*सुन चंपा सुन तारा कौन जीता कौन हारा* महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश*
15 दिसंबर 2022- ( सुन चंपा सुन तारा कौन जीता कौन हारा)-
चुनाव मे जो पार्टी हार जाती है, वह हार की समीक्षा करती है। समीक्षा भी एक औपचारिकता मात्र है। जिसको एक परम्परा स्वरूप पुरा किया जाता है। असल समीक्षा शायद कोई पार्टी नही कर पाती, क्योंकि असल समीक्षा और हार के सही कारणो का पत्ता लगाने के लिए सच बोलना पड़ता है। राजनिति मे न कोई सच बोलता है न कोई सुनता है। वैसे भी सच कडवा होता है। हर कोई कडवा सुनना नपंसद करता है। खैर यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि जय राम सरकार को कुल मिला कर औसत दर्जे की अच्छी सरकार माना जाना चाहिए। हालांकि इस सरकार पर जिला मंडी को अधिक तवज्जो देने के आरोप लगे। लेकिन कुल मिला कर इस सरकार ने सारे प्रदेश मे विकास करने का प्रयास किया है। जयराम सरकार ने नये और पुराने हिमाचल की राजनीति को भी खत्म करने का प्रत्यन किया। समाज के विभिन्न वर्गो के लिए कल्याणकारी योजनाओ को शुरू किया। विभिन्न वर्गो की समाजिक पैंशन बढाई या शुरू की। शिक्षा और स्वास्थ्य के नये संस्थान खोले । हिम स्वास्थ्य केयर और सहारा जैसी योजनाओ का लाभ आमजन को मिला। हिमाचल सरकार ने कोविड काल मे बेहतरीन काम किया। फिर भी भाजपा हार गई। यह बिडम्बना है कि हिमाचल मे विकास और अच्छे काम सरकार को रिपीट करवाने मे सहायक नही हो पाते है। अन्य राजनैतिक कारण चुनाव परिणाम और सरकार की कारगुजारी को प्रभावित करने मे सफल हो जाते है। अगर भाजपा की सरकारो का विवेचनात्मक परिक्षण किया जाए तो हार के राजनीतिक कारण ध्यान मे आएगें। हिमाचल मे जनता पार्टी की सरकार को शामिल करते हुए पांच बार भाजपा की सरकार बनी है। दो बार शांता कुमार जी और दो बार प्रेम कुमार धूमल जी मुख्यमंत्री बने। 2017 मे भाजपा ने धूमल जी को चेहरा बना चुनाव लडा ।लेकिन वह सुजानपुर से चुनाव हार गए और किस्मत ने जयराम जी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस यथार्थ को धूमल जी और उनके समर्थक बडे मन से स्वीकार नही कर सके। पार्टी का निरीक्षण करने पर पार्टी दो भागो मे विभाजित नजर आती थी। मै बडी विनम्रतापूर्वक यह बात कह रहा हूँ कि ठाकुर राम को कमजोर मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर प्रचारित करने मे एक गुट के लोग जो एक वरिष्ठ नेता के समर्थक माने जाते थे सक्रिया भूमिका अदा करते रहे। वह यह भी प्रचारित करते रहे कि सरकार मे हमारी अनदेखी हो रही है। हालांकि भाजपा सरकार मे अनदेखी की परम्परा 1998 मे धूमल जी के कार्यकाल मे शुरु हो गई थी। उनके कार्यकाल मे शांता कुमार समर्थको की अनदेखी ही नही हुई अपितु उन मे से कुछ का राजनैतिक जीवन ही समाप्त कर दिया गया था। जयराम जी के कार्यकाल के दौरान भाजपा मे तीन शक्ति केंद्र थे। एक केंद्रीय मंत्री, एक राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री। मेरी समझ मे राजनिति मे यदि एक से अधिक सत्ता के शक्ति केंद्र होगे तो सत्ता कमजोर ही नजर आएगी। उपर से हमेश यह अफवाह उडाई जाती रही कि केंद्रीय मंत्री हिमाचल के मुख्यमंत्री बन कर कभी भी आ सकते है। खैर इन सब विपरीत परिस्थितियो के बावजूद ठाकुर जय राम ने अपने आप को राजनीतिक तौर पर सबित कर दिखाया है।
इसकी विस्तृत चर्चा आगे करेंगे। आज इतना ही कल फिर मिलते है।