*”आरती का अर्थ और महत्व” गोलोक एक्सप्रेस के माध्यम से*
“आरती का अर्थ और महत्व”
प्रिय पाठको! पिछले कुछ लेखों में हमने यह समझने की कोशिश की है कि संपूर्ण खुशी पाने के लिए हमें पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना होगा। जिसके लिए हमने आध्यात्मिक जीवन के चार स्तंभ सत्संग, साधना, सेवा और सदाचार के बारे में जाना। हम सत्संग के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुके हैं और अब हम साधना के महत्वपूर्ण अंगों के बारे में चर्चा कर रहे हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज हम आरती के अर्थ और इसके महत्त्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
भगवान के साथ जुड़ने की बहुत सी विधियां होती है। जिसमें पूजा एक विधि है और उसमें आरती का प्रमुख स्थान व महत्त्व है। भगवान की पूजा आरती के बिना अधूरी मानी जाती है। अगर हम कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करें तो उसका प्रारंभ प्रार्थना से होता है और उसका अंत हमेशा आरती से ही होता है। प्रत्येक मंदिर में सुबह शाम पूरी विधि विधान से भगवान की आरती की जाती है और बहुत से घरों में भी सुबह शाम भगवान की आरती होती है।
पहले हम समझते हैं कि आरती शब्द का अर्थ क्या है – आरती संस्कृत शब्द आरात्रिक से आया है जिसका अर्थ है आ – रात्रि।
आ शब्द का अर्थ है जो अंधकार को हटा दे और रात्रि का अर्थ है अंधेरा। तो आरती का अर्थ हुआ जीवन से अंधकार को हटाना और इसका दूसरा अर्थ है आ – रती।
आ का अर्थ बुलाना और रती का अर्थ है प्यार। तो
इसका अर्थ हुआ – प्रभु को प्रेम से अपनी ओर पुकारना और प्रभु का गुणगान करना। जब हम आरती करने के लिए प्रभु के समक्ष खड़े होते हैं तो हम प्रभु से कहते हैं कि हे प्रभु! हमारे जीवन से यह अज्ञान रूपी अंधकार दूर कर दो। भगवान आप प्रकाशमान हैं, ज्ञान के सागर हैं, अगर हम विनीत भाव से रोज आरती के माध्यम से भगवान से प्रार्थना करते हैं तो भगवान कृपा करके हमारे अंदर के अज्ञान को दूर करके हमारे अंदर ज्ञान का प्रकाश भर देते हैं। हम इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं – अभी हमने खुद को एक अंधेरे कमरे में बंद करके रखा है बाहर तो सूरज निकला है, बाहर प्रकाश है पर यदि हम अंधेरे कमरे में बंद होंगे तो वह प्रकाश हमें दिखाई नहीं देगा, उस प्रकाश को देखने के लिए, उसे महसूस करने के लिए हमें खुद को उस अंधेरे कमरे से निकालकर सूरज की रोशनी की तरफ अपने कदम बढ़ाने होंगे तो वह सूरज की किरणें क्या हैं?
वहीं यह आरती है जिसके माध्यम से हम अपने अंदर के अंधकार को भगवान के साथ जोड़कर दूर कर सकते हैं। दूसरा शब्द है आ – रती, जिसका अर्थ है – प्यार से भगवान को बुलाना। जब हम आरती का थाल घुमाते घुमाते भगवान की तरफ देखते हैं तो उस समय हम भगवान पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। हम प्यार से भगवान को बुलाते हैं और यदि हम प्रेम श्रद्धा पूर्वक विधिवत रोज भगवान की आरती करते हैं तो उसके फल स्वरुप हमें प्रभु का शुद्ध प्रेम प्राप्त होता है।
अब हम यह समझेंगे कि आरती करते कैसे हैं :-
आरती करते समय एक थाल में कपूर या जोत, अगरबत्ती और फूल इत्यादि होते हैं। जब हम आरती करते समय प्रभु की तरफ देखते हैं तो उसका अर्थ हुआ कि हम अपने इष्टदेव का ध्यान कर रहे हैं और थाल को दो बार आगे पीछे घुमा कर फिर गोलाकार में घूमाते हैं तो उसका अर्थ है कि एक तो हम अपने इष्ट का ध्यान कर रहे हैं और जब हम थाल को घुमाते हैं तो उसका अर्थ है कि हमें अपने सारे कर्त्तव्यों को बोझ समझकर नहीं बल्कि भगवान की खुशी के लिए करना है। भगवान को याद करते हुए अपने सारे कर्त्तव्य निभाने हैं। यदि हम भगवान की खुशी के लिए सारे कर्म करते हैं तो प्रभु के साथ हमारा रिश्ता मजबूत बनता है।
मंदिर में जो आरती होती है उसमें जो धूप अगरबत्ती के साथ-साथ शंख और तोमर यानि पंख का इस्तेमाल किया जाता है, इसका क्या अर्थ है अब हम इसको समझते हैं :-
हमारा स्थूल शरीर जिसे हम शीशे में खड़ा होकर देख सकते हैं, पंच तत्व यानि अग्नि, वायु, जल, आकाश और धरती से मिलकर बना है और इसके अलावा हमारा सूक्ष्म शरीर जो हमें दिखता नहीं है वह मन, बुद्धि और अहंकार से मिलकर बना है। यही सारे तत्व आरती में भी पाए जाते हैं।
सबसे पहले जोत होती है आरती में जो जोत होती है वह अग्नि का प्रतीक है, आरती में जल का भी प्रयोग किया जाता है, शंख आकाश तत्व का प्रतीक है, तोमर यानी पंख वायु का प्रतीक है और अगरबत्ती या फूल धरती का प्रतीक है। हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है और आरती में हम इन सब तत्वों का इस्तेमाल करते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि यह शरीर हमने प्रभु को अर्पित कर दिया है।
सूक्ष्म शरीर के भी तीन तत्व है मन,बुद्धि और अहंकार। जब हम भजन, संकीर्तन आरती कुछ भी करते हैं तो हम प्रभु के साथ अपना मन लगाते हैं और जब हम आरती के लिए थाल सजाते हैं यानि सामग्री को इकट्ठा करने की कोशिश करते हैं तो उस समय हमें बुद्धि का उपयोग करना पड़ता है, हम अपनी पूरी एकाग्रता के साथ इस कार्य को करते हैं ताकि हमसे कोई गलती न हो और फिर हम भगवान के सामने यह मानते हैं कि हम स्वामी नहीं बल्कि भगवान के सेवक हैं और जब हम सेवा भाव के साथ भगवान के सामने नतमस्तक होते हैं तो हम अपने अहंकार को छोड़ते हैं। इस तरह हम आरती के माध्यम से आठों तत्व भगवान को अर्पित करते हैं। यह एक ऐसी वैदिक विधि है जो हम अगर अपने पूरे परिवार के सदस्यों के साथ इकट्ठा मिलकर करें तो निश्चित तौर पर हमारी आध्यात्मिक प्रगति होगी और जब हम समझ कर किसी चीज को अपने जीवन में उतारते हैं तो उसका महत्त्व हमारे जीवन में ओर भी अधिक बढ़ जाता है। इस तरह से आरती के माध्यम से हम भगवान का गुणगान भी करते हैं और भगवान के साथ अपना रिश्ता मजबूत बनाने की कोशिश भी करते हैं!
‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती के अर्थ का हम अगले लेख में विस्तार से वर्णन करेंगे।
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Beautiful meaning Aarti Thank you very much Nikhil ji for giving us divine knowledge 🙏🙏🌷🌷