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*आज मेरी मन की बात :शान्ता कुमार*

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आज मेरी मन की बात :शान्ता कुमार

मैं भाग्यशाली हूं, बहुत खुश हूं क्योंकि 32 वर्ष पहले दिल की जिस बीमारी का ईलाज करवाने के लिए मुझे अमेरिका जाना पड़ा था आज दिल की उन सभी बीमारियों का सब प्रकार का ईलाज विवेकानन्द अस्पताल पालमपुर में हो रहा है। अमेरिका के नगर हूस्टन के अस्पताल में जब मेरा ईलाज हो रहा था तभी एक विचार आया – मैं तो मुख्यमंत्री हूं अमेरिका आ गया परन्तु कांगड़ा के आम गरीब लोग इस प्रकार की बीमारी में कहां जाएगें। आंखे बन्द की और प्रभु से प्रार्थना की कि मुझे शक्ति देना यह सब कुछ पालमपुर में हो सके। मैं भावुक हो गया – आंखें सजल हो गई। संतोष ने मेरी आंखें पोंछते हुए कहा – मुझे विश्वास है… सब होगा। तब कल्पना भी नही की जा सकती थी कि प्रभु की कृपा होगी। जनता का सहयोग मिलेगा और पालमपुर में दिल की बीमारियों का ईलाज शुरू होगा।

दिल की ही नही लगभग सभी बीमारियों का कठिन गम्भीर बीमारियों का भी सब प्रकार का ईलाज पालमपुर में हो रहा है। अगले वर्ष सौरभ कालिया नर्सिंग कालेज भी आरम्भ किया जा रहा है। इस समय 100 बिस्तर का अस्पताल है। इसे बहुत जल्दी 150 बिस्तर का बनाया जा रहा है। कुछ और सुविधाएं भी अस्पताल में दी जा रही हैं।

कायाकल्प इस समय भारत वर्ष में एक प्रमुख योग और प्राकृतिक चिकित्सा का केन्द्र बन गया है। भारत ही नहीं विदेशो से भी सैंकड़ों लोग उपचार के लिए कायाकल्प में आ रहे है।

एक तीसरी संस्था वरिष्ठ नागरिक सदन 100 लोगों के लिए विश्रान्ति नाम से निर्माणाधीन है। आर्थिक कठिनाईयों से बिलम्ब हो गया परन्तु मेरे सभी मित्र पूरा प्रयत्न कर रहे है। बहुत जल्दी विश्रान्ति भी शुरू हो जाएगी। भारत वर्ष में वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह अपनी प्रकार का ऐसा बढ़िया केन्द्र होगा जहां पर 24 घण्टे हर प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध होगी। इस सब के लिए मैं प्रभु का और सहयोग देने वाले सभी बहिनों, भाइयों का बहुत धन्यवाद करता हूं।

मुझे याद आ रहा है मेरे 68वें जन्मदिन पर 2002 में मित्रों ने विवेकानन्द ट्रस्ट के लिए धन संग्रह की योजना बनाई। स्वामी सुबोधानन्द जी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। डा0 शिव कुमार सचिव बने। पूरे भारत में सब सम्बन्धित मित्रों को कहा कि 12 सितम्बर विवेकानन्द अस्पताल के लिए कुछ धन लेकर आएं। जन्मदिन पर और कोई उपहार नही चाहिए। उस दिन पालमपुर में एक नया इतिहास बना। 68 लाख रू0 इकट्ठा करने की योजना थी परन्तु सैंकड़ों लोग धन देने लगे। गिनने वाले धक गये – बैंक से कर्मचारी बुलाये। 68 लाख रू0 की बजाए एक करोड़ 34 लाख रू0 इकट्ठा हुऐ। मैं भाग्यशाली हूं ऐसा जन्मदिन शायद कभी कहीं पर नहीं मनाया गया होगा।

विवेकानन्द अस्पताल और कायाकल्प में कुल 46 डाक्टर और 350 कमचारी हैं। प्रतिमास लगभग अढ़ाई करोड़ रू0 खर्च आता है। दोनों संस्थाओं को कहीं से किसी प्रकार की ग्रांट नहीं मिलती। हम उपचार करवाने वालों से कुछ धन लेते है। एक बात गर्व से कहना चाहता हूं कि उस धन में से एक भी पैसा कभी किसी की जेब में नहीं जाता। उस धन का उपयोग वेतन तथा सारे रख-रखाव पर होता है। इतना ही नहीं उसमें कुछ बचा कर गरीब अन्त्योदय परिवारों का मुफ्त ईलाज किया जाता है और कुछ छूट भी दी जाती है।

विवेकानन्द ट्रस्ट शायद अपनी प्रकार का पहला ट्रस्ट है जिसके सभी ट्रस्टियों को किसी प्रकार के कामों के लिए कोई टी.ए., डी0ए0 नहीं दिया जाता।
निजी क्षेत्र में इस प्रकार की सेवा संस्था बनाने के लिये जनता से दान में करोड़ों रू0 लिया जा सकता है परन्तु उन्हें चलाने के लिये हर महीने करोड़ों रू0 इक्ट्ठा नही किया जा सकता। सभी निजी संस्थायें इसी प्रकार चलाई जाती हैं।

विवेकानन्द ट्रस्ट का कार्य शुरू करने पर धन संग्रह किया था। हिमाचल प्रदेश से सात करोड़ रू0 और बाकी देश से 15 करोड़ रू0 कुल 23 करोड़ रू0 इकट्ठे हुए थे। उसी से दोनों संस्थाओं का काम प्रारम्भ किया गया था। छोटे से हिमाचल के छोटे से पालमपुर स्थान में प्रदेश से इकट्ठे सात करोड़ रू0 के मुकाबले पर जन सहयोग से आज 80 करोड़ की तीन संस्थाएं दो चल रही है एक का निर्माण हो रहा है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं इस के लिए प्रभु का धन्यवाद करता हूं और सहयोग देने वाले सभी बहिनों, भाइयों का बहुत आभार प्रकट करता हूं।

मैं जीवन के अन्तिम मोड़ पर हूं। आर्थिक कठिनाई के कारण विश्रान्ति का काम अधूरा है। कई बार चिन्ता होती है। तब प्रभु से प्रार्थना करता हूं -” हे प्रभु मुझे आपने सब कुछ दिया। मैं ने भी शानदार जीवन जिया। अब आप के पास आना है। मैं हंसता मुस्कराता आपके पास आऊंगा। पर एक निवेदन है विश्रान्ति का काम अधूरा छोड़ कर मुझे मत बुलाना। “ सोचते सोचते आंखें सजल हो जाती है।

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