood
#मोदी जी आज करेंगे मन की बात
मोदी जी MRP का क्या खेला होवे
MRP के हिसाब से बिल बनता है 1055 और दुकानदार इमानदारी से बिल बनाता है ₹754, और आपको ₹301 की सेविंग हो जाती है 1055 के बिल पर ।
इसी तरह से दूसरे बिल में टोटल MRP बनती है 1409 रुपए दुकानदार की इमानदारी से ग्राहक को सामान मिलता है ₹975 में । टोटल saving हो जाती है ₹434,,,,
आखिर कब तक दुकानदार लोग इन बड़े-बड़े इंडस्ट्रीलिस्ट के झूठ के आगे अपनी ईमानदारी साबित करते रहेंगे ?
किसी बासमती राइस का प्रिंट प्राइस MRP होता है ₹720 और दुकानदारों से भेजता है ₹320 मे।
मतलब यदि कोई भोला भाला ग्राहक हो और वह उसी चावल को 500 ने खरीद ले यो भी वह खुद को खुशकिस्मत समझेगा कि उसके 220 बचा लिए।
यह दुकानदार की ईमानदारी ही होती है कि वह वास्तविक लाभ रखकर ग्राहक को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाता है,।
अगर बड़ी राइस मिल वालों को वह बासमती का बैग ₹400 में पड़ता है cost करता तो फिर से 720 क्यों लिखा जाता है ?इसका सीधा सा मतलब होता है कि मुंह देखकर तिलक लगाया जाता है ।
यह तो केवल खाने पीने की चीजों का हाल है आप सोचिए इलेक्ट्रॉनिक्स की चीजें और गैजेट्स का क्या हाल होता होगा?
तभी तो जो टीवी ₹52000 में MRPका होता है वह 16000 में मिल जाता है कोई कितना बारगेन कर लेगा ?
यह बड़े-बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट क्या सचमुच अमीर है या फेरीवाले? कि वह फेरी वालों की तरह 5000 की चीज बता कर 1000 में थमा जाते हैं ।
आपको इस विषय पर सोचना चाहिए आप ढंग की बात कर रहे तो आज यही ढंग की बात हो जाए ।
मेरे बहुत से मित्र मोदी जी के बहुत करीब है वह मोदी जी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं कृपया आम जनता का यह संदेश उन तक जरूर पहुंचाएं उम्मीद है 2 महीने में यह ढंग के बाद भी हो जाएगी और आम मानस लुटने से बच जाएगी। कोई कितना बारगेन कर सकता है भारत में इसकी कोई लिमिट नहीं है ।जैसे झूठे वादे करके कुछ पार्टियां चुनाव लड़ते हैं वैसे ही झूठे MRP को लेकर लोग ठगे जाते हैं।
दवाइयों का भी बुरा हाल है दवाइयां क्या आप कोई भी वस्तु उठा लीजिए सभी का यही हाल है ।हां दवाइयों में सबसे बुरा हाल है जिसमें कई बार 200 से 300% का फर्क देखा गया है। और दवाइयों में तो मरीज या उसके तीमारदार कोई मोलभाव नहीं कर सकते क्योंकि वह मजबूर होते हैं लाचार होते हैं बीमार होते हैं ।मोदी जी वैसे तो काफी सख्त एक्शन लेने के लिए मशहूर हैं परंतु इस विषय पर कभी कोई एक्शन नहीं लिया गया, और जनता लुटती जा रही है। जीवन में सभी को कभी ना कभी दवाइयों की आवश्यकता रहती है और लोग सरेआम लूटते हैं लाचारी मे बेबसी में बीमारी में। रेडीमेड गारमेंट्स जूते चप्पल निर्माण सामग्री ,शोध सामग्री, इंस्ट्रूमेंट केमिकल्स व जीवन की रोजमर्रा की कोई भी वस्तु पर आप देख लीजिए एमआरपी लगभग 100% अधिक लिखा होता है और ग्राहक केवल दुकानदार के इमानदारी पर ही निर्भर रहता है ,वह जितना डिस्काउंट मुंह से बोल दे उतना मान लिया जाता है। सरकारें एमआरपी की जगह क्यों नहीं एमएसपी का नियम लाती हैं ताकि दुकानदारों को भी सहूलियत हो और ग्राहक भी लूट ना जाए।
कुछ करो मोदी जी कुछ करो