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*पाठकों के लेख: लेखक :-हेमंत*नीतीश का ‘हृदय’ और धोखे को ‘खा’ जाने वाली भूखी पार्टियां*

नीतीश का ‘हृदय’ और धोखे को ‘खा’ जाने वाली भूखी पार्टियां
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किसी शायर ने कहा है-
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा है इसी चाल में आ जाते हैं
यहां सादा से हमारी मुराद होनी चाहिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार से। वे इतने सादा है कि कभी भी चाल नहीं बदलते। बस एक ही चाल है उनकी -पार्टी बदलते रहना। तिस पर भाजपा और अन्य दल भी इतने सादा हैं कि उनकी चाल में आ जाते हैं। ये दल सत्ता के इतने भूखे होते हैं कि इस धोखे को तुरंत ‘खा’ लेते हैं। दो बार आरजेडी-कांग्रेस ने खाया है और दो बार भाजपा ने। अपने दम पर नीतीश कभी सीएम नहीं बन सके। वे सामने वाले के दिमाग से खेलते हैं और खेल कर जाते हैं। ग़ज़ब का समाजवाद है।
खैर एक बार फिर से बिहार में ह्दय परिवर्तन की बहार आई हुई है। वैसे भी नीतीश कुमार जी के हृदय परिवर्तन का कोई कोई अंत नहीं। नीतीश कुमार प्रकृति की मानिंद हैं सियासत में। नियम ही है बदलते रहना। जैसे ही गठबंधन में अनबन हुई, फट से त्यागपत्र देने राजभवन पहुंच जाते हैं। इतिहास गवाह है कि चंद घंटे बाद फिर से शपथ ले लेते हैं। बतौर सीएम कायदे से पहली बार 2013 में उन्होंने अपने दिल की आवाज सुनी। 2010 का चुनाव भाजपा के साथ मिल कर लड़ा। सरकार बनी। तीन साल बाद उन्हें दिल ने कहा कि भाजपा सांप्रदायिक जैसी हो चली है। गठबंधन तोड़ दिया। तुरंत आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया और सीएम के सीएम रहे।
इसके बाद 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रचंड बहुमत से टूट गए। दिल से आवाज आई कि सीएम पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस्तीफा दे कर मांझी को सीएम बना दिया। लेकिन छह-सात महीने बाद ही फिर दिल बदल गया और मांझी को हटा कर खुद सीएम बन गए।
चलो 2015 का चुनाव आ गया और आरजेडी-कांग्रेस के साथ मिल कर फिर सीएम बन गए। दो साल बाद उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी का किसी कथित करप्शन में नाम आ गया। यहां फिर नीतीश जी के दिल से आवाज आई कि निकल लो। सीधे राजभवन निकल लिए। इस्तीफा दे दिया और कुछ घंटों में भाजपा का दामन थाम कर सरकार बना ली। भाजपा वाले भी भूखे थे सो फिर धोखे को ‘खा’ गए। चुनाव आ गए 2020 के। भाजपा के साथ लड़े। सीएम बन गए। अब इसी महीने उनके दिल ने फिर कहा कि भाजपा ठीक नहीं है। क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करना चाहती है सो निकल लो। राजभवन चले गए। इस्तीफा दे दिया। आरजेडी-कांग्रेस के साथ मिल गए और फिर सीएम बन गए। आरजेडी-कांग्रेस वाले भी भूखे थे सो फिर धोखे को ‘खा’ गए हैं। मान गए जी बिहार को। हृदय परिवर्तन वाले नीतीश कुमार को और धोखे को खा जाने वाले दूसरे दलों को भी। मजे की बात है कि गठबंधन टूटते ही सभी एक दूसरे को खूब कोसते हैं। कसमें खाते हैं कि ये कर लेंगे लेकिन उसके साथ नहीं जाएंगे। अगले ही दिन सब कुछ भूल कर दिल की सुन लेते हैं। यू-टर्न के तो पता नहीं यहां कितने टर्न हो जाते हैं। पापी पेट का सवाल जो ठहरा। कुछ और खाने को नहीं मिलता तो धोखा ही सही।
बिहार के इन सभी सियासी दलों के लिए एक बार फिर से अर्ज है-
शब को मय खूब पी सुबह को कर ली तौबा
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत भी न गई

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