*मेरे कमरे का बॉयोडाटा : विनोद वत्स*
मेरे कमरे का बॉयोडाटा
मेरा कमरा शुरू होते ही खत्म हो जाता है
वैसे वो दस बाई बारह फुट कहलाता है।
वैसे अलग से बाथरूम भी है
मुम्बई में बहुत है लिखने के लिये
रही बात रहने की तो
छह बाईं चार से ज्यादा तो इंसान को नही
घमंड को भाता है जो चटाई छोड़ बड़े से तख्त पे आसान लगवाता है
और
बड़ा दिखने के चक्कर मे अपनी छत अपना मकान अपनी दुकान अपनी गाड़ी अपना बंगला सब गिनवाता है
मूर्ख ये भूल जात्ता है
ज्यादा खाने से पेट खराब हो जाता है
जिसपे तू इतराता है
उसे कोई ना साथ ले जा पाता है
कहा चला गया
कही भी निकल जाता हूँ
हाँ तो मुद्दे पर आते है
अपने कमरे का आंखों देखा हाल पूरा सुनाते है
कोरोना के चक्कर मे
दीवारों का पेंट झड़ने लगा
अंदर से बूढी मरियल दीवारो का चेहरा दिखने लगा
छत से कभी भी कोई जंतु बिस्तर पर जिमनास्ट करने को कूद जाता
लेकिन निगाह पड़ते ही
बंदा स्वर्ग लोक पहुंच जाता
फर्श की टॉइल्स आपस मे मुस्कुराती है
दीवारों को देख कर
और मुहँ चिढ़ाती है
दीवारों ने भी सुना है
अच्छे दिन आने वाले है
हमारे चेहरे पर भी
मालिक प्लास्टिक पेंट पुतवाने वाले है
जब से दीवारों ने सुना है
बहुत खुश है
चलो नंबर तो आया
खिड़की की क्या कथा सुनाऊँ
मत जानो तो बेहतर है
एक महीने से बिना पर्दे के
ठंडी हवाओं के थपेड़े झेल रही है
कभी वहा से हवा
कभी वहा से कुछ और भी छन के आता है
पूरे कमरे में अलग सुरूर छा जाता है
ये बॉयोडाटा है मेरे कमरे का
बस फायदा ये है सेंटर में हूँ क्रीम में रहता हूँ
कोई एड्रेस पूछता हूँ तो ओशिवरा बताता हूँ
जिसमे कई फ़िल्म, वेबसिरीज, गीत, ग़ज़ल किताब, शार्ट फ़िल्म, लिखी जा चुकी है
इसलिये ये लकी है
क्योंकि ज्ञान हमेशा ज़मीन से आता हैं
और बंदे के साथ सिर्फ ज्ञान ही जाता है
जो ज़मीन से जुड़ा रहता हैं
वही बड़ा बन पाता है।
बस यही सच जो मैने बताया है
झूठ को अपने घर से बेजत करके भगाया है
जय राम जी की शुभरात्रि।
विनोद वत्स