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*मन की टोकरी :/:-विनोद वत्स*

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नई रचना (मन की टोकरी)

मन की टोकरी देखो ,हो गई विषैली
राग देवेष ईर्ष्या ने, दे दी बड़ी गाली।
प्रेम त्याग ममता ,सब इर्द गिर्द भागे
मन को छोड़ शहर में, बजने लगे बाजे।
शोर इतना बढ़ गया, की कान लगे बजने।
जुर्म ओर आतंक से, शहर लगे सजने।
सुनने लगी देखो, हर घर मे नई गाली।
प्रेम की सदरी में, लग गई है जाली।
मन की टोकरी देखो, हो गई विषैली।
चुगली तनाव क्रोध ने ,हड़प लिया है तन को।
अब कोई नही इज्जत ,मिलती है सबको गाली।
छोटा हो या बड़ा हो ,या सेवक हो अपने घर का।
बच पाता नही देवेष से, चौसर है सब पे भारी।
मोहरे सीखा रहे है ,जुबा पे किसकी हो सवारी।
राजा घिरा है जलन से, राजा पे समय भारी।
सच्चाई जिसके संग हो ,वो करे वक़्त पे सवारी।
मिलती है जितनी गालियां ,सजती फूलों की डाली।
मन की टोकरी देखो हो गई विषैली।

विनोद वत्स की कलम से

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2 Comments

  1. वाह tricitytimes.com आपका दिल की गहराइयों से आभार जो आपने अपनी वेबसाइट में मुझ नाचीज़ की नई रचना को जगह दी आभार सूद साहब आपका भी धन्यवाद

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