*स्त्री की कथा या व्यथा????*
*स्त्री की कथा या व्यथा????*
एक औरत ने क्या खूब कहा
छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी
माँ हमेशा झिडकती ,
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .
थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर
माँ फटकार लगाती
चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .
जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर
माँ जोर से डपटती
चुप रहो , दूसरे के घर जाना है .
ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर
सास ने ताने कसे ,
चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं .
गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर
उनकी डांट मिली ,
चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ?
नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर
कहा गया
चुप रहो ! अगर काम करना है तो
थोड़ी उम्र ढली जब , अब जब भी बोली तो
बच्चों ने कहा
चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना .
बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो
सबने कहा
चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है .
इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में
बहुत कुछ दबा पड़ा है
उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ
पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने
चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है
और मैं चुपचाप चुप हो गई
हमेशा के लिए .🌹🌹🌹🌹 🙏🙏