“इन्हीं_पहाड़ों_मे : लेखक हिमांशु मिश्रा*
#इन्हीं_पहाड़ों_मे
#हेमांशु_मिश्रा
इन्हीं पहाड़ों में
कौतूहल है , अचंभा है
इन्हीं पहाड़ों में
बाधाएं हैं, व्यवधान है
यह नदियां यह नाले
यह बादलों की आहट
यह संकरे कच्चे रास्ते
यह घने घनघोर जंगल
यह भांति भांति के जानवर
विघ्न तो जरूर है
पर पहाड़ों को
जीतने की जिद्द
का अलग ही है सरूर
इन्हीं पहाड़ों में
टकटकी लगाए बैठा हूँ
इन्हीं पहाड़ों में
खूबसूरती संजोए बैठा हूँ
यह फूलों की घाटियाँ
यह भोर का प्रकाश
यह सांझ की लालिमा
यह पत्थरों की ओट
यह झरनों का शोर
यह घुटनों का ज़ोर
सब अहसास पहाड़ों में समाए हैं
इन्हीं पहाड़ों में
घुलमिल जाने को
आतुर बैठा हूँ
इन्हीं पहाड़ों में
खुद को छुपाए बैठा हूँ
हर बार नई चुनौती
हर बार नई आशा
हर बार नई स्फूर्ति
हर बार नई जिजीविषा
हर बार नई ताज़गी
हर बार नई कसरत
सब अहसास पहाड़ों में समाए हैं
इन्हीं पहाड़ों में
हर पल, पिरोए बैठा हूँ
इन्हीं पहाड़ों में
हरदम यादें, संजोए बैठा हूँ
शुद्धता का जायका
प्रकृति का फायदा
सद्भाव का करीना
उतार चढ़ाव का जीना
झुक कर चलने का सलीका
रुक कर उतरने का तरीका
सब अहसास पहाड़ में ही समाए हैं
तभी
इन्हीं पहाड़ों में
खुद हमको ही चढ़ना है
इन्हीं पहाड़ों में
सम्भलना है , आगे बढ़ना है