धार्मिक

*हमे हर वस्तु का भगवान को भोग लगाने के बाद आशीर्वाद और प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए*

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ओमनमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏🙏
श्रीमद् भागवत गीता की जय 🙏🙏🙏
हरि हरि बोल 🙏🙏🙏
प्रिय पाठकों पिछले कुछ लिखो में हम समझ चुके हैं कि संपूर्ण खुशी पाने के लिए हमें पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना होगा जिसके लिए हमें शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आर्थिक रुप से स्वस्थ रहना आवश्यक है और उसके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है “आध्यात्मिक स्वास्थ्य ” यानि कि आत्मा का परमात्मा से मिलन | यह संभव हो पाएगा यदि हम आध्यात्मिक जीवन के चार स्तंभ यानी की सत्संग, साधना , सेवा और सदाचार को अपने जीवन में अपना सके | जिसमें से हम सत्संग , ऑनलाइन सत्संग के फायदे , साधना का अर्थ और साधना का महत्वपूर्ण अंग “नाम जाप ” का अर्थ और नाम जाप के भौतिक व आध्यात्मिक फायदों के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुके हैं |
आज हम साधना के अन्य महत्वपूर्ण अंग भोग के बारे में जानेंगे | भोग का शाब्दिक अर्थ होता है उपयोग करना | आजकल हर इंसान अपने इंद्रिय सुख के लिए काम करता है क्योंकि सब का मानना है कि हम शरीर हैं | इसलिए हर कोई अपने आप को ही भोग लगाता है उदाहरणतय जब हम किसी बड़े होटल में राजसिक अर्थात मसालेदार खाना खाते हैं तो अपनी जिव्हा और मन को भोग लगाते हैं , यदि हम फिल्मी गाने सुनते हैं तो अपने कानों को भोग लगाते हैं और मन पसंदीदा मैच या फिर फिल्म देखते हैं तो हम आंखों को भोग लगाते हैं इत्यादि मतलब जब भी हमारे मन में कोई इच्छा उत्पन्न होती है तो हम उसे पूरा करने का संकल्प लेते हैं और अपने पैसे और कीमती वक्त बर्बाद करते हैं जिससे हमें अस्थाई खुशी मिलती है | यह सब हम अपने मन और इंद्रियों की तृप्ति के लिए करते हैं क्योंकि इस भौतिक संसार में हम खुद को शरीर मानते हैं | यही हमारी सबसे बड़ी भूल है | क्योंकि हम आत्मा है और ईश्वर ही परम भोक्ता है और हरि सेवा ही आत्मा का प्रथम कर्तव्य है | प्रभु की खुशी में ही हमारी खुशी होनी चाहिए | लेकिन इस भौतिक जगत में हम हमेशा प्रभु से अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति की मांग करते हैं, इस प्रकार प्रभु की भक्ति करते हुए भी हम उनसे अपनी ही इंद्रियों के सुख के लिए याचना करते हैं जबकि हमें यह समझना होगा कि प्रभु हमारे स्वामी हैं और हमारा हर कार्य प्रभु की प्रसन्नता के लिए होना चाहिए जैसे हम पेड़ की जड़ों में पानी देते हैं तो पेड़ की शाखाओं ,पत्तों ,फल और फूलों तक पानी अपने आप पहुंचता है | इसलिए हर कार्य प्रभु की खुशी के लिए करना चाहिए क्योंकि ईश्वर ही परम भोक्ता है अगर भगवान खुश होंगे तो उनके बच्चे अर्थात हम खुश रह पाएंगे | यह सब वैदिक संस्कृति में पहले से ही निर्धारित है | अतः हमें तर्क वितर्क से बचना चाहिए और वेद शास्त्रों के अनुसार पूर्ण श्रद्धा , निष्ठा और विश्वास के साथ भगवान को भोग लगाने का अभ्यास करना चाहिए | जिससे धीरे-धीरे हमारी मानसिकता भोगी से योगी बन जाएगी | योगी मतलब वह आत्मा जिसने प्रभु की पूर्ण शरणागति ली हो और अगर प्रभु सेवक से खुश होंगे तो सेवक परम आनंद की प्राप्ति अवश्य करेगा | लेकिन यह सब सुनने या सोचने मात्र से संभव नहीं हो पाएगा बल्कि हमें योगी बनने के लिए बार-बार अभ्यास करना होगा | इसलिए सर्वप्रथम हमें भोग प्रभु को लगाना चाहिए जब भी हम भोग के विषय में सुनते हैं या बोलते हैं तो हमारा ध्यान खाने की तरफ ही जाता है लेकिन हमें यह समझना होगा कि हम जो भी वस्तु उदाहरणत्या फोन, कपड़े , टीवी इत्यादि खरीदते है तो वह सब हमें परमात्मा की कृपा से ही मिलता है इसलिए हमें हर वस्तु का ,अपने कर्मों का, विचारों का और खाने-पीने का भी भोग लगाना है | जिससे धीरे-धीरे प्रभु को याद करना सरल होगा और ध्यान प्रभु चरणों में लगना अपने आप शुरू हो जाएगा | प्रभु श्री हरि को भोग लगाने के लिए हमें सामर्थ्य अनुसार खास बर्तनों का प्रबंध करना चाहिए और यदि हम कहीं घर से बाहर भी हो तो मानसिक रूप से भी भगवान को याद करते हुए कल्पना में भोग लगा सकते हैं | प्रभु को भोग लगाते वक्त हमें यह प्रार्थना करनी चाहिए कि भगवान यह सब आपका ही दिया हुआ है इसलिए मैं आपकी तन, मन ,धन से सेवा कर सकूं , हे नाथ! मैं कभी आपको भूलूं नहीं, हमेशा याद रखूं और किसी भी वस्तु का भोग लगाते समय हम प्रभु से आशीर्वाद भी मांगना चाहिए कि हर वस्तु का उपयोग मैं आपकी खुशी के लिए कर सकूं उदाहरणतया अगर हम घर में मोबाइल फोन लाते हैं तो हम प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस फोन में मैं आपका सत्संग श्रवण कर सकूं , धार्मिक सीरियल देख सकूं , भजन सुन सकूं इत्यादि और मुझे अपनी शुद्ध और प्रेमा भक्ति देना | इस प्रकार अभ्यास करते करते हम शुद्ध होते जाएंगे और प्रभु श्री हरि की कृपा महसूस कर पाएंगे कि प्रभु कितने दयालु हैं उन्होंने हमें कितना कुछ दिया है रोटी, कपड़ा ,मकान ,स्वस्थ शरीर इत्यादि लेकिन हम भौतिक संसार के माया जाल में इतना उलझे हैं कि हमें सच्चाई का ज्ञान ही नहीं है कि भोक्ता हम नहीं बल्कि

भगवान श्री हरि हैं अतःहमें हर वस्तु को भगवान को भोग लगाने के बाद आशीर्वाद और प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए |
     वैदिक संस्कृति में तो भोग लगाने का प्रचलन बहुत पहले से ही है जैसे नया घर बनाने से पहले और बाद में भी शुभ मुहूर्त में भगवान की पूजा अर्चना अनिवार्य है, उसी प्रकार जब नई गाड़ी खरीदते हैं तो सर्व प्रथम मन्दिर जाते हैं और पूजा करते हैं, कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान का आशीर्वाद लेना ज़रूरी माना जाता था, उसी प्रचलन को हम सबको अपने जीवन में फिर से आरंभ करना चाहिए और हर वस्तु को जो भी हम घर पर लाते हैं, उसे भगवान को समर्पित कर, भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए, ताकि हम सब भगवान की असीम कृपा और शांति को अनुभव कर सके तथा अधिक से अधिक समय भगवान के साथ बिता कर अपना सम्बन्ध मजबूत कर सके। लेकिन आज का युवा वर्ग इसे रूढ़िवादी सोच मानने लगा है और सब कुछ होते हुए भी अस्थायी खुशी के पीछे भागता रहता है और हर समय अशांत और तनाव में रहता है | वास्तव में भौतिक जगत में दो प्रकार के प्राणी होते हैं , भोगी और योगी | जो इंसान अपने मन के वशीभूत होकर इंद्रिय सुख के लिए हर कार्य करते हैं, उन्हें भोगी कहा जाता है और दूसरी तरफ जो इंसान अपना हर कार्य प्रभु श्री हरि को समर्पित करते हुए, उनकी खुशी के लिए करते हैं और हर वस्तु का भोग भगवान को लगाकर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं और अपना जीवन भगवान के श्री चरणों में समर्पित करते हैं, वह भौतिक संसार में रहते हुए भी, अपने सांसारिक कर्त्तव्य को निभाते हुए एक सफल योगी का जीवन व्यतीत करते हैं। हमें भोगी बनना है या योगी बनना है यह पूरी तरह से हमारे ऊपर निर्भर करता है। जब हम किसी भी वस्तु का भोग लगाकर  उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं तो उससे हमारी बुद्धि भी दिव्य होती है, जिसके परिणाम स्वरूप हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं अतः योगी का जीवन जीते हुए हम भौतिक और आध्यात्मिक जगत में भी संतुलन बना सकते हैं और स्थायी खुशी तथा असीम शांति को अपने जीवन में अनुभव कर सकते हैं, अतः वेद शास्त्रों का प्रचार और प्रसार आवश्यक हो गया है ताकि हम परम सत्य अर्थात भगवान को जान सकें और भक्ति के दिव्य मार्ग पर चलते हुए औरों को भी प्रेरित कर सके |
                   
       अगर आप भी हमारी तरह घर बैठे बैठे सत्संग श्रवण कर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो यूट्यूब पर गोलोक एक्सप्रेस चैनल को सब्सक्राइब कीजिए | आपको सोमवार से शुक्रवार सुबह 5:30 से 6:30 a.m. लाइव सत्संग मिलेगा जिसमें सोमवार को रामचरितमानस की कथा और मंगलवार को महान कवियों द्वारा रचित दोहों की व्याख्या की जाती है तथा बुधवार , वीरवार और शुक्रवार को श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करवाया जाता है तथा शनिवार तो श्रीमद भगवतम की कथा और रविवार को रात 8:00 बजे समग्र शिक्षा के ऊपर सत्संग करवाया जाता है | आप फेसबुक पर भी गोलोक एक्सप्रेस पेज पर जाकर सत्संग का लाभ उठा सकते हैं तथा 701802 6126 पर भी संपर्क करके अपने वक्त और सुविधा अनुसार घर बैठे बैठे श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन कर सकते हैं |

     ना शस्त्र पर ना शास्त्र पर ना धन पर ना ही किसी युक्ति पर मेरा जीवन तो आश्रित है प्रभु केवल और केवल आपकी कृपा शक्ति पर🙏

गोलोक एक्सप्रेस में आइए दुख दर्द भूल जाइए एबीसीडी की भक्ति में लीन होकर नित्य आनंद पाइए।

वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

 

https://youtu.be/FKvUXSsgPwI

 

 

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