*पालमपुर के होल्टा कैंप से लेकर बनूरी बनोडू तक के राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत सबसे खस्ता ।खस्ता हालत सड़कों की श्रेणी में इसे (गोल्ड मेडल) स्वर्ण पदक मिलना चाहिए*
*पालमपुर के होल्टा कैंप से लेकर बनूरी बनोडू तक के राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत सबसे खस्ता ।खस्ता हालत की सड़कों की श्रेणी में इसे गोल्ड मेडल मिलना चाहिए*
पठानकोट मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पिछले कई वर्षों से चर्चा में रहा है ।एक तो इसके निर्माण में पहले ही काफी दिक्कतें आ रही थी और निर्माण कार्य भी विलंब हो गया, परंतु निर्माण कार्य के लिए तो बहुत संसाधन और बहुत से अनापत्ति पत्र या कई तरह की क्लीयरेंस की आवश्यकता रहती है ।परंतु जितना यह रोड पहले था वह रोड़ अब पहले से भी खस्ता हालत में हो गया है ।
लगता है इस राजमार्ग का कोई बेली वारिस नहीं है क्योंकि जहां पर रोड टूट गया है यह जहां पर रोड में खडा हो गया है वह एक 2 महीने के लिए नहीं शायद एक-दो वर्षों के लिए हो जाता है। ऐसा लगता नहीं कि इस राजमार्ग पर मेंटेनेंस के लिए वित्तीय सहायता नही मिल रही है या मेंटेनेंस करने के लिए किसी उच्च अधिकारी ने मना किया होगा कि यह रोड जैसी है वैसे ही रहने दीजिए। इस पर छोटी मोटी रिपेयर भी ना कीजिए।
परंतु पालमपुर होल्टा कैंप से लेकर बनूरी बनोडू तक के रोड की हालत देखे तो ऐसा ही लगता है की यहां पर उच्च अधिकारियों ने कुछ ऐसे ही निर्देश होंगे कि कि इस पैच पर अगर खड्डे पडते हैं पड़ने दो नालियां धस्ती है धसने दो, सड़क पर पानी खड़ा होता है होने दो ,कोई दुपहिया वाहन वाला इन खंडों में गिर कर अपनी जान गवा देता है उसकी जान जाने दो, ।केवल तुम पैसे बचाओ ।लगता है शायद कुुुछ ऐसा ही निर्देश रहा होगा ।
वरना ऐसा कोई कारण नहीं कि पालमपुर में एनएचएआई के अधिशासी अभियंता तथा अन्य अभियंताओं की पूरी टीम कभी यहां से सफर करके ना गई हो और उनकी नजरों में इस पैच की खस्ता हालत नजर ना आई हो ,वरना कोई भी अधिकारी इतना असंवेदनशील लापरवाह या निकम्मा नहीं हो सकता कि वह अपनी आंखों के सामने अपने ही विभाग की निकम्मेपन पर आंखें मूंद ले ।शायद इनकी कोई मजबूरी रही होगी या इन पर कोई प्रेशर रहा होगा कि इस रोड के पैच को देखना ही नहीं है ।आंखें बंद करके निकल जाना है ।कभी कोई जूनियर लेवल का अधिकारी अगर यहां से दुपहिया वाहन पर इस पांच 6 किलोमीटर के पैच पर चलकर जाए तो उसे स्वयं आभास हो जाएगा कि इस रोड पर चलना कितना मुश्किल है और जोखिम भरा है ।अगर उसे कहीं पास देना पड़ेगा आगे से गाड़ी से खुद का बचाव करना पड़े तो उसे एहसास होगा कि इस रोड का कितना बुरा हाल है ।
यहरोड़ का पैच सबसे अधिक व्यस्ततम पैच में से एक है ,क्योंकि पालमपुर का सारा ट्रैफिक चाहे वह दुपहिया वाहन हो कार हो या बस में हो सबसे ज्यादा ट्रैफिक इस पैच पर रहता है क्योंकि यहां पर आर्मी कैंप, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ,विवेकानंद हॉस्पिटल, सीएसआइआर कंपलेक्स, वेटरनरी कॉलेज,वूल फेडरेशन ,फिशरीज डिपार्टमेंट आदि के दफ्तर हैं और सभी लोगों को सुबह अपनी ड्यूटी पर जाने की जल्दी होती है ,इतने बुरे हालात में वह कैसे दुपहिया वाहनों पर या छोटी गाड़ियों में जाते होंगे यह तो वही भलीभांति जानते हैं परंतु एनएचएआई की आंखें शायद तभी खुलेगी जब यहां पर कोई दुर्घटना ऐसी होगी जिसमें किसी की जान चली जाए तब शायद जाकर इस पर ध्यान दिया जाएगा इसकी रिपेयर की जाएगी और इसके खड्डे भरे जाएंगे। लेकिन अगर किसी की बेशकीमती जान जाती है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा क्या केंद्रीय मंत्रालय एनएचएआई का हेड ऑफिस या फिर एनएचएआई का लोकल ऑफिस ?
हैरानी की बात यह है कि पिछली बरसात में गिरे हुए स्लिप अभी तक नहीं उठाए गए हैं इससे बड़ी लापरवाही और क्या हो सकती है जिसका सीधा सा मतलब है कि यहां के करणधारों को उपभोक्ताओं की कोई चिंता नहीं और ना ही वह किसी के प्रति जिम्मेवार हैं. वह निरंकुश रूप से 925 चल रहे हैं बिना किसी चिंता प्रेशर या जिम्मेवारी के
लगभग1.5 फुट गहरी नाली खड्डा
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*पालमपुर के होल्टा कैंप से लेकर बनूरी बनोडू तक के राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत सबसे खस्ता ।खस्ता हालत सड़कों की श्रेणी में इसे (गोल्ड मेडल) स्वर्ण पदक मिलना चाहिए*
https://tricitytimes.com/2023/02/03/bk-1814/
खबर का इतना सा असर हुआ कि इन्होंने दूसरे दिन ही वहां पर साइड में मिट्टी भर दी है तथा अगले 6 महीनों के लिए निश्चिंत कि हमने वहां पर रिपेयर कर दी थी। लेकिन जगह इतनी कच्ची और धंसी हुई है कि वहां मिट्टी 1 दिन भी नहीं टिकती। और जरा सी बारिश होते ही सड़क पर आ जाती है जिससे फिसलन बढ़ती है और दुपहिया वाहन वाले कभी भी वहां पर स्किड होकर गाड़ियां बस के नीचे आ सकते हैं।
दो पहिया वाहन वालों की तो जान पर बन आती है यहां पर सोचते हैं यहां से निकल /बच गए तो आज का दिन जीवन बच गया