*सर्वोच्च_न्यायालय_ने_हिजाब_की_पगड़ी_से_तुलना_को_गलत_बताया*



10 सितंबर 2022– (#सर्वोच्च_न्यायालय_ने_हिजाब_की_पगड़ी_से_तुलना_को_गलत_बताया) –
आजकल सर्वोच्च न्यायालय मे बहस चल रही है कि कर्नाटक की छात्राएं हिजाब पहने या न पहनें ? जबकि उच्च न्यायालय ने हिजाब पर पाबंदी को उचित ठहराया है। असल मे सवाल हिजाब पहनने या न पहनने का नहीं बल्कि प्रश्न तो यह है क्या हिजाब शिक्षण संस्थान मे यूनिफार्म का हिस्सा हो सकता है या नहीं। देश मे एक ऐसी गलत परम्परा चल पड़ी है कि हर बात न्यायालय मे जाकर ही तय होती है। खैर सर्वोच्च न्यायालय के मुस्लिम छात्राओं के वकील ने जब हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी से करनी चाही तो अदालत ने वकील से असहमति जताई और कहा यह तुलना गलत है। कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसमे सिखों को कृपाण रखने की अनुमति दी गई है। वैसे यह सारा मामला धार्मिक और सामाजिक कम है और राजनीतिक अधिक है। मुस्लिम मौलाना इसके लिए कुरान और शरीयत का हवाला देते है। शरीयत मे तो हिजाब या बुर्का न पहनने वाली महिलाओं के लिए पत्थर मार कर मारने का भी प्रावधान है।
मेरे विचार मे यह सब पत्थर युग के प्रावधान है। बदलते समय मे समाज बदल रहा है मुस्लिम समुदाय को भी सोच बदलनी चाहिए। यह प्रथा अरब देशों की है। भारतीय मुसलमानो को बेहतर मुसलमान बनने के लिए अरबों की नकल करने की जरूरत नहीं है। वैसे हिजाब ऐसा ही है, जैसे कि हिन्दु औरतें कभी पर्दा या घूंघट किया करती थी। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों की बड़ी भूमिका रही है। अब यह प्रथा बहुत कम हो गई और समाप्ति की ओर अग्रसर है। महिलाओं मे बढ़ती शिक्षा का भी इस प्रथा को खत्म करने मे बड़ा योगदान रहा है। मुस्लिम महिलाओं मे भी शिक्षा का प्रसार बहुत जरूरी है। किसी भी धर्म मे महिलाओं को दोयम दर्जा देना स्वीकार्य नहीं हो सकता है। किसी समाज की कुरीतिययों को खत्म करने का पहला कर्तव्य उस समाज के नेतृत्व का है और यदि वह असफल होगा तो निश्चित तौर पर सरकार को कानून बनाना पड़ेगा। मुझे लगता है कि अब मुस्लिम मौलाओं को अपने कर्तव्यों को समझते हुए स्वयं ही इन गई- गुजरी पुरानी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए पहल करनी चाहिए।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।सोफत सोलन