पिछले कल इस विषय पर ब्लॉग लिख कर मैने हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुख्खू के व्यवस्था परिवर्तन के दावे की विवेचना कर उनसे जानना चाहा था कि उनकी व्यवस्था परिवर्तन को लेकर अपनी सोच बताएं और परिभाषा को परिभाषित करें। खैर पाठकों ने टिप्पणियां की और इस विषय पर आगे बात करने के लिए प्रेरित किया है। व्यवस्था परिवर्तन की स्पष्ट परिभाषा कहीं उपलब्ध नहीं है। इसको लेकर हर किसी का अपना दृष्टिकोण और अपनी परिभाषा है। मेरे विचार मे भ्रष्टाचार मुक्त और जनता के प्रति जबाव देह प्रशासन उपलब्ध करवाना व्यवस्था परिवर्तन का पहला पायदान हो सकता है। केवल शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय सभी को बिना भेदभाव के मुफ़्त उपलब्ध हो यह व्यवस्था परिवर्तन का दूसरा पायदान माना जा सकता है। न किसी वर्ग का तुष्टीकरण हो और न ही किसी की प्रताड़ना हो यह व्यवस्था परिवर्तन का तीसरा पायदान होगा। चुने हुए प्रतिनिधि की छवि शासक नहीं सेवक की हो और उनका वह तामझाम जो उनकी शासक की छवि बनाता है उस तामझाम का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए, यह चौथा पायदान हो सकता है।
कर्ज मुक्त और आत्म निर्भर हिमाचल बनाने का लक्ष्य तय करना और इस दिशा मे आगे बढ़ना व्यवस्था परिवर्तन का पांचवा पायदान हो सकता है। यह सब करना असंभव नहीं अति कठिन अवश्य है बस नियत और राजनैतिक इच्छा शक्ति होना जरूरी है। हालांकि यह सब करने के रास्ते मे वोट की राजनीति रूकावटें खड़ी करती है। हमारे देश मे लोग चोर दरवाजे खोज लेते है। अभी चार वर्ष पहले देश के प्रधानमंत्री जी ने जन-प्रतिनिधि की शासक की छवि तोड़ने के लिए रैड लाइट का इस्तेमाल बंद किया तो हिमाचल मे मंत्रीगणों ने रेड लाइट भले बंद कर दी लेकिन बिना पात्रता के पुलिस पायलट का इस्तेमाल शुरू कर दिया। खैर मुख्यमंत्री जी अगर व्यवस्था परिवर्तन की सोच रखते है तो यह भी प्रशंसनीय है। अभी तो गरीब आदमी अपवाद को छोड़कर बिना भय के न तो पुलिस स्टेशन जा सकता है और न ही बिना पैसे राजस्व विभाग से काम करवा सकता है। यदि इस दिशा मे मुख्यमंत्री जी त्वरित कार्रवाई करे तो यह भी गरीब लोगो को बड़ी राहत होगी। व्यवस्था परिवर्तन बड़ी बात है। उसके लिए सभी राजनैतिक दलों को राजनीति से ऊपर उठकर और मिल कर काम करना होगा।