*बड़ी_खबर_पर_पहली_नजर लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
*बड़ी_खबर_पर_पहली_नजर लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
20 अक्तूबर 2022- (#बड़ी_खबर_पर_पहली_नजर) —
भाजपा ने 62 और कांग्रेस ने 46 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस की सूची का अवलोकन कर कोई खास बड़ी खबर सामने नहीं आई है, जबकि भाजपा की लिस्ट ने कई अनुमान और आंकलन फेल कर दिए है। भाजपा के नज़दीकी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पार्टी हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज बदल देना चाहती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भाजपा ने अपने परिवारवाद के सिद्धांत मे भी पूरी ढील देने मे गुरेज नहीं की है। अभी पिछले साल सम्पन्न उपचुनाव के समय जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र से यह कहते हुए हमारे पुराने दोस्त स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा के सपुत्र चेतन बरागटा को टिकट देने से इंकार कर दिया था कि उनको टिकट देने के चलते पार्टी का परिवारवाद को लेकर सिद्धांत से समझौता करना होगा, लेकिन इस बार चेतन को टिकट दे दिया गया है। इतना ही नहीं प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री ठाकुर महेन्द्र सिंह को टिकट न देकर उनके सुपुत्र रजत ठाकुर को टिकट दिया गया है। अब ठाकुर महेन्द्र सिंह की राजनैतिक विरासत उनके बेटे को स्थानांतरित हो जाएगी और स्थानतंरण मे भाजपा की ओर से पूरा सहयोग दिया जा रहा है।हालांकि इस स्थानांतरण को लेकर उनकी बेटी रुष्ट बताई जा रही है। स्मरण रहे ठाकुर महेन्द्र सिंह 1990 से लगातार धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे है।
अभी महाराष्ट्र के उप – चुनाव मे भाजपा ने अपने उम्मीदवार का नामांकन वापिस करवा दिया है और शिवसेना की उम्मीदवार को निर्विरोध चुने जाना का रास्ता साफ कर दिया है। यहां पर पत्नी अपने विधायक पति की मृत्यु के कारण खाली हुई सीट पर चुनाव लड़ रही थी। भाजपा का कहना है कि यह सदभावना के तौर पर किया गया है। वैसे मेरे विचार मे यह परिवारवाद को बढ़ाने वाली सदभावना है। बड़ी खबर यह भी है कि अभी तक जारी सूची के अनुसार 11 विधयकों को टिकट नहीं दिए गए है। दो वरिष्ठ मंत्रियों के चुनाव क्षेत्रों मे परिवर्तन किया गया है। भाजपा का दावा था कि पार्टी टिकट सर्वे और हर विधानसभा क्षेत्र से प्राप्त मंडल और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की राय के अनुसार ही टिकट आबंटन किए जाएंगे, लेकिन टिकट सूची के अवलोकन और विवेचनात्मक परिक्षण के बाद आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते है कि इसमे न तो किसी सर्वे का रोल है और न ही वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की राय का रोल है क्योंकि जिनके क्षेत्र बदल दिए गए है वहां उनके नाम का सर्वे होने का प्रश्न ही नहीं है। खैर हर पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड टिकट का अन्तिम निर्णयाक है। दोनों पार्टियों की सूची जारी होने के बाद दोनों पार्टियों मे प्रत्याशियों को लेकर विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे है। अब दोनो पार्टियों के नेतृत्व की यही प्राथमिकता होगी कि इन विरोध के स्वरों को कैसे शांत किया जाए। जो जितना सफल होगा उस पार्टी को उतना ही चुनाव मे लाभ होगा।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।