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*परमवीर कैप्टेन विक्रम बत्रा की शौर्य कहानी उनके पिता जी. एल. बत्रा जी की ज़ुबानी*

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*पर्मवीर कैप्टेन विक्रम बत्रा की शौर्य कहानी उनके पिता जी. एल. बत्रा जी की ज़ुबानी* *द आर डी डी शो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती* शो मे पर्मवीर कैप्टेन विक्रम बत्रा के पिता जी. एल. बत्रा ने शिरकत की. ये जानकारी देते हुए आर डी डी शो की ऑनर रिड्ज़ ने बताया कि जी. एल. बत्रा ने बताया की बचपन मे मैं विक्रम को हमारे देश की वीर जवानों की कहनियाँ सुनाया करता था और उसी समय से उसमे कुछ अलग करने का जनून था विक्रम बत्रा पढ़ाई में तो होनहार थे ही साथ ही स्पोर्ट्स में भी अच्छे थे. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ‘युवा संसदीय प्रतिस्पर्धा’ में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व किया था. इन्हें स्पोर्ट्स में काफी रुचि थी.वे टेबल टेनिस, कराटे जैसे खेलों में अधिक भाग लिया करते थे. कराटे , टेबल टेनिस में इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन किया था. सीनियर सेकेंडरी की पढ़ाई के बाद. उन्होंने डी .ए .वी. कॉलेज, चंडीगढ़ से बीएससी. मेडिकल साइंस में अध्ययन शुरू किया. कॉलेज के प्रथम वर्ष में इन्होने ने एनसीसी (NCC) में एयर विंग ज्वाइन किया. एनसीसी में रहते हुए उन्होंने कई कैम्प किए. विक्रम को एनसीसी का सबसे बड़ा ‘C’ सर्टिफिकेट मिला और NCC में विक्रम बत्रा को ”कैप्टन” का रैंक दिया गया इसके अलावा उन्हें कॉलेज में ‘युवा सेवा संघ’ का अध्यक्ष भी बनाया गया था. कोलेज के दौरान वे काफी एक्टिव रहते थे. वर्ष 1994 में उन्हें एनसीसी कैडेट के रूप में गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का मौका मिला था. यहीं से उन्हें इंडियन आर्मी में जाने की इच्छा हुई. कॉलेज के दौरान ही साल 1995 में उनका चयन मर्चेंट नेवी में हो गया था लेकिन उनका लक्ष्य कुछ और था।उन्होंने अपनी मां से कहा था पैसा ही सब कुछ नहीं है जिंदगी में, मुझे कुछ बड़ा करना है, कुछ महान, कुछ असाधारण करना है जो मेरे देश के लिए महान हो.” कैप्टेन विक्रम बत्रा
इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में एम. ए. किया ताकि वह सेना की प्रवेश परीक्षा दे सके इस दौरान उन्होंने चंडीगढ़ में एक ट्रैवल एजेंसी में एजेंट का भी काम किया. वर्ष 1996 में विक्रम बत्रा ने कंबाइंड डिफेंस सर्विस (CDS) की प्रवेश परीक्षा पास की इसके बाद उन्हें एसएसबी (SSB) के इंटरव्यू के लिए इलाहाबाद बुलाया गया जहा उनका सेना में चयन हो गया.विक्रम की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उनको 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के तौर पर चुना गया। 20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 चोटी से दुश्मनों को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद मिशन में कामयाब हो गए। 20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 चोटी से दुश्मनों को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद मिशन में कामयाब हो गए। इसके बाद उन्होंने जीत का कोड बोला- ये दिल मांगे मोर। जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्‍टन बत्रा दुश्‍मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्‍दील हो गए थे। ऐसे में पाकिस्‍तान भी उनको शेरशाह के नाम से पुकारते थे

। 4875 प्वांइट पर कब्जे के दौरान भी बत्रा ने बेहद बहादुरी दिखाई और इस परमवीर ने सैनिक को यह कहकर पीछे कर दिया कि ‘तू बाल-बच्चेदार है, पीछे हट जा’। खुद आगे आकर बत्रा ने दुश्मनों की गोलियां खाईं। उनके आखिरी शब्द थे ‘जय माता दी’।परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे। विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है।
आर डी डी शो के लिए गौरव की बात थी की हमारे देश के रियल हीरो कैप्टेन विक्रम बत्रा के बारे मे जानने का मौका मिला जिन्होंने हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दी थी।

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